सोलापुर में हैरान करने वाला मामला, पिता ने ली बेटे की जान
14 साल का बेटा मोबाइल पर अश्लील फिल्में देखता था, स्कूल से शिकायतें मिल रही थीं, पिता ने जहर देकर हत्या कर दी.;
सोलापुर से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहां एक पिता ने अपने ही बेटे की जान सिर्फ इसलिए ले ली। क्योंकि वह मोबाइल पर अश्लील फिल्में देखने का आदी हो गया था। 14 वर्षीय बच्चे की हत्या का यह मामला ना सिर्फ दिल दहला देने वाला है, बल्कि यह समाज में पारिवारिक संवाद की कमी और मानसिक तनाव की गहराई को भी उजागर करता है।
पिता के जुर्म छुपाने की कोशिश
घटना 13 जनवरी की बताई जा रही है। सोलापुर शहर के रहने वाले विजय बत्तू, जो पेशे से दर्जी हैं, अपनी पत्नी कीर्ति और दो बच्चों के साथ रहते थे। उनका बड़ा बेटा विशाल पिछले कुछ समय से मोबाइल पर अश्लील सामग्री देखने का आदी हो चुका था। स्कूल से लगातार शिकायतें मिल रही थीं कि वह पढ़ाई में ध्यान नहीं दे रहा और सहपाठियों से बदतमीज़ी करता है। विजय इस सब से मानसिक रूप से परेशान हो गया था।
13 जनवरी की सुबह विजय अपने बेटे को बाइक पर बैठाकर घर से बाहर ले गया। उसने एक सॉफ्ट ड्रिंक में ज़हर (सोडियम नाइट्रेट) मिलाकर विशाल को पिला दिया। जैसे ही वह बेहोश हुआ, विजय ने उसे घर के पास ही एक नाले में फेंक दिया। इसके बाद वह शाम को पत्नी के साथ थाने गया और बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट और खुली सच्चाई
कुछ दिनों बाद पुलिस को पास के ही नाले से विशाल का शव बरामद हुआ। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसके शरीर में ज़हरीले तत्व की पुष्टि हुई। इसी के बाद पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर जांच शुरू की। पूछताछ के दौरान पुलिस को विजय की बातों में विरोधाभास नजर आया, लेकिन पुख्ता सबूत नहीं थे।
पति की कबूलनामे से टूटी मां
28 जनवरी को विजय ने खुद अपनी पत्नी को सच्चाई बता दी कि उसने ही अपने बेटे को ज़हर देकर मारा है। कीर्ति ने तुरंत पुलिस को इसकी जानकारी दी। पुलिस ने विजय को गिरफ्तार कर लिया और 29 जनवरी को उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे दो दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया।
सवाल छोड़ गया यह मामला
यह मामला सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक विफलता को दर्शाता है। किशोरावस्था में बच्चों का मार्गदर्शन करने में असफलता और संवाद की कमी कैसे भयावह नतीजों में बदल सकती है, इसका यह बेहद दुखद उदाहरण है।
सोलापुर की इस घटना ने सभी अभिभावकों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि बच्चों की मानसिकता, आदतों और व्यवहार में हो रहे बदलाव को समझना कितना ज़रूरी है। कठोर कदमों की बजाय संवाद, समझ और समय की आवश्यकता है—वरना रिश्तों की दरारें ऐसे ही खून में बदल सकती हैं।