चुनाव सुधार पर आज संसद में संग्राम! SIR को लेकर सरकार को घेरने की तैयारी में विपक्ष
बिहार चुनाव में बुरी हार के बाद कांग्रेस इस बहस को सरकार पर हमला बोलने का बड़ा मौका मान रही है। राहुल गांधी हाल के सत्रों में EC और सरकार पर चुनावी व्यवस्था में हेरफेर का आरोप लगाते रहे हैं।
चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) को लेकर पिछले कुछ महीनों से लगातार विवाद बना हुआ है। विपक्ष लगातार इस मुद्दे को संसद में उठाने की मांग करता रहा है। लंबे विरोध के बाद केंद्र सरकार ने पिछले सप्ताह 9 दिसंबर को संसद में 'चुनावी सुधारों' पर बहस के लिए सहमति दे दी है। हालांकि, SIR का नाम इसमें शामिल नहीं किया गया। लेकिन यह लगभग तय है कि विपक्ष इस मुद्दे को बहस के दौरान जरूर उठाएगा। क्योंकि SIR इस समय 9 राज्यों और 3 केंद्रशासित प्रदेशों में चल रहा है।
देश की नजर अब इस बात पर है कि बहस किस दिशा में जाती है, सांसद अपने-अपने राज्यों के मुद्दे कैसे रखते हैं, मताधिकार छिनने को लेकर जनता की चिंताओं का क्या समाधान निकलता है और क्या दिन के अंत में चुनाव आयोग (EC) अपनी खोई हुई विश्वसनीयता थोड़ी बहाल कर पाएगा।
SIR पर बहस
विपक्षी पार्टियां खासकर बंगाल की सत्ताधारी TMC, SIR को संसद में उठाने की अपनी मांग पर अड़ी रहीं। शीतकालीन सत्र शुरू होते ही TMC के डेरेक ओ’ब्रायन ने राज्यसभा में दावा किया कि संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने चुनावी सुधारों के एजेंडे में SIR पर चर्चा का आश्वासन दिया था। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और CPI(M) के जॉन ब्रिट्टास ने भी इस मांग का समर्थन किया। विपक्ष की चिंताओं के दो बड़े कारण हैं। 2025 बिहार विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद विपक्ष ने चुनावी प्रक्रिया में धांधली और मैंडेट चोरी का आरोप लगाया था। वहीं, कई राज्यों में ब्लॉक लेवल ऑफिसर्स (BLOs) के आत्महत्या करने की खबरों ने बहस की मांग को और तेज कर दिया है।
SIR उन राज्यों में भी चल रहा है, जहां अगले साल चुनाव हैं—जैसे बंगाल, तमिलनाडु और केरल और विपक्ष इन राज्यों में मतदाता सूची से “बड़ी संख्या में नाम कटने” और “संदिग्ध नाम जोड़ने” का मुद्दा उठाने वाला है। असम, जहां अगले वर्ष विधानसभा चुनाव हैं, वहां भी ‘स्पेशल रिविज़न’ की तैयारियां SIR को लेकर बहस को और गर्म कर सकती हैं।
विपक्ष के आरोप
कई विपक्षी दलों का आरोप है कि SIR के जरिए NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) को चुपचाप लागू किया जा रहा है, ताकि “अवैध प्रवासियों” की पहचान कर नाम हटाए जा सकें। सीमा से लगे होने और बांग्लादेशी घुसपैठ का हवाला देते हुए विपक्ष का दावा है कि SIR से बंगाल में अधिकतम मतदाता अधिकार छीने जा सकते हैं। TMC ने तो साफ कहा है कि SIR, “NRC लागू करने का छुपा एजेंडा” है। तमिलनाडु में VCK सहित विपक्षी दलों का कहना है कि SIR से कमज़ोर और हाशिए पर रहने वाले वर्गों के असली मतदाता बड़ी संख्या में बाहर हो सकते हैं। केरल और असम में भी SIR को लेकर व्यापक चिंता है। असम में पहले से NRC का मुद्दा संवेदनशील रहा है। आलोचकों का कहना है कि SIR में मांगे जा रहे दस्तावेज NRC में आवश्यक दस्तावेजों जैसे हैं, इसलिए आशंका और गहरा रही है।
कल्याणकारी योजनाओं पर भी खतरा
SIR को लेकर जनता की चिंता केवल वोटर कार्ड तक सीमित नहीं है। मताधिकार खत्म होने का सीधा असर सरकारी योजनाओं के लाभ पर पड़ सकता है। गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदाय पहले से ही कागजी खामियों और तकनीकी प्रक्रियाओं से जूझते हैं। अगर उनका नाम मतदाता सूची से हट गया तो कई सरकारी लाभ बंद हो सकते हैं। उनकी नागरिकता पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं और वे अपने अधिकार साबित करने के लिए जरूरी दस्तावेज भी खो सकते हैं।
वोट चोरी का मुद्दा
बिहार चुनाव में बुरी हार के बाद कांग्रेस इस बहस को सरकार पर हमला बोलने का बड़ा मौका मान रही है। राहुल गांधी हाल के सत्रों में EC और सरकार पर चुनावी व्यवस्था में हेरफेर का आरोप लगाते रहे हैं। सोमवार को ‘वंदे मातरम्’ बहस में प्रियंका गांधी ने कहा कि “विपक्ष देश के लिए खड़ा है, जबकि सरकार केवल चुनाव जीतना चाहती है।” इससे संकेत मिलता है कि कांग्रेस इस हफ्ते SIR को लेकर संसद में और आक्रामक रुख अपना सकती है।
सरकार बहस को कैसे संभालेगी?
पिछले सप्ताह सरकार ने इस मुद्दे पर विरोध झेलने के बाद कई रणनीतियां अपनाईं हैं। पहले कहा कि SIR पर चर्चा नहीं हो सकती, क्योंकि यह EC का प्रशासनिक मामला है, फिर कहा कि चर्चा की टाइमलाइन विपक्ष तय नहीं कर सकता और आखिरकार बहस पर सहमति दे दी। सरकार की सबसे बड़ी ताकत है बिहार चुनाव परिणाम, जो NDA के पक्ष में गया। सरकार इसे जनता का “स्पष्ट जनादेश” बताकर विपक्ष के आरोपों को कमतर दिखाने की कोशिश कर सकती है। प्रधानमंत्री मोदी पहले ही कह चुके हैं कि विपक्ष चुनावी हार का गुस्सा संसद में निकाल रहा है। इसलिए SIR पर ज्यादा हंगामा सरकार के कथन को और मजबूत करेगा।
चुनाव आयोग की विश्वसनीयता
विपक्ष के लगातार आरोपों से EC पर सरकार के दबाव में काम करने की छवि बन गई है। SIR को लेकर उसकी भूमिका और भी सवालों के घेरे में आ गई है। सरकार कह रही है कि EC सिर्फ एक निष्पक्ष रेफरी है, लेकिन जनता की निगाहें इस बात पर होंगी कि बहस के बाद क्या EC अपनी विश्वसनीयता और पारदर्शिता वापस हासिल कर पाता है या नहीं।