इन दो चेहरों को क्यों नकार रही जनता, एग्जिट पोल ने उम्मीद पर फेरा पानी

अगर एग्जिट पोल के आंकड़े को देखें तो हरियाणा में जेजेपी और जम्मू-कश्मीर में पीडीपी को बड़ा नुकसान होता नजर आ रहा है।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-10-06 05:26 GMT

Haryana Assembly Exit Polls 2024:  हम देश के उन दो सूबों हरियाणा और जम्मू कश्मीर की बात कर रहे हैं जहां पर हाल ही में चुनाव संपन्न हुए और अब नतीजों का इंतजार है। 8 अक्टूबर को औपचारिक तौर पर पता चल जाएगा कि इन दोनों सूबों में कौन सा दल सरकार बनाएगा। लेकिन उससे पहले एग्जिट पोल के आंकड़ों के मुताबिक सत्ता की लड़ाई हरियाणा में दुष्यंत चौटाला पूरी तरह से बाहर हैं, वहीं जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी और बेटी इल्तिजा मुफ्ती की मेहनत रंग लाती नहीं दिख रही। एग्जिट पोल के मुताबिक दुष्यंत चौटाला की पार्टी न्यूनतम शून्य और अधिकतम तीन सीट जीत सकती है। अगर औसत आधार पर देखें तो आंकड़ा एक या दो का बैठता है। वहीं जम्मू-कश्मीर में पीडीपी का औसत आंकड़ा न्यूनतम पांच से लेकर अधिकतम आठ सीट तक बैठता है।

दुष्यंत चौटाला, जेजेपी
अगर आप दुष्यंत चौटाला की पार्टी को देखें तो सत्ता की रेस से ना पूरी तरह से बाहर बल्कि वजूद पर संकट। वहीं जम्मू-कश्मीर में पीडीपी की संभावना तभी जगती है जब त्रिशंकु विधानसभा बनने का आसार हो। लेकिन एग्जिट पोल के ज्यादातर आंकड़ों में एनसी गठबंधन सत्ता के बेहद करीब है।  सवाल ये कि इन दोनों दलों की हालत इतनी खराब क्यों हो गई। क्या ये दोनों दल जमीनी स्तर पर लोगों के मूड को समझने में नाकाम रहे या बीजेपी की वजह से इनका मामला खराब हो गया। यहां पर आपके मन में सवाल उठेगा कि बीजेपी को क्यों जिम्मेदार ठहराना चाहिए तो इसके लिए थोड़ा अतीत में झांकना होगा। पहले बात करते हैं हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की।

दुष्यंत चौटाला, चौधरी देवीलाल के खानदान से हैं यानी परिवार की विरासत साथ साथ चलती रही है। लेकिन जब आपस में ही टकराव शुरू हुआ तो दुष्यंत चौटाला ने राजनीति की राह पर अलग चलना पसंद किया। जनता जननायक पार्टी गठित की। 2019 के चुनाव में किस्मत आजमायी। 10 सीटों पर जीत मिली। खास बात यह कि लड़ाई बीजेपी के खिलाफ थी। हालांकि जब हरियाणा विधानसभा चुनाव का नतीजा सामने आया तो किसी दल को बहुमत नहीं मिला था। हालांकि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी। सियासी गुणा गणित के हिसाब से वो बीजेपी के साथ हो चले। करीब साढ़े चार साल तक सरकार में बने रहे। लेकिन आम चुनाव 2024 से पहले उन्हें लगने लगा कि बीजेपी उनके विचारों से मेल नहीं खाती। विचारों का मेल तो 2019 विधानसभा चुनाव से पहले भी नहीं था। दुष्यंत चौटाला ने भले ही वैचारिक विरोध और द्वंद का सहारा ले खुद को बीजेपी से अलग कर लिया हो। लेकिन जनता के दिल और दिमाग में कहीं यह बात घर कर गई कि दुष्यंत चौटाला ने हरियाणा की जगह अपने हित को प्राथमिकता दी थी। 

पीडीपी, महबूबा मुफ्ती
दुष्यंत चौटाला के बाद बात करेंगे जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी की। इसके लिए आप 2014 के साल में चलना होगा। विधानसभा चुनाव के दौरान किसी भी दल को बहुमत हासिल नहीं हुआ था। पीडीपी बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी और बीजेपी नंबर दो पर थी। जम्मू-कश्मीर के इतिहास एक ऐसा प्रयोग जिसके बारे में सोचना असंभव सा लगता था। बीजेपी की मदद से महबूबा मुफ्ती ने सरकार बनायी थी। वैचारिक धरातल पर इतनी असमानता के बाद सरकार का क्या हश्र होता कमोबेश सबको पता था और सरकार का पतन भी हो गया। भारत के राजनीतिक इतिहास में इस पर आज भी चर्चा होती है।

इन सबके बीच साल 2019 में जब केंद्र की बीजेपी सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35 एक को खत्म कर दिया तो बात बड़ी साफ थी कि पीडीपी की तरफ से प्रतिरोध का स्तर बढ़ता और वो बढ़ा भी। 10 साल के बाद जम्मू-कश्मीर में जब तीन चरणों में विधानसभा चुनाव हुआ तो मतदाता पीडीपी से यही सवाल करते थे कि आप 2014 वाले गठबंधन को कैसे वाजिब ठहरा सकती थीं। महबूबा मुफ्ती और उनकी बेटी इल्तिजा बार बार सफाई देती थीं। लेकिन उनकी सफाई लोगों को रास आती नजर नहीं दिखी और एग्जिट पोल उस पर मुहर भी लगाता दिख रहा है। 

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