और घट गई रुपये की हैसियत, अब 90 रुपये से ज्यादा में मिल रहा है एक डॉलर

रुपये की लगातार पतली होती हालत के बीच अब सबकी नजर भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ है। शुक्र्वार को आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी आनी है।

Update: 2025-12-03 06:40 GMT
रुपये की इस लगातार कमजोरी से विदेशी निवेशक भी हतोत्साहित हो रहे हैं जो इस साल भारत के शेयर बाजार से 16 बिलियन डॉलर निकाल चुके है

रुपया इतना कमजोर हो गया है कि 90 रुपये प्रति डॉलर के स्तर से नीचे चला गया है, हालांकि रुपये की इस गिरावट के लिए कई फैक्टर बताए जा रहे हैं लेकिन ऐसा भी माना जा रहा है कि भारत-अमेरिका व्यापार समझौते में देरी ने बाजार के सेंटिमेंट को प्रभावित किया है। हैरानी की बात ये है कि रुपया इस साल अब तक 4.9% गिर चुका है, जिससे वो एशिया की सबसे कमजोर मुद्रा बन गया है। 

बुधवार को रुपया 90.13 प्रति डॉलर के निचले स्तर तक फिसल गया, जो मंगलवार के 89.9475 के पिछले सबसे निचले स्तर को भी पार कर गया। दिनभर में ये 0.3% कमजोर रहा। एक्सपर्ट बता रहे हैं कि रिजर्व बैंक के आक्रामक हस्तक्षेप की कमी और लगातार जारी विदेशी निवेश की निकासी ने गिरावट को बढ़ाया है।

रुपया लगातार गिर रहा है, इसलिए एक्सपोर्टर जो हैं, वो डॉलर बेचने में आक्रामक नहीं हैं, जबकि इंपोटर्स की डॉलर की मांग अभी भी ज्यादा हैऐसा अनुमान है कि 90 का अहम लेवल टूटने के बाद अब भारतीय मुद्रा आने वाले दिनों में 90.30 तक भी जा सकती है। ये आलम तब है जबकि सरकार की तरफ से जारी आंकड़े बता रहे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था जुलाई–सितंबर में छह तिमाहियों में सबसे तेज़ वृद्धि पर रही।

कई एक्सपर्ट रुपये की इस बड़ी गिरावट में भारत-अमेरिका बिजनेस डील पर मुहर न लग पाने को भी एक वजह मान रहे हैं..भारत अभी भी उन कुछ बड़े देशों में शामिल है, जिनका अमेरिका के साथ कोई व्यापार समझौता नहीं है, हालांकि अधिकारी इसे जल्द अंतिम रूप देने को लेकर आशावादी हैं।

इस बीच भारतीय उत्पादों पर 50% तक के ऊँचे अमेरिकी टैरिफ ने निर्यातकों पर दबाव बढ़ाया है, जबकि मजबूत आयात ने डॉलर की मांग को बढ़ाया है—जिससे रुपये पर और असर पड़ा है। इन फैक्टर्स की वजह से सितंबर तिमाही में चालू खाते का घाटा भी बढ़ गया है।

रुपये की इस लगातार कमजोरी से विदेशी निवेशक भी हतोत्साहित हो रहे हैं जो इस साल भारत के शेयर बाजार से 16 बिलियन डॉलर निकाल चुके है और ये ईंधन आयात करने वाले देश में महँगाई बढ़ाने का जोखिम भी पैदा कर रही है।

अब सबकी नजर भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ है। शुक्र्वार को आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी आनी है, इसलिए बाजार को ये क्लियरिटी चाहिए कि क्या आरबीआई करेंसी को स्थिर करने के लिए कोई गंभीर कदम उठाएगा या नहीं।

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