व्यवस्था आगे, व्यक्ति पीछे: GDP की चकाचौंध में खड़ी दुनिया की चौथी अर्थव्यवस्था का सच

भारत आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है. आँकड़ों में GDP तेजी से बढ़ रही है, मेट्रो शहरों में विकास की तस्वीर जगमगा रही है. लेकिन क्या यही पूरा सच है?;

Update: 2025-05-26 13:25 GMT
भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में चौथे पायदान पर

भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) जापान (जापान) को पीछे छोड़ दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है. वैसे तो इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (International Monetary Fund) ने अप्रैल महीने में साल 2025 के लिए वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट (World Economic Outlook Report) में इसका खुलासा कर दिया था. लेकिन शनिवार 24 मई को नीति आयोग (NITI Aayog) के गवर्निंग काउंसिल की बैठक के बाद सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने इसका औपचारिक ऐलान किया.

उन्होंने कहा, " भारत दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और केवल अमेरिका, चीन और जर्मनी की इकोनॉमी ही भारतीय अर्थव्यवस्था से बड़ी है. और जो योजनाएं तैयार की गई है अगर हम उसपर टिके रहे तो अगले ढाई से तीन सालों में भारत जर्मनी को भी पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा." 

क्या IMF डेटा में है खामी?

आईएमएफ के मुताबिक, अमेरिकी जीडीपी का साइज 30.51 ट्रिलियन डॉलर है तो चीन का 19.23 ट्रिलियन डॉलर, जर्मनी का 4.74 ट्रिलियन डॉलर और भारत का 4.19 ट्रिलियन डॉलर और जापान का भी 4.19 ट्रिलियन डॉलर हो चुका है. भारत के दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के डेटा से अर्थशास्त्री और जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर अरुण कुमार इत्तेफाक नहीं रखते. उन्होंने कहा, " हमारा डेटा सही नहीं है. आईएमएफ कोई डेटा जुटाने वाली संस्था नहीं है. सरकार जो डेटा देती है उसी के आधार पर आईएमएफ ने ये कहा है और सरकार के डेटा में कई खामियां है."

IMF के मुताबिक साल 2025 में भारत का प्रति व्यक्ति आय (GDP per capita) 2880 डॉलर है.अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय 89,110 डॉलर, चीन की 13,690 डॉलर, जापान की 33,960 डॉलर और जर्मनी की 55,910 डॉलर है. भारत भले ही दुनिया की चौथी अर्थव्यवस्था बन गया हो लेकिन भारतीय का नॉमिनल प्रति व्यक्ति आय इन देशों के मुकाबले बेहद कम है. प्रति आय के मामले में भारत दुनिया में 141वें स्थान स्थान पर है.

आईआईटी दिल्ली में डिपार्टमेंट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर सीमा शर्मा के मुताबिक, "भारत भले ही अमेरिका और चीन से प्रति व्यक्ति आय के मामले में पीछे है लेकिन ये भी देखना चाहिए कि चीन भी अमेरिका से काफी पीछे है. हमारी जनसंख्या ज्यादा है. लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी के साथ प्रगति कर रही है. हमारी GDP शानदार ग्रोथ दिखा रही है, प्रति व्यक्ति आय बढ़ रहा है, टैक्स में कटौती के चलते लोगों का डिस्पोजेबल इनकम बढ़ा है. ये शानदार ग्रोथ इसलिए संभव हो सका है क्योंकि सरकार ने मजबूत आर्थिक नीतियों को लागू किया है. "

भारत भले ही दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया हो, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि ज्यादातर भारतीय अब भी गरीब क्यों हैं? भारत की अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी हो गई है, लेकिन क्यों आम लोगों की जिंदगी में ज्यादा बदलाव नहीं दिख रहा है? भारत का GDP जरूर बढ़ा है लेकिन लोगों की इनकम नहीं बढ़ी है? GDP का मतलब है देश ने कुल कितना उत्पादन और कमाई की है लेकिन इससे ये नहीं पता लगता है कि आम लोगों की कमाई बढ़ी या नहीं. टेक्नोलॉजी, फाइनेंस और सर्विसेज जैसे सेक्टर्स जो सबसे ज्यादा वेल्थ जेनरेट कर रहे हैं लेकिन देश की बड़ी आबादी कृषि, दिहाड़ी मजदूरी, ठेके या असंगठित क्षेत्र जैसे कम आय वाले सेक्टर्स में काम कर रहे हैं.

अमीरी-गरीबी के बीच बड़ी खाई

देश में कुछ लोग बहुत अमीर हैं, लेकिन करोड़ों लोग जरूरत की चीजें भी मुश्किल से जुटा पाते हैं. Oxfam की रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे 1% अमीर लोगों के पास देश की लगभग 40% दौलत है, जबकि नीचे के 50% लोगों के पास केवल 3 फीसदी ही दौलत है. टॉप 10 फीसदी अमीरों के पास 77.4 फीसदी दौलत है तो नीचे से 60 फीसदी के पास 5 फीसदी से भी कम 4.8 फीसदी दौलत है. प्रोफेसर अरुण कुमार ने कहा, देश के इकोनॉमिक ग्रोथ का फायदा केवल अमीरों को हो रहा है. मिडिल क्लास को भी इसका फायदा नहीं हो रहा है. लोगों की सैलरी नहीं बढ़ी रही जबकि इन कंपनियों का मुनाफा लगातार बढ़ता जा रहा है.

जब आर्थिक असामनता को लेकर देश में लगातार चर्चा की जाती है तो जिनी गुणांक (Gini Coefficient) के जरिए भी इसे समझते हैं. ये एक ऐसा पैमाना है जिससे देश में इनकम और संपत्ति के असमान डिस्ट्रीब्यूशन को मांपा जाता है. भारत का Gini Coefficient साल 2023 में 0.41 था इसका मतलब है कि भारत में मध्यम स्तर की आय असमानता है जो कि 1955 में ये 0.371 था, यानी 1955 के मुकाबले असमानता देश में बढ़ा है.

