झारखंड में वोटर्स का मिजाज पढ़ पाना मुश्किल, ये आंकड़े खुद देते हैं गवाही

झारखंड में पहले चरण का चुनाव संपन्न हो चुका है। 2019 के मुकाबले वोटर्स घरों से बाहर निकले। इन सबके बीच उन सीटों के बारे में बताएंगे जहां हार-जीत का अंतर कम था।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-11-14 02:06 GMT

Jharkhand Assembly Elections 2024:  झारखंड विधानसभा की 81 सीटों में से 43 सीटों पर चुनाव 13 नवंबर को संपन्न हुआ। इस फेज में वोटर्स ने 683 उम्मीदवारों की किस्मत को ईवीएम में कैद कर दिया है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक इस दफा 66 फीसद से अधिक वोटर्स ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया जो कि 2019 के मुकाबले करीब तीन फीसद अधिक है। आमतौर पर पहले बढ़े हुए वोटों को सत्ता विरोधी लहर के तौर पर देखा जाता था। लेकिन हाल के चुनावों में अधिक मतदान सत्ता के पक्ष में नजर आ रहा है। अब यह विवादास्पद विषय बन चुका है जिस पर राजनीतिक पंडित भी साफ साफ कहने से बचते हैं। झारखंड में जिन 43 सीटों पर चुनाव हुआ है वहां 2019 में बीजेपी और जेएमएम में कांटे की टक्कर थी।

अगर 81 सीटों की बात करें तो 43 सीटों पर जीत का अंतर पांच हजार से कम था। इसके साथ ही 26 सीटें ऐसी थीं कि जहां किसी भी दल को दोबारा जीत नहीं मिली है। यानी कि 26 सीटों का नेचर इस तरह का है वो किसी भी दल की जीत में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। 

  • 2014 विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल 15 सीटों पर फिर जीत नहीं दर्ज कर सके।
  • 2009 के विधानसभा चुनाव में जिन सीटों पर हार-जीत का फैसला 5000 से कम वोट से हुआ था
  • 10 सीट पर ही संबंधित पार्टियां लगातार दूसरी बार जीतीं.
  • 2014 में कुल 17 सीटों पर हार-जीत का फैसला 5000 से कम वोट से हुआ था.
  • 2019 के चुनाव में राजनीतिक दल इनमें से 11 सीटें हार गयी थीं.

ये हैं कुछ आंकड़े

    2019 में सिमडेगा (285), बाघमारा(824), कोडरमा(1797), मांडू(2062), जामा(2426), देवघर(2674), जरमुंडी(3099), नाला(3520) और गोड्डा(4512) में जीत हार का अंतर पांच हजार से कम था।अगर साल 2014 की बात करें तो गुमला, जरमुंडी, बड़कागांव, टूंडी, राजमहल,लोहरदगा, डाल्टनगंज, जामा, जरमुंडी, मनिका, बोरियो, सरायकेला में जीत और हार का फासला 5 हजार से कम था।अगर साल 2014 की बात करें तो गुमला, जरमुंडी, बड़कागांव, टूंडी, राजमहल,लोहरदगा, डाल्टनगंज, जामा, जरमुंडी, मनिका, बोरियो, सरायकेला में जीत और हार का फासला 5 हजार से कम था। 2009 में शिकारीपाड़ा, खूंटी, तमाड़, चक्रधरपुर, बड़कागांव, धनबाद, सिंदरी, सिमडेगा, लोहरदगा, तमाड़, बड़कागांव, दुमका, शिकारीपाड़ा, खिजरी, हुसैनाबाद, चंदनकियारी, कांके, जमशेदपुर, सरायकेला में जीत हार का अंतर पांच हजार से कम था।

    समझदार है झारखंड का मतदाता
    झारखंड की चुनावी राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि कुछ सीटें तो ऐसी हैं जहां लड़ाई हमेशा कांटे की रही है। किसी भी दल के लिए अंदाजा लगा पाना मुश्किल होता है। झारखंड के मतदाताओं के बारे में सामान्य सी धारणा होती थी कि वो राजनीतिक सूझबूझ का परिचय नहीं देते। लेकिन आंकड़े उस धारणा को गलत साबित करते हैं। झारखंड की बड़ी समस्या रही है। एक दल का नेता कब किसी दूसरे दल में जा मिले उसका भी अंदाजा लगाना मुश्किल होता है। वैसी सूरत में वोटर्स के सामने विकल्प कम होता है। इस तरह की तस्वीर में वो उम्मीदवारों को अपने वोट के दम पर सबक सिखाने का प्रयास करते हैं जब उन्हें मौका मिलता है। जिन सीटों की जिक्र किया गया है वहां ना सिर्फ जीत और हार का अंतर पांच हजार से कम रहा है बल्कि कोई भी पार्टी हर अगले टर्म में अपने पाले में करने में नाकाम रही है। 

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