58 साल तक इस सूबे ने चलाई 'दिल्ली' की सरकार, देश को दिए इतने पीएम

सबसे बड़े सूबों में से एक उत्तर प्रदेश ने दिल्ली की सरकार 58 साल तक चलाई. यही नहीं यहां से भारत को नौ प्रधानमंत्री भी मिले.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-04-29 10:28 GMT

आम चुनाव 2024 कई मायनों में खास है. किसी के सामने सत्ता में तीसरी बार आने की चुनौती है तो किसी के सामने अपने वजूद को बचाए रखने की. आमतौर पर जैसे सियासी चेहरे अपनी अपनी जीत के दावे करते हैं.कुछ वैसे ही दावे किये भी जा रहे हैं. इन सबके बीच हम बात देश के उस सूबे की करेंगे जिसके बारे में कहा जाता है कि सत्ता की कुंजी उसकी तिजोरी में रहती है. जी हां बात हम उत्तर प्रदेश की करेंगे जहां से 80 सांसद लोकतंत्र के मंदिर यानी संसद का हिस्सा बनते हैं.

देश के सभी सूबों में यूपी अकेला सूबा है जिसने 9 प्रधानमंत्री दिए. यहां पर एक एक कर उन सभी चेहरों के बारे में जानकारी देंगे. जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, वी पी सिंह, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी. इन 9 शख्सियतों के जरिए यूपी ने 58 साल तक देश की कमान संभाली.सियासी गलियारों में यह चर्चा आम भी है कि अगर देश की सत्ता पर कोई दल काबिज होने के बारे में सोचता है तो उसे यूपी में बेहतर प्रदर्शन करना होगा. अगर ऐसा है तो उसमें किसी तरह की अतिशयोक्ति नहीं है. देश में लोकसभा के लिए कुल 543 सदस्यों का चुनाव होता है जिसमें यूपी की हिस्सेदारी 80 सांसदों की है. यानी कि देश के 29 सूबों में से यूपी से अकेले करीब 16 फीसद सांसदों की हिस्सेदारी है.

जवाहर लाल नेहरू

भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू जब सरकार में आए तो कांग्रेस का प्रदर्शन यूपी में बेहद शानदार था. उन्होंने देश की कमान करीब 13 साल तक संभाली थी. यूपी का फूलपुर संसदीय इलाका उनकी कर्मभूमि रही. वो यहां के लोगों का प्रतिनिधित्व करते थे. कांग्रेस के प्रदर्शन के बारे में भी कहा जाता है कि लोग पार्टी को आंदोलन के तौर पर लिया करते थे. दरअसल यूपी समेत देश की बड़ी आबादी को यह लगता था कि कांग्रेस की वजह से हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं. कांग्रेस के विरोध में कई दल और संगठन जमीन पर आवाज उठा रहे थे. लेकिन लोगों के जेहन में छाप इतनी अमिट थी कि उसे हटा पाना आसान नहीं था.

जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद कांग्रेस के अंदर इस बात के लिए संघर्ष उठ खड़ा हुआ कि अब कौन देश की कमान संभालेगा. तमाम तरह के अड़चनों के बाद एक नाम पर एका बनी और लाल बहादुर शास्त्री का नाम सामने आया. शास्त्री जी ने देश की कमान संभाली. उनके सामने कई तरह की चुनौतियां थीं. 1962 की लड़ाई से देश मुश्किल से बाहर निकला था. लेकिन 1965 में पाकिस्तान की तरफ नापाक हरकर हुई. हालांकि शास्त्री जी की अगुवाई में देश उठ खड़ा हुआ. पाकिस्तान की सेना को करारी हार का सामना करना पड़ा. लाल बहादुर शास्त्री के सामने कई तरह की चुनौतियां थीं. लेकिन उन्होंने जय जवान-जय किसान का नारा देकर यह साफ कर दिया है कि भारत के पास हर मुश्किल से बाहर निकलने का सामर्थ्य है. करारी शिकस्त के बाद पाकिस्तान समझौते के मेज पर आया और वो समझौता ताशकंद में हुआ. हालांकि ताशकंद से ही दुखद खबर आई कि अब शास्त्री हमारे बीच नहीं हैं.

लाल बहादुर शास्त्री

लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद देश की कमान जवाहर लाल नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी ने संभाली. कांग्रेस के भीतर इनके नाम पर अड़चन थी. लेकिन वो विजयी बन कर बाहर निकलीं. देश के में बुनियादी तौर पर बदलाव के कई काम किए जिसमें बैंकों का राष्ट्रीयकरण शामिल था. लेकिन पाकिस्तान की तरफ से 1971 में कायराना हरकत की गई, पूर्वी पाकिस्तान में लोगों पर पाकिस्तानी सेना जुल्म ढा रही थी. पूर्वी पाकिस्तान की आजादी के लिए शेख मुजीबुर रहमान लड़ाई लड़ रहे थे. उन्होंने इंदिरा गांधी से मदद मांगी और मुक्ति संग्राम में शामिल होने का फैसला किया. भारतीय सेना ने पाकिस्तान को एक बार फिर परास्त कर दिया और विश्व के राजनीतिक नक्शे में बांग्लादेश का निर्माण हुआ.यही नहीं अमेरिका के विरोध को दरकिनार कर परमाणु परीक्षण भी किया जिसके बाद देश और दुनिया उन्हें आयरन लेडी के नाम से जानने लगी. हालांकि उनके दामन पर आपातकाल का दाग भी लगा, हालांकि 1980 में दोबारा वो सत्ता में आईं. लेकिन ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद सिखों में नाराजगी पनपी और उनके खुद के बॉडीगार्ड ने गोली मारकर हत्या कर दी.