81.35 करोड़ को मिल रहा मुफ्त भोजन

भारत का चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बनना एक तरफ बड़ी उपलब्धि को दर्शा रहा तो दूसरी तरफ ऐसे भी आंकड़े हैं जो चिंता जाहिर करते हैं. 140 करोड़ के इस देश में अभी भी 81.35 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त भोजन दिया जा रहा है. नवंबर 2023 में मोदी कैबिनेट ने कोरोना खत्म होने के बावजूद ये निर्णय लिया कि एक जनवरी 2024 से अगले पांच सालों तक यानी 2028 तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) के तहत मुफ्त भोजन दिया जाएगा जिसपर सरकार अगले पांच सालों में 11.80 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगी. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना दुनिया की सबसे बड़ी मुफ्त भोजन स्कीम है. यानी देश की कुल आबादी का 60 फीसदी सरकार के मुफ्त भोजन स्कीम पर आश्रित है.

प्रोफेसर सीमा शर्मा के मुताबिक, "भारत इस बात को भलीभांति समझता है कि उसकी प्रति व्यक्ति आय कम है. और इसी कारण हमारे पॉलिसी मेकर्स तेज आर्थिक विकास पर विशेष ध्यान दे रहे हैं ताकि जीवन स्तर में सुधार हो और समावेशी विकास सुनिश्चित हो सके." उन्होंने कहा, "भारत MNC कंपनियों के लिए निवेश का एक शानदार अवसर प्रदान करता है. बड़ी और युवा आबादी, बढ़ता हुआ मध्य वर्ग, और लगातार हो रहे संरचनात्मक सुधार भारत को विदेशी निवेश के लिए एक अत्यंत आकर्षक गंतव्य बनाते हैं."

Purchasing Power Parity के डेटा से सरकार खुश

भले ही भारतीयों का नॉमिनल प्रति व्यक्ति आय कम है लेकिन सरकार को ये डेटा खुश कर सकता है. देश की पीपीपी (Purchasing Power Parity) के हिसाब से भारत में प्रति व्यक्ति जीडीपी (GDP per capita at PPP) 12,312 डॉलर है. GDP Per Capita में ये नहीं देखा जाता है कि भारत में चीजों की कीमतें क्या है और इससे भारत में क्या कुछ खरीदा जा सकता है. इसका पता लगाने के लिए पीपीपी (Purchasing Power Parity) यानी पर्चेंज पावर पैरिटी सबसे बेहतर तरीका है. इसकी वजह ये है कि एक डॉलर में जो चीजें एक अमेरिकी नागरिक खरीद सकता है भारत में कीमतों के कम होने के चलते एक भारतीय नागरिक उसी एक डॉलर में ज्यादा चीजें खरीद सकता है. आईएमएफ के मुताबिक पीपीपी के आधार पर भारत में प्रति व्यक्ति जीडीपी (GDP per capita at PPP) 12,132 डॉलर है.

Purchasing Power Parity के जरिए ये पता लगाया जा सकता है कि अमेरिकी नागरिक के मुकाबले एक भारतीय की खरीद क्षमता कितनी है. भारत में विकसित देशों के मुकाबले घरेलू बाजार में वस्तुओं की कीमतें बेहद कम है. ऐसे में पीपीपी के आधार पर 12,132 डॉलर प्रति व्यक्ति आय होने के चलते एक भारतीय 12,132 डॉलर की वस्तुएं खरीद सकता है. यानी एक भारतीय की आय भले ही कम हो लेकिन वह ज्यादा बेहतर जीवन जी सकता है क्योंकि भारत की PPP आधारित प्रति व्यक्ति जीडीपी 12,132 डॉलर है. PPP (Purchasing Power Parity) यह दिखाता है कि एक भारतीय की खरीद क्षमता कितनी है. उदाहरण के तौर भारत में रहने वाले राहुल की सालाना आय 1000 डॉलर है और जार्ज जो अमेरिका में रहता है और उसकी भी इनकम 1000 डॉलर है तो भारत में 1000 डॉलर में घर का किराया, खाना, इलाज सबकुछ मिल सकता है लेकिन अमेरिका में इन चीजों और सेवाओं के महंगे होने के चलते ये संभव नहीं है.

अर्थव्यवस्था की रैंकिंग और लोगों का दर्द!

सरकार का तर्क है कि PPP के हिसाब से भारतीय की 'खरीद क्षमता' बेहतर है. यानी कम पैसे में ज्यादा सामान, लेकिन जिनके पास पैसा ही नहीं, वे क्या खरीदेंगे? PPP की यह गणना विदेशी तुलना के लिए तो ठीक हो सकती है लेकिन वह भारत की आंतरिक असमानता को नहीं दिखाती. भारत के आर्थिक विकास में जो सबसे बड़ी खामी दिखती है, वह है ‘ट्रिकल डाउन’ के सिद्धांत पर विश्वास कि अमीरों की संपत्ति बढ़ेगी तो उसका कुछ हिस्सा गरीबों तक अपने आप पहुंच जाएगा. जबकि हकीकत में नीचे तक सिर्फ महंगाई, बेरोजगारी और असुरक्षा पहुंचती दिखती है. अर्थव्यवस्था की रैंकिंग और लोगों का दर्द अब दो अलग पटरियों पर चल रहे हैं, और सबसे खतरनाक बात यह है कि कोई इन दोनों को जोड़ने की बात नहीं कर रहा है. अगर देश अमीर हो गया है, तो फिर उसके नागरिकों का पेट अब भी खाली क्यों है?

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