लोकसभा में मनीष तिवारी ने SIR को ‘गैरकानूनी’ कहा, बैलेट पेपर की वापसी की मांग की

बीजेपी के संजय जायसवाल बोले—बिहार चुनाव नतीजे ही SIR की सबसे बड़ी पुष्टि, कांग्रेस पर 1947, 1975, 1987 और 1991 में ‘वोट चोरी’ का आरोप

Update: 2025-12-09 10:30 GMT
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी मंगलवार, 9 दिसंबर 2025 को नई दिल्ली में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में चुनावी सुधारों पर बहस के दौरान बोलते हुए। (संसद टीवी/पीटीआई फोटो)
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लोकसभा में चुनावी सुधारों के व्यापक विषय के तहत मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर बहस की शुरुआत करते हुए, कांग्रेस ने मंगलवार (9 दिसंबर) को इस अभियान के संवैधानिक आधार पर सवाल उठाए। पार्टी सांसद मनीष तिवारी ने इसे “गैरकानूनी” बताया। उन्होंने दलील दी कि चुनाव आयोग (EC) का यह दावा कि SIR जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RP Act) के तहत अनुमत है, सही नहीं है, क्योंकि अधिनियम “किसी भी एक निर्वाचन क्षेत्र” के लिए विशेष पुनरीक्षण की अनुमति देता है, “हर निर्वाचन क्षेत्र” के लिए नहीं।

‘EC को SIR का कारण बताना चाहिए’

तिवारी ने आगे कहा कि अगर किसी खास निर्वाचन क्षेत्र में SIR कराना हो, तब भी चुनाव आयोग को उसके कारण लिखित रूप में बताने होते हैं। उन्होंने कहा, “RP Act या संविधान में SIR का कोई प्रावधान नहीं है। विशेष पुनरीक्षण केवल उन्हीं निर्वाचन क्षेत्रों में अनुमति है, जहां मतदाता सूची में गड़बड़ियों को सुधारने की आवश्यकता हो और इसके लिए लिखित कारण देना होता है।”

उन्होंने सवाल किया, “मैं सरकार से पूछना चाहता हूं: वे निर्वाचन क्षेत्रवार लिखित कारण कहां हैं, जिनके आधार पर SIR कराया जा रहा है? चुनाव आयोग को बिहार, तमिलनाडु, केरल, बंगाल… सभी जगह SIR कराने के कारण सार्वजनिक करने चाहिए। दुर्भाग्य है कि अदालत ने भी इस कानूनी पहलू पर ध्यान नहीं दिया।”

बैलेट पेपर की वापसी की मांग

कांग्रेस सांसद ने आगे कहा कि चुनावी प्रक्रिया में जनता का भरोसा बहाल करने के दो ही तरीके हैं—या तो 100% VVPAT स्लिप्स की गिनती हो, या देश दोबारा बैलेट पेपर पर लौटे।

उन्होंने कहा, “मेरे पास चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता जांचने का एक सरल समाधान है। पांच राज्यों में चुनाव होने हैं। वहां बैलेट पेपर से चुनाव करवाकर देखिए, जो भी परिणाम आए, हम सभी स्वीकार कर लेंगे।”

तिवारी ने पूछा कि चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को मशीन-रीडेबल मतदाता सूची क्यों नहीं दे रहा। “अगर आप SIR कर रहे हैं—जबकि मेरी राय में यह गैरकानूनी प्रक्रिया है—तो मैं जानना चाहता हूं कि आप राजनीतिक दलों को मशीन-रीडेबल सूची देने के इतने खिलाफ क्यों हैं?” उन्होंने कहा।

तिवारी ने कहा, “आप कह सकते हैं कि SIR पहले भी हुआ है। मेरा जवाब साफ है—कई गलतियां मिलकर एक सही नहीं बनतीं। अगर किसी पूर्व सरकार ने कुछ गैरकानूनी किया था, तो इसका मतलब यह नहीं कि हम भी उसी मिसाल का पालन करें।”

‘सबसे बड़ा चुनावी सुधार’

तिवारी ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में भारत में सबसे बड़ा चुनावी सुधार राजीव गांधी ने किया था, जब उनकी सरकार ने मतदान की उम्र 21 से घटाकर 18 वर्ष की।