इंदिरा गांधी

आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई और दिल्ली की सत्ता पर जनता पार्टी काबिज हो गई. सरकार के मुखिया मोरारजी देसाई बनें. हालांकि इनका नाता यूपी से नहीं था. करीब 2 साल तक सरकार चलने के बाद जनता पार्टी में आंतरिक खिलाफत हुई और देश की कमान चौधरी चरण सिंह के हाथों में आ गई. चौधरी चरण सिंह का नाता पश्चिमी उत्तर प्रदेश था. चौधरी चरण सिंह का कार्यकाल अल्प समय के लिए रहा. चौधरी चरण सिंह के खिलाफ भी विद्रोह के सुर सुनाई पड़ने लगे और जनता पार्टी की सरकार गिर गई. 1980 में हुए चुनाव में एक बार फिर इंदिरा गांधी सत्ता में आने में कामयाब हुईं.


इंदिरा गांधी 1980 में दोबारा सत्ता में आईं लेकिन कार्यकाल पुरा होने से एक साल पहले 1984 में उनके बॉडीगार्ड ने हत्या कर दी. उनकी हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी ने देश की कमान संभाली. राजीव गांधी के कार्यकाल में कई क्रांतिकारी बदलाव हुए. आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई और दिल्ली की सत्ता पर जनता पार्टी काबिज हो गई. सरकार के मुखिया मोरारजी देसाई बनें. हालांकि इनका नाता यूपी से नहीं था. करीब 2 साल तक सरकार चलने के बाद जनता पार्टी में आंतरिक खिलाफत हुई और देश की कमान चौधरी चरण सिंह के हाथों में आ गई.

चौधरी चरण सिंह

चौधरी चरण सिंह का नाता पश्चिमी उत्तर प्रदेश था. चौधरी चरण सिंह का कार्यकाल अल्प समय के लिए रहा. चौधरी चरण सिंह के खिलाफ भी विद्रोह के सुर सुनाई पड़ने लगे और जनता पार्टी की सरकार गिर गई. 1980 में हुए चुनाव में एक बार फिर इंदिरा गांधी सत्ता में आने में कामयाब हुईं.

राजीव गांधी

इंदिरा गांधी 1980 में दोबारा सत्ता में आईं लेकिन कार्यकाल पुरा होने से एक साल पहले 1984 में उनके बॉडीगार्ड ने हत्या कर दी. उनकी हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी ने देश की कमान संभाली. राजीव गांधी के कार्यकाल में कई क्रांतिकारी बदलाव हुए. लेकिन भ्रष्टाचार के छीटों से उनका दामन नहीं बच सका. उसके अलावा उन्होंने कुछ और सियासी फैसले किए जिसका असर यह हुआ कि 1989 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई. बता दें कि यूपी के अमेठी लोकसभा से वो सांसद थे.

वी पी सिंह

1989 में वी पी सिंह की अगुवाई में जनता दल की सरकार सत्ता में आई. भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर वी पी सिंह, कांग्रेस को दिल्ली की गद्दी से बेदखल कर चुके थे. हालांकि उन्हें सरकार में बने रहने के लिए बैशाखी की मदद लेनी पड़ी. दो धुरविरोधी धड़े यानी बीजेपी और वामदल उन्हें समर्थन दे रहे थे. लेकिन मंडल-कमंडल की राजनीति में वी पी सिंह अपने कार्यकाल को पूरा नहीं कर सके.

चंद्रशेखर

वी पी सिंह के बाद देश की कमान युवा तुर्क के नाम से मशहूर चंद्रशेखर के हाथ में आई हालांकि वो महज चार महीने तक शासन कर सके. बता दें कि वो बलिया लोकसभा सीट से सांसद रहे हैं. कांग्रेस के समर्थन से वो सरकार बनाने में कामयाब जरूर रहे. लेकिन सरकार चार महीने से अधिक नहीं चली. दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय पर हरियाणा पुलिस के दो सिपाही देखे जाने के बाद कांग्रेस ने चंद्रशेखर सरकार पर जासूसी करने का आरोप लगाया और समर्थन वापस ले लिया.


अटल बिहारी वाजपेयी

चंद्रशेखर सिंह के बाद कमान पी वी नरसिम्हाराव, एच डी देवगौड़ा और आई के गुजराल के हाथ में आई. हालांकि इनका नाता यूपी से नहीं था. साल १९९८ से लेकर २००४ तक अटल बिहारी वाजपेयी ने अलग अलग कालखंडों में देश की कमान संभाली. अटल बिहारी वाजपेयी मूल रूप से आगरा के बटेश्वर के रहने वाले थे. यूपी के लखनऊ लोकसभा सीट से वो सांसद हुआ करते थे.


नरेंद्र मोदी

२००४ के १० साल बाद यानी २०१४ में केंद्र की सरकार में बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार बनी. उस सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी बने. मूल रूप से उनका नाता गुजरात राज्य से है. हालांकि वो वाराणसी लोकसभा सीट की नुमाइंदगी कर रहे हैं. 

Tags:    

Similar News