फगवाड़ा का लाल… बचपन में रामलीला में नहीं मिला रोल, आगे चलकर बन गए बॉलीवुड के हीमैन धर्मेंद्र
धर्मेंद्र के निधन की खबर से फगवाड़ा में शोक की लहर दौड़ गई. यही वो शहर है जहां उनका बचपन बीता और जहां कभी रामलीला में उन्हें रोल तक नहीं मिला था.
बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र के निधन की खबर ने पूरे देश को दुखी कर दिया है, लेकिन सबसे ज्यादा दर्द उस शहर ने महसूस किया है, जिसे धर्मेंद्र हमेशा अपना घर कहते रहे फगवाड़ा. ये वही जगह है जहां उनका बचपन बीता, जहां उन्होंने पहली बार सपने देखे और जहां से निकलकर वो आगे चलकर हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े सुपरस्टारों में से एक बने.
फगवाड़ा में बीता मासूम बचपन
धर्मेंद्र का जन्म भले ही पंजाब के साहनेवाल में हुआ था, लेकिन उनका बचपन पूरी तरह फगवाड़ा की गलियों में बीता. वो अपने स्कूल के दिनों को कभी नहीं भूले. कई बार इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उनकी असली पहचान, असली मिट्टी और असली संस्कार उन्हें फगवाड़ा ने दिए. उनके पिता मास्टर केवल कृष्ण चौधरी, आर्य हाई स्कूल में गणित और सामाजिक अध्ययन के शिक्षक थे. धर्मेंद्र ने 1950 में इसी स्कूल से मैट्रिक किया. इसके बाद 1952 तक उन्होंने रामगढ़िया कॉलेज में अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की. फगवाड़ा के लोग बताते हैं कि धर्मेंद्र बचपन से ही बेहद विनम्र और जमीन से जुड़े हुए थे. किसी को अंदाजा नहीं था कि यही लड़का आगे चलकर फिल्म इंडस्ट्री का ‘हीमैन’ बनेगा.
धर्मेंद्र बीमार, फगवाड़ा में प्रार्थनाएं
10 नवंबर को धर्मेंद्र की तबीयत अचानक बिगड़ गई और उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया. जैसे ही खबर फगवाड़ा पहुंची, मंदिरों और गुरुद्वारों में उनके लिए दुआएं शुरू हो गईं. उनके बचपन के दोस्त कुलदीप सरदाना, हरजीत सिंह परमार और एडवोकेट शिव चोपड़ा—लगातार उनके लिए अरदास कर रहे थे. इस दौरान सोशल मीडिया पर उनके निधन की अफवाहें भी उड़ीं, मगर बाद में डॉक्टरों ने बताया कि वो घर पर आराम कर रहे हैं, लेकिन सोमवार को खबर सच हो गई. धर्मेंद्र इस दुनिया को अलविदा कह गए. करण जौहर ने सोशल मीडिया पर इस दुखद सूचना की पुष्टि की और पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई.
बचपन के दोस्त अभी भी याद करते हैं ‘धरम’ को
फगवाड़ा के कई लोग धर्मेंद्र को ‘स्टार’ नहीं, बल्कि अपने ‘धरम’ के रूप में जानते थे. उनके बचपन के सबसे करीबी दोस्त समाजसेवक कुलदीप सरदाना, हरजीत सिंह परमार और एडवोकेट शिव चोपड़ा उनके साथ स्कूल से लेकर किस्सों तक जुड़े रहे.
रामलीला में भी नहीं मिला था रोल और वही लड़का बना सुपरस्टार
धर्मेंद्र बचपन से एक्टिंग पसंद करते थे, लेकिन एक बार का किस्सा आज भी फगवाड़ा में मशहूर है. कौमी सेवक रामलीला कमेटी द्वारा आयोजित रामलीला में उन्हें कभी कोई रोल नहीं मिला. कई साल बाद, जब वह सुपरस्टार बन गए, तो अपने दोस्तों के साथ हंसते हुए बोले. अब तो मुझे रामलीला में कोई रोल मिल सकता है? उनकी ये बात आज भी लोग मुस्कुराते हुए याद करते हैं.
फगवाड़ा से जुड़ाव जिंदगी भर बना रहा
सुपरस्टार बनने के बाद भी धर्मेंद्र ने कभी फगवाड़ा को नहीं भुलाया. जब भी पंजाब आते, फगवाड़ा में रुकना नहीं भूलते. वो पुराने पैराडाइज थिएटर, स्कूल, गलियों और दोस्तों के घरों पर जरूर जाते. 2006 में जब पुराने पैराडाइज थिएटर की जगह गुरबचन सिंह परमार कॉम्प्लेक्स बना, तो धर्मेंद्र खुद उसके उद्घाटन के लिए फगवाड़ा आए. हजारों की भीड़ के सामने उन्होंने जोर से कहा, फगवाड़ा जिंदाबाद! हरजीत सिंह बताते हैं कि धर्मेंद्र और उनकी पत्नी प्रकाश कौर उनके घर आए, उनकी मां से आशीर्वाद लिया और परिवार की तरह बैठकर खाना खाया.
एक युग का अंत, लेकिन यादें अमर रहेंगी
धर्मेंद्र भले ही अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें, उनकी कहानियां और उनका फगवाड़ा से प्यार हमेशा जीवित रहेगा. फगवाड़ा की गलियाँ आज भी कहती हैं. यहां एक लड़का बड़ा हुआ था… जिसे दुनिया धर्मेंद्र कहती है.