उन्होंने कहा, “डॉ. अंबेडकर और संविधान सभा के निर्माताओं ने एक स्थायी और स्वतंत्र चुनाव आयोग की परिकल्पना की थी। यह इस विचार के साथ था कि समय के साथ देश में सालभर किसी न किसी हिस्से में चुनाव होते रहेंगे। यह दो कारणों से महत्वपूर्ण है—पहला, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर मौजूदा बहस का संदर्भ, और दूसरा, चुनाव आयोग की गिरती विश्वसनीयता।”

उन्होंने कहा, “CEC और EC की नियुक्ति की प्रक्रिया बदलने की जरूरत है। चयन समिति में राज्यसभा के विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को शामिल किया जाना चाहिए ताकि राजनीतिक प्रतिनिधित्व संतुलित हो, न कि सरकार के पक्ष में झुका हुआ।”

‘SIR गैरकानूनी तरीके से किया जा रहा है’

तिवारी ने कहा, “बहुत निराशा के साथ कहना पड़ रहा है कि देशभर में चल रहा SIR गैरकानूनी तरीके से किया जा रहा है। EC का दावा है कि RP Act SIR की अनुमति देता है, लेकिन सच्चाई यह है कि RP Act सिर्फ ‘किसी एक निर्वाचन क्षेत्र’ में विशेष पुनरीक्षण की अनुमति देता है, ‘हर निर्वाचन क्षेत्र’ में नहीं—और वह भी तभी जब लिखित रूप में कारण बताए जाएं। RP Act या संविधान में SIR का कोई प्रावधान नहीं है। विशेष पुनरीक्षण सिर्फ उन्हीं जगहों पर संभव है, जहां मतदाता सूची में गड़बड़ियां हों और जिनके लिए लिखित कारण दिया जाए।”

चुनाव से ठीक पहले स्कीम के पैसे भेजने पर सवाल

तिवारी ने चुनाव के करीब आते ही सरकारी योजनाओं के पैसे लोगों के खातों में भेजने की प्रथा पर भी सवाल उठाया।

उन्होंने कहा, “चुनाव से ठीक पहले लोगों के खातों में पैसा डालने की यह क्या परंपरा है? मैं प्रस्ताव करता हूं कि संविधान में संशोधन किया जाए कि कोई भी सरकार, जिसका कर्ज-से-जीडीपी अनुपात 10% से ज्यादा है, वह किसी तरह का पैसा ट्रांसफर न कर सके। अगर यह मौजूदा प्रथा जारी रही, तो कोई भी सरकार कभी नहीं बदलेगी, जबकि राज्यों का कर्ज बढ़ता जाएगा। हम किस तरह का देश बना रहे हैं? क्या सरकार बनाना ही अंतिम लक्ष्य है?”

अखिलेश ने कांग्रेस का समर्थन किया

कांग्रेस की बात से सहमति जताते हुए समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, “मैं कांग्रेस से पूरी तरह सहमत हूं कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत है।”

उन्होंने आगे कहा, “मैं इस बात से भी सहमत हूं कि चुनाव बैलेट पेपर से करवाए जाने चाहिए। अगर तकनीक में हमसे कहीं आगे विकसित देश—जर्मनी, अमेरिका या जापान—EVM स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं, तो हम क्यों EVM पर अटके हुए हैं? हम बैलेट पेपर पर वापस क्यों नहीं लौटते?”

‘बिहार से मिला SIR को समर्थन’

बीजेपी के संजय जायसवाल ने सत्तापक्ष की ओर से चर्चा की शुरुआत की। उन्होंने कहा, “SIR का सबसे बड़ा समर्थन बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों से मिलता है।”

जायसवाल ने कहा, “जो लोग वोट चोरी की बात करते हैं, उन्हें जानना चाहिए कि वोट चोरी के सबसे बड़े उदाहरण 1947 में थे—जब पूरी कांग्रेस वर्किंग कमेटी सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाना चाहती थी, लेकिन नेहरू ने जनमत ‘चुरा’ लिया। 1975 में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाकर वोट चोरी की। 1987 में राजीव और फारूक ने जम्मू-कश्मीर में वोट चोरी की। और 1991 में जब राजीव गांधी की हत्या हुई, तब पूरा चुनाव टाल दिया गया और राजीव गांधी की अस्थियां 21 दिनों तक देशभर में घुमाई गईं, उसके बाद चुनाव बहाल हुए; वह भी वोट चोरी थी।”

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