हरियाणा में मायावती-चंद्रशेखर, दलित वोट बंटा तो किसे हो सकता है फायदा?

हरियाणा की सभी 90 सीटों के लिए पांच अक्टूबर को मतदान होना है। इस चुनाव में मायावती और चंद्रशेखर दोनों गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रहे हैं।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-09-06 03:56 GMT

Haryana Assembly Elections 2024:  आठ अक्टूबर को पता चल जाएगा कि हरियाणा की जनता ने किसे राज करने का मौका दिया है। क्या बीजेपी हैट्रिक लगा पाएगी या कांग्रेस के हाथों में जीत होगी या कोई और धड़ा सरकार में आएगा। किसी और धड़े का अर्थ इनेलो-बीएसपी गठबंधन या जेजेपी- आजाद समाज पार्टी से है। यहां हम बात बीएसपी और आजाद समाज पार्टी की करेंगे जिसकी अगुवाई मायावती और चंद्रशेखर कर रहे हैं। मायावती और चंद्रशेखर दोनों अपने आपको दलित समाज का रहनुमा कहते हैं। लेकिन सियासी जमीन पर लड़ाई एक दूसरे खिलाफ है।

ऐसे में अगर दलित वोटों का बंटवारा होता है तो फायदा किसे होगा। अगर आप सामान्य तरीके से देखें तो आम चुनाव में 10 में से पांच सीट जीत कर कांग्रेस के हौसले बुलंद है। अगर कोई ऐसी स्थिति बने जिसमें दलित वोट का बंटवारा ना हो तो निश्चित तौर पर फायदा कांग्रेस को होगी यानी कि बीजेपी का नुकसान होना तय है।

हरियाणा में मायावती की रैलियों की डिमांड बढ़ी है। लेकिन यह भी सच है चंद्रशेखर चुनौती भी पेश कर रहे हैं। सियासी जानकार कहते हैं कि दोनों पक्ष जितनी मजबूती से प्रचार करेंगे वैसी सूरत में वोटों का बंटवारा होना तय है। इनेलो और बीएसपी के बीच जब गठबंधन हुआ तो यह माना जा रहा था कि मुकाबला त्रिकोणीय होगा। लेकिन दुष्यंत चौटाला के साथ चंद्रशेखर के गठबंधन की वजह से मामला दिलचस्प हो गया है। अब ज्यादातर जगहों पर लड़ाई चतुष्कोणीय होगी। इसका अर्थ यह हुआ कि सभी दलों की सांस अटकी रहेगी। हालांकि दलित मतों के बंटवारे का फायदा बीजेपी को मिल सकता है क्योंकि यह समाज पारंपरिक तौर पर बीजेपी को वोट नहीं करता रहा है।

दलित वोटबैंक में बंटवारे का मतलब यह है कि विपक्षियों के लिए चुनौती बढ़ जाएगी। लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या मायावती, चंद्रशेखर पर भारी पड़ेंगी। इसके लिए उन्होंने कई वादे किए हैं मसलन बेरोजगारी भत्ते का ऐलान,महिलाओं के लिए रसोई खर्च, हर महीने मुफ्त सिलेंडर जैसी लोकलुभावन वादों के जरिए वो चुनावी मैदान में इनेलो के साथ कदमताल कर रही हैं।

हरियाणा का जातिगत आंकड़ा

22 फीसद जाट समाज, अनुसूचित जाति 21 फीसद, पंजाबी समाज 8 फीसद, ब्राह्मण 7.5 फीसद, अहीर- 5.14 फीसद, वैश्य 5 फीसद, जाट सिख 4 फीसद, मेव और मुस्लिम 3.8 फीसद, राजपूत 3.4 फीसद, गुर्जर 3.3 फीसद, बिश्नोई .7 फीसद अन्य 15,91 फीसद हैं। अगर जाति के आंकड़ों को देखें तो जाट समाज और अनुसूचित जाति समाज का दबदबा है। हरियाणा की राजनीति में जाट समाज भी बीजेपी का हिस्सा कम ही रहा है। परंपरागत तौर पर यह समाज कांग्रेस, इनेलो को वोट करता रहा है। लेकिन जेजेपी के मैदान में आने के बाद यह धड़ा बंटा है। लेकिन जिस तरह से अग्निवीर, एससी-एसटी आरक्षण और किसान आंदोलन से यह प्रदेश प्रभावित रहा उस सूरत में जनमत बीजेपी के खिलाफ रहा जिसे आम चुनाव २०२४ के नतीजों में भी देखा गया है। ऐसे में किसी भी दल या गठबंधन की जीत इस बात पर निर्भर करेगी कि उन्हें सर्वसमाज किस हद तक स्वीकार करता है। 

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