केरल में स्थानीय निकाय चुनाव, पहले चरण में आज सात जिलों में वोटिंग
बीजेपी ने लंबी अवधि की रणनीति के तहत सबरीमाला मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया। पार्टी का लक्ष्य तिरुवनंतपुरम निगम और कई पंचायतों/नगरपालिकाओं में पकड़ बनाना है।
केरल आगामी विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले स्थानीय स्वशासन (LSG) चुनावों की तैयारी में जुटा है। पहले चरण का मतदान आज मंगलवार, 9 दिसंबर को सात जिलों तिरुवनंतपुरम, कोल्लम, पथानामथिट्टा, अलप्पुझा, कोट्टायम, इडुक्की और एर्नाकुलम में होगा। ये जिले राज्य की राजनीति में अक्सर टोन सेट करते रहे हैं। राजनीतिक पार्टियां और गठबंधन मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए अंतिम रणनीतियां आजमा रही हैं। इस चुनाव में विवाद, कल्याण योजनाओं और जोरदार प्रचार अभियान सभी का रोल रहेगा, जो 2026 के बड़े विधानसभा चुनाव से पहले महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
तीन बड़े खिलाड़ी
इस साल की सियासी लड़ाई स्पष्ट रूप से एलडीएफ (शासन पक्ष), यूडीएफ (विपक्ष) और बीजेपी-नेतृत्व वाले एनडीए के बीच है। हर गठबंधन अलग रणनीतियों, विवादों और चुनावी वादों के सहारे मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास कर रहा है। इतिहास में केरल में LSG चुनावों ने अक्सर अगले विधानसभा चुनाव की झलक दी है। LDF ने 1995, 2005, 2015 और 2020 में स्थानीय निकाय चुनाव जीतकर अपनी जीत की राह बनाई। वहीं, 2000 और 2010 में LDF पिछड़ गया और UDF ने 2001 और 2011 में सरकार बनाई।
UDF की शुरुआती बढ़त और गिरावट
UDF ने अभियान की शुरुआत राज्य में LDF सरकार के खिलाफ एंटी-इंकम्बेंसी को आधार बनाकर की। इसमें सबरीमाला सोने की चोरी प्रमुख विवाद रहा। यूडीएफ रणनीतिकारों का मानना था कि इसे उजागर कर वे भक्त मतदाता वर्ग को जोड़ सकते हैं। लेकिन राहुल मामकूटथिल सेक्स कांड ने UDF की गति को रोक दिया। मीडिया और सोशल मीडिया में इस मामले ने विपक्ष को पीछे धकेल दिया। भले ही कांग्रेस ने मामकूटथिल को पार्टी से निष्कासित कर नुकसान कम करने की कोशिश की, लेकिन इसकी गति पर असर पड़ा।
बीजेपी का वोट ध्रुवीकरण रणनीति
बीजेपी ने लंबी अवधि की रणनीति के तहत सबरीमाला मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया। पार्टी का लक्ष्य तिरुवनंतपुरम निगम और कई पंचायतों/नगरपालिकाओं में पकड़ बनाना है। बीजेपी सांस्कृतिक और धार्मिक आधार पर मतदाताओं को ध्रुवीकृत करने की कोशिश कर रही है। शहरी नगरपालिका क्षेत्रों में कुछ सफलता मिली है, लेकिन ग्रामीण पंचायतों में LDF और UDF की जड़ें मजबूत हैं।
LDF का कल्याण आधारित अभियान
एलडीएफ ने अपने कल्याण योजनाओं जैसे —पेंशन बढ़ोतरी, विकास परियोजनाओं और जमीनी स्तर की पहल को आधार बनाकर अभियान चलाया। राज्यभर में एलडीएफ ने दिखाया कि ये योजनाएं सामान्य लोगों, विशेषकर वंचित और मेहनतकश समुदायों के जीवन में कैसे बदलाव ला रही हैं। स्थानीय उम्मीदवार विकास और प्रगति की कहानियों पर जोर दे रहे हैं, और विपक्ष की “नकारात्मक राजनीति” और विवादों पर फोकस को चुनौती दे रहे हैं।
पहले चरण के मतदान का महत्व
पहले चरण में मतदान सात दक्षिणी जिलों में हो रहा है, जहां सबरीमाला मुद्दा मतदाताओं की भावना पर असर डाल सकता है। धार्मिक और सांस्कृतिक पहलू पर आधारित यह मुद्दा राजनीतिक गठबंधनों को प्रभावित कर सकता है।
दूसरे चरण के लिए संभावित प्रभाव
दूसरा चरण 11 दिसंबर को उत्तर जिलों त्रिशूर, पालक्कड़, मलप्पुरम, कोझिकोड, कन्नूर, कासरगोड और वायनाड में होगा। यहां अल्पसंख्यक राजनीति और स्थानीय विकास, सामाजिक कल्याण मुद्दे निर्णायक हो सकते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि पहले चरण में अभियान अत्यधिक सक्रिय रहा है—डोर-टू-डोर प्रचार, डिजिटल आउटरीच और सार्वजनिक रैलियां मुख्य भूमिका निभा रही हैं। कई नगरपालिका और पंचायत क्षेत्रों में जल आपूर्ति, सड़कें, स्कूल इंफ्रास्ट्रक्चर और कल्याण योजनाएं महत्वपूर्ण मतदान कारक हैं।
अंतिम पल और मतदाता निर्णय
अंतिम घंटों में राजनीतिक कार्यालय सक्रिय हैं, रैलियां गूंज रही हैं और उम्मीदवार अंतिम अपील कर रहे हैं। आज सात जिलों के मतदाता मतदाता निर्णय के साथ-साथ कल्याण वादों, नैतिक विवाद, प्रशासनिक उपलब्धियों और स्थानीय मुद्दों का समग्र मूल्यांकन कर वोट देंगे।