रॉकेट की तरह भाग रहे हैं डिफेंस स्टॉक्स, ये हैं तीन खास वजह
डिफेंस स्टॉक्स में तेजी के पीछे की वजह क्या है. भारत अब जिस तरह से रक्षा सामग्रियों के निर्यात की दिशा में आगे बढ़ चुका है उसका फायदा नजर आ रहा है
Defence Stock Trade: अगर आप स्टॉक में कारोबार करते हों तो एक डिफेंस स्टॉक्स में तेजी बनी हुई है. अगर आप चार जून से पहले दो दिन को देखें तो रक्षा शेयर सबसे पहले अपनी तेजी जारी रखने वाले और नई ऊंचाइयों पर पहुंचने वाले शेयरों में से थे. हालांकि चुनाव परिणाम के दिन जब यह तस्वीर सामने आने लगी कि भाजपा अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर पाएगी, तो इन्हीं शेयरों में भारी गिरावट देखी गई थी. लेकिन अब एक बार फिर तस्वीर बदली है. नरेंद्र मोदी के दो कार्यकालों के दौरान सरकार का ध्यान भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने पर था, लेकिन अब भारत भारी आयात-निर्भर से रक्षा सामग्री का शुद्ध निर्यातक बन गया है.
निर्यात को बढ़ाने का ऐलान
नई सरकार के सत्ता में आने के तुरंत बाद, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नए सैन्य निर्यात लक्ष्यों की घोषणा की और खुलासा किया कि भारत का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में अपने रक्षा निर्यात को मौजूदा 16,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 50,000 करोड़ रुपये से अधिक करना है। इस घोषणा से रक्षा शेयरों में और भी उछाल आया जिनमें से कई अब सर्वकालिक उच्च स्तर पर कारोबार कर रहे हैं. विश्लेषकों द्वारा कई वर्षों से रक्षा शेयरों को अत्यधिक कीमत वाला करार दिए जाने के बावजूद वे मजबूत स्थिति में हैं। उदाहरण के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स जिसे मार्च 2018 में सूचीबद्ध किया गया था. अब अपने लिस्टिंग मूल्य से दस गुना अधिक पर कारोबार कर रहा है. इसी तरह जब मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे उस समय से भारत इलेक्ट्रॉनिक्स दस गुना अधिक कीमत पर कारोबार कर रहा है
रक्षा क्षेत्र में सभी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) ने सफलता दर्ज की है.उनके दूसरे कार्यकाल के दौरान सूचीबद्ध अधिकांश निजी क्षेत्र की कंपनियां अपने जीवनकाल के उच्चतम स्तर पर कारोबार कर रही हैं। मोदी सरकार द्वारा निजी खिलाड़ियों के लिए रक्षा क्षेत्र के मानदंड खोलने और आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित करने के बाद से ये कंपनियाँ खूब फल-फूल रही हैं. रक्षा शेयरों में तेजी खुदरा निवेशकों की उन्मादी खरीद तक सीमित नहीं है. संस्थान भी इन शेयरों में भारी निवेश कर रहे हैं.
वर्तमान मूल्यांकन
सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या ये कंपनियां वर्तमान स्तरों पर भी निवेश करने लायक हैं? क्या मौजूदा तेजी अब खत्म हो जाएगी क्योंकि फंड हाउस क्षेत्र-विशिष्ट निधियों को लॉन्च करने पर विचार कर रहे हैं? इसका उत्तर भी सीधा और सपाट है कि रक्षा क्षेत्र के शेयरों का मूल्यांकन बिना किसी संदेह सबसे अधिक है. भारत डायनेमिक्स मूल्य-से-आय के आधार पर अपने ऐतिहासिक आंकड़ों के 97 गुना पर कारोबार कर रहा है जबकि एचएएल 49 गुना पर कारोबार कर रहा है. पारस डिफेंस जैसी निजी क्षेत्र की कंपनियां 180 गुना आय पर कारोबार कर रही हैं और आइडियाफोर्ज टेक्नोलॉजीज 74 गुना पर कारोबार कर रही हैं।
क्या उचित है मूल्यांकन?
बाजार भविष्य की वृद्धि का मूल्यांकन कर रहा है. अगर आप HAL का उदाहरण ले सकते हैं. हाल ही में रक्षा मंत्रालय से 156 लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टरों के लिए 45,000 करोड़ रुपये के ऑर्डर मिले हैं। इससे पहले HAL के पास 94,000 करोड़ रुपये की ऑर्डर बुक थी. जबकि ऑर्डर बुक में तेजी से इजाफा हुआ है. यह ध्यान रखना जरूरी है कि ये ऑर्डर कई वर्षों में पूरे किए जाएंगे. HAL के लिए भी सबसे आशावादी लाभ वृद्धि अनुमानों में से एक लगभग 20 फीसद है.
अवसरों की कमी नहीं
बाजार का अनुमान है कि भविष्य में रक्षा क्षेत्र में इसी तरह के ऑर्डर दिए जाते रहेंगे. नोमुरा की हालिया रिपोर्ट 'इंडिया डिफेंस' के अनुसार भारत के रक्षा क्षेत्र में वित्त वर्ष 24 से वित्त वर्ष 32 तक 138 बिलियन डॉलर के अवसर मिलने की उम्मीद है। यह वृद्धि उपकरणों और सेवाओं की बढ़ती मांग से प्रेरित है।रिपोर्ट में भारत के रक्षा पूंजीगत व्यय में महत्वपूर्ण बदलाव पर प्रकाश डाला गया है, जिसके वित्त वर्ष 30 तक कुल बजट के 37 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है जबकि वित्त वर्ष 25 में यह अनुमानित 29 प्रतिशत था. नोमुरा ने वित्त वर्ष 24 से वित्त वर्ष 30 तक 15.5 लाख करोड़ रुपये के संचयी पूंजीगत व्यय का अनुमान लगाया है.
एयरोस्पेस क्षेत्र 50 बिलियन डॉलर का मौका दे रहा है. जबकि शिपबिल्डिंग 38 बिलियन डॉलर का अवसर है. मिसाइलों,तोपखाने और बंदूक प्रणालियों में निवेश 21 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है जो भारत के तोपखाने और मिसाइल क्षमताओं को बढ़ाने के रणनीतिक प्रयासों के हिसाब से फिट बैठता है. खास बात यह है कि अधिकांश ऑर्डर निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों को दिए गए हैं, जिस पर रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) की नजर रहती है. DRDO के नेतृत्व में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग वाले रुख का नतीजा भी सामने दिखाई दे रहा है. 4.94 लाख करोड़ रुपये के सैन्य सामानों को या तो शामिल किया गया है या निकट भविष्य में शामिल किया जाएगा. यह इस क्षेत्र में आयात पर भारत की पिछली निर्भरता में कमी की तरफ कमी का इशारा कर रहा है.