चौथी बार चुनाव जीते तो क्या CM बन पाएंगे केजरीवाल, सवाल तो फिर वही रहेगा

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को अब कट्टर ईमानदार कहा जा रहा है। दिल्ली की जनता के लिए इस्तीफे का ऐलान किया। यहां सवाल ये कि अगर चौथी बार मौका मिला तो क्या वे सीएम बनेंगे।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-09-17 03:24 GMT

Arvind Kejriwal News:  दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल सीएम पद से इस्तीफे का ऐलान दो दिन पहले ही कर चुके थे। हालांकि इस्तीफा वो मंगलवार को देगें और दिल्ली को 10 साल बाद दूसरा सीएम मिल जाएगा। 15 सितंबर को केजरीवाल ने कहा था कि वो जनता के बीच जाएंगे। यही नहीं उन्होंने अपील करते हुए कहा कि अगर वो ईमानदार हों तभी वोट करना। यानी कि उन्हें लगता है कि जनता ही अंतिम रूप से इस बात का फैसला करेगी कि वो ईमानदार हैं या नहीं। उनके हिसाब से जिन लोगों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे और वो जनता की अदालत में बरी हो गए वो ईमानदार है। इस लिहाज से और अरविंद केजरीवाल की नजर से भारत को भ्रष्टाचार मुक्त है तो सवाल यही कि उनके लिए करप्शन मुद्दा क्यों होना चाहिए। हालांकि बात हम ये करेंगे कि अगर चौथी दफा दिल्ली की जनता उन्हें चुनती है तो वो क्या अगले साल दिल्ली की गद्दी पर बैठे नजर आएंगे। 

तकनीकी तौर पर बाधा नहीं

तकनीकी तौर पर अगर देखा जाए तो जनता जिस दल को बहुमत देती है वो पार्टी सत्ता में आती है। पार्टी के विधायक अपने नेता का चुनाव करते हैं और वो शख्स सीएम बन जाता है। यह तो सामान्य प्रक्रिया है। इस हिसाब से चौथी दफा आम आदमी पार्टी का भविष्य जनता के फैसले पर निर्भर करेगा। लेकिन यहां सवाल कुछ और ही है। अरविंद केजरीवाल को इस्तीफा देने की जरूरत तो आज भी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह नहीं कहा कि वो सीएम नहीं बने रह सकते। हां ये जरूर कहा कि वो दफ्तर नहीं जाएंगे और फाइलों पर दस्तखत नहीं कर पाएंगे।

सवाल नैतिकता का

दिल्ली में विपक्षी दल भी यही सवाल उठा रहे थे कि जो शख्स सचिवालय नहीं जा सकता, फाइल पर दस्तखत नहीं कर सकता वो आखिर कैसे सीएम बने रह सकता है वो जनता की समस्या को कैसे सुलझाएगा। लेकिन यहां आपके जेहन में सवाल उठेगा कि जेल में रहते हुए जब केजरीवाल ने सरकार चलाई तो अब क्या दिक्कत आएगी। इस सवाल के बारे में जानकारों का नजरिया अलग है। कुछ लोगों का कहना है कि अगर केजरीवाल उस वक्त इस्तीफा देते तो बीजेपी अपनी कामयाबी के तौर पर देखती है। लेकिन अब जब सुुप्रीम कोर्ट ने बेल पर आजाद किया है तो राजनीतिक तौर पर केजरीवाल के पास यह कहने का विकल्प मौजूद है कि अदालत से राहत मिलने के बाद उन्होंने नैतिकता का उच्चतम मानदंड स्थापित करने की कोशिश की है। 

15 सितंबर को केजरीवाल ने कहा कि उनके वकीलों ने बताया है कि यह केस 10 से 15 साल भी चल सकता है। अब सवाल यही है कि अगर आम आदमी पार्टी चौथी बार सत्ता में आती है तो क्या यह कानूनी बाधा नहीं रहेगी। इस मामले में जानकार कहते हैं कि यह सब अदालत के निर्णय पर निर्भर करेगा। लेकिन राजनीति में शुचिता कहां है। आप झारखंड को देख सकते हैं। भ्रष्टाचार के मामले में हेमंत सोरेन को जेल होती है वो अपनी जगह चंपई सोरेन को मौका देते हैं। जिस दिन जमानत पर रिहा होते हैं चंपई सोरेन को हटाने में देरी नहीं करते। दरअसल नेता खुद के बचाव के लिए जनता को हथियार और ढाल की तरह पेश करते हैं। अरविंद केजरीवाल के सामने आज भी दिक्कत नहीं थी और यदि जीते तो भी दिक्कत नहीं होगी। हालांकि नैतिकता का सवाल हमेशा बना रहेगा। 

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