2024 के चुनाव में 1 लाख 20 हजार करोड़ के खर्च का अनुमान, हर वोटर पर बढ़ा खर्च
ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार का इलेक्शन दुनिया का सबसे महंगा चुनाव होगा, जिस पर 1.20 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो सकते हैं.
Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ते जा रहा है. सरगर्मी भी तेज होती जा रही है. राजनैतिक दल और उम्मीदवार अपने पक्ष में हवा बनाने के लिए जमकर पैसा और पसीना बहा रहे हैं. ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार का इलेक्शन दुनिया का सबसे महंगा चुनाव होगा, जिस पर 1.20 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो सकते हैं. इतना पैसा तो कई देशों के कुल जीडीपी के बराबर है. वहीं, आम चुनाव में हर मतदाता पर होने वाले खर्चे की बात करें तो साल 1957 में चुनाव आयोग ने 10.5 करोड़ रुपये खर्च किए थे. इसका मतलब है कि हर मतदाता पर केवल 60 पैसे का खर्च आया था. वहीं, साल 2019 के चुनाव में यह खर्च बढ़कर 72 रुपये प्रति मतदाता पहुंच गया था. यह आंकड़े तो चुनाव आयोग के हैं. लेकिन हकीकत में इससे कहीं अधिक खर्च किया जा रहा है.
वैसे तो चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों के खर्च की सीमा तय कर रखी है, लेकिन राजनैतिक दल इससे बंधे नहीं है. यही वजह है कि लोकसभा चुनाव का खर्च हर बार बढ़ते ही जा रहा है. सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के मुताबिक, हर पांच साल में चुनावा का खर्च दोगुना होते जा रहा है. साल 2014 में करीब 30 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे. जबकि, साल 2019 में यह खर्च बढ़कर 60 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया था. हालांकि, ये आंकड़े अनुमान पर आधारित हैं.
चुनाव का खर्च सरकारों को वहन करना पड़ता है. विधानसभा चुनाव का खर्च राज्य सरकारें तो लोकसभा चुनाव का खर्च केंद्र सरकार उठाती है. वहीं, अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ हैं तो आधा-आधा खर्च केंद्र और राज्य सरकारों को वहन करना पड़ता है. चुनाव आयोग के अनुसार, साल 2004 के चुनाव में 1,016 करोड़, साल 2009 में 1,115 करोड़ और साल 2014 में 3,870 करोड़ रुपये का खर्च आया था. हालांकि, चुनाव आयोग के पास साल 2019 के चुनावी खर्च का आंकड़ा नहीं है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि इस दौरान चुनाव आयोग ने 5 हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च किया होगा. एसोसिएशन डेमोक्रेटिक रिफॉर्म के रिपोर्ट की मानें तो साल 2014 के चुनाव में सभी राजनैतिक दलों ने 6,405 करोड़ रुपये का फंड जुटाया था और 2,591 करोड़ रुपये खर्च किए थे. वहीं, साल 2019 में बीजेपी ने 1,142 करोड़ और कांग्रेस ने 626 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किया था. यानी कि बीजेपी को हर सीट पर औसतन पौने चार करोड़ और कांग्रेस को 12 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े थे.
इलेक्शन के दौरान चुनाव आयोग का पैसा ईवीएम खरीदने, सुरक्षाबलों की तैनाती करने और चुनावी सामग्री खरीदने में खर्च होता है. वहीं, राजनैतिक दल चुनाव आयोग के मुकाबले काफी अधिक खर्च करती हैं. चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव के उम्मीदवार के लिए 95 लाख रुपये की लिमिट तय की है. वहीं, राजनीतिक दलों के लिए खर्च की कोई सीमा तय नहीं है. इसलिए राजनैतिक दल जीतने के लिए जमकर चुनावों पर खर्चा करती हैं.
वर्तमान समय में चुनाव कराना मतलब सफेद हाथी पालने के बराबर है. चुनाव आयोग तय समयसीमा में निष्पक्ष और सुचारु ढंग से इलेक्शन कराने का लक्ष्य रखता है. आजकल चुनाव ईवीएम से होते हैं. क्योंकि कोई ईवीएम पर अंगुली न उठा पाए. ईवीएम का जीवन काल करीब 15 वर्ष का होता है. इसलिए ईवीएम की खरीद और इसके रख-रखाव पर काफी अधिक पैसा खर्च होता है. साल 2019-20 के बजट में ईवीएम खरीद और रख-रखाव के लिए 25 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जो 2023-24 के बजट में बढ़कर 1891.8 करोड़ रुपये तक पहुंच गया. अंतरिम बजट 2024 में भी चुनावी खर्च के लिए 2442.85 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे.
देश की आजादी के बाद साल 1951 में पहला आम चुनाव हुआ था. उस समय देश में 17.32 करोड़ मतदाता थे और करीब 10.5 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. जबकि, साल 2019 में मतदाताओं की संख्या बढ़कर 91.2 करोड़ हो गई. वहीं, साल 2024 के चुनाव में 98 करोड़ मतदाता वोट करेंगे. तो जिस तरह से मतदाताओं की संख्या बढ़ती है. वैसे ही चुनावी खर्च भी बढ़ता है. साल 2009 लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने 1114.4 करोड़ रुपये खर्च किए थे. वहीं, साल 2014 में खर्च का आंकड़ा बढ़कर करीब 3870 करोड़ रुपये हो गया. इसके बाद साल 2019 में चुनाव पर 6600 करोड़ रुपये खर्च हुए थे.
साल 1951 के आम चुनाव में करीब 17 करोड़ मतदाताओं ने हिस्सा लिया था और हर एक पर 60 पैसे का खर्च आया था. इसी तरह साल 2004 के चुनाव में हर वोटर पर 12 रुपये, साल 2009 में 17 रुपये और साल 2014 में 46 रुपये चुनाव आयोग के खर्च हुए थे. वहीं, साल 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो उस समय करीब 91.2 करोड़ मतदाता थे और हर एक वोटर पर 72 रुपये खर्च हुआ था. वहीं, हर पांच साल में उम्मीदवारों द्वारा किए जाने वाले खर्च में भी बढ़ोतरी होती रहती है. देश के पहले चुनाव साल 1951 में हर उम्मीदवार 25 हजार रुपये तक खर्च कर सकता था. साल 2004 और 2009 के चुनाव में यह आंकड़ा 25 लाख रुपये था. साल 2014 के चुनाव में उम्मीदवारों के खर्च सीमा में ढाई गुना से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई. इस चुनाव हर उम्मीदवार के खर्च की सीमा 70 लाख रुपये हो गई थी. साल 2019 में भी प्रत्याशियों के चुनावी खर्चे में वृद्धि देखी गई और खर्च का आंकड़ा बढ़कर 95 लाख रुपये तक पहुंच गया. साल 2024 के चुनाव में भी खर्च की यही सीमा तय की गई है.