शोरूम से सीधे सेकेंड हैंड बाज़ार, बिना रजिस्ट्रेशन बिक रही नई कारें
शोरूम की अनसोल्ड नई कारें अब सेकेंड हैंड बाज़ार में भारी छूट पर मिल रही हैं। क़ानूनी रूप से आप पहले मालिक बनेंगे, लेकिन मामला जटिल और विवादास्पद है।;
भारत के सेकंड-हैंड कार बाजार में एक हैरान कर देने वाला ट्रेंड तेजी से उभर रहा है। कुछ यूट्यूब ऑटोमोबाइल व्लॉगर्स और डीलर ऐसे ब्रैंड न्यू, बिना रजिस्ट्रेशन वाली कारों को सेकंड-हैंड के नाम पर बेच रहे हैं – वो भी 5 लाख रुपये तक की छूट के साथ। ग्राहक को यह वादा दिया जा रहा है कि वह उस कार का पहला रजिस्टर्ड मालिक होगा। लेकिन सवाल ये है कि ऐसा संभव कैसे है? और क्या ये कानूनी है?
डीलरों के बीच गुप्त सौदे
प्रसिद्ध यूट्यूबर गौरव सेठी ने हाल ही में एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें मारुति सुजुकी जैसी बड़ी कंपनी की नई कारें सेकंड-हैंड बाजार में बेहद कम कीमत पर बेची जा रही थीं। डीलर का दावा था कि ये कारें सीधे शोरूम के बचे हुए स्टॉक से खरीदी गई हैं। ऑटोमोबाइल पत्रकार अमित खरे उर्फ कार गुरु ने इस पर रौशनी डाली। उनके अनुसार, कई बार शोरूम और सेकंड-हैंड डीलर आपसी समझौते से बिना रजिस्टर्ड कारों को भारी छूट पर बेचने का सौदा करते हैं, खासकर तब जब शोरूम की बिक्री कम हो जाती है।
शोरूम के आंकड़े सुधारने की कोशिश
SIAM (Society of Indian Automobile Manufacturers) जैसे संगठन डीलरों से 21 दिनों का इन्वेंटरी स्टॉक बनाए रखने को कहते हैं, लेकिन कई बार यह अवधि 70 दिन तक पहुँच जाती है, जिससे आर्थिक दबाव बढ़ता है। इससे उबरने के लिए कुछ डीलर बिना रजिस्ट्रेशन की कारों को सेकंड-हैंड डीलरों को बेचते हैं।इस प्रक्रिया से सभी पक्षों को लाभ होता है – ग्राहक को सस्ती कार, शोरूम को बिक्री लक्ष्य की पूर्ति, और सेकंड-हैंड डीलर को एक नया उत्पाद।
क्या ये कानूनी है?
हैरानी की बात है कि ये प्रक्रिया तकनीकी रूप से कानूनी है। जब तक वाहन की रजिस्ट्रेशन नहीं हुई, तब तक उसका मालिकाना हक किसी के पास नहीं होता। चाहे कार कितने भी डीलरों के पास क्यों न गई हो, पहला रजिस्ट्रेशन जिस ग्राहक के नाम होता है, वही उसका पहला मालिक माना जाता है।लेकिन ग्राहकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने मैकेनिक से गाड़ी की पूरी जांच करवाएं और यह सुनिश्चित करें कि वारंटी और सर्विस की शर्तें अब भी वैध हैं।
शोरूम में ही छूट क्यों नहीं?
कार कंपनियां अपने ब्रांड की विश्वसनीयता और मूल्य नीति बनाए रखना चाहती हैं। इसी कारण वे शोरूम में खुली छूट देने के बजाय ऐसी गाड़ियां सेकंड-हैंड डीलरों को विशेष दर पर बेचती हैं। इससे वे बाहरी ऑडिट जांच और छवि पर पड़ने वाले असर से बच जाते हैं।
पहला मालिक कौन?
भारत में जब तक कोई कार पंजीकृत नहीं होती, तब तक उसका कोई आधिकारिक मालिक नहीं होता। इसलिए अगर एक नई कार डीलर A से डीलर B के पास गई हो, लेकिन रजिस्ट्रेशन आपके नाम पर हुआ, तो आप ही पहले मालिक माने जाते हैं।
क्या यह सच्चे ग्राहकों के साथ अन्याय नहीं?
कल्पना कीजिए – सुधाकरण ने ₹20 लाख में शोरूम से कार खरीदी और दो हफ्ते बाद उसका दोस्त रविंद्रन वही कार सेकंड-हैंड लॉट से ₹15 लाख में ले गया। यह न सिर्फ आर्थिक नुकसान है, बल्कि पारदर्शिता और विश्वास पर भी सवाल खड़े करता है।
निसान एक्स-ट्रेल मामला
अमित खरे ने एक चौंकाने वाला उदाहरण निसान एक्स-ट्रेल का दिया। ₹49.5 लाख में लॉन्च हुई इस कार को अधिक कीमत के कारण ग्राहक नहीं मिले। बाद में यही कार Big Boy Toyz ने सिर्फ ₹20.5 लाख में बेची। जिन्होंने पूरी कीमत दी थी, वे खुद को ठगा महसूस करने लगे।
क्या ये आर्थिक संकट का संकेत है?
इस ट्रेंड के पीछे सिर्फ ऑटो सेक्टर नहीं, बल्कि देश की आर्थिक स्थिति पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं – क्या गाड़ियां आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं? या मांग में गिरावट किसी गहरे आर्थिक तनाव का संकेत है? जो भी हो, इस बढ़ते चलन ने सेकंड-हैंड बाजार और उपभोक्ता भरोसे को एक बार फिर बहस के केंद्र में ला खड़ा किया है।