मुद्दों पर चुनाव या ध्रुवीकरण का दांव, मत प्रतिशत बढ़ाने की चुनौती

आम चुनाव 2024 के अभी तक के चरणों में मतदाताओं के जोश में कमी से नेता हैरान हैं. इस बीच हमने समझने की कोशिश की है कि मुद्दा बनाम ध्रुवीकरण में कौन हावी है

By :  Lalit Rai
Update: 2024-05-18 02:46 GMT

Loksabha Election 2024:  चौथे चरण के चुनाव के साथ ही 380 सीटों पर चुनाव संपन्न हो चुका है.  अगर 543 लोकसभा सीट के लिहाज से देखें तो अब आधी से कम सीटों पर मतदान होना है. लोकसभा चुनाव का आगाज मोदी की गारंटी बनाम कांग्रेस की गारंटी से शुरू हुई. लेकिन तीसरे चरण तक आते आते ये मुद्दे कहीं गौड़ हो गए. यहां पर हम बात करेंगे कि यह चुनाव मुद्दों पर आधारित यां ध्रुवीकरण पर दांव लगाया गया. सबसे पहले अगर बात मुद्दों की करें तो विपक्ष की तरफ से महंगाई, भ्रष्टाचार, इलेक्टोरल बांड, ईडी, सीबीआई, सीमा सुरक्षा, आतंकवाद जैसे मुद्दों को उठाया गया. लेकिन पहले और दूसरे चरण के मत प्रतिशत के बाद राजनीतिक दलों की रणनीति में बदलाव आया.

क्या मुद्दे हावी हैं या कहने वाली बात

सियासत के जानकार कहते हैं कि बहुत ही सावधानी के साथ आरक्षण, संविधान को बदलने का मुद्दा बनाया जा रहा है. पीएम नरेंद्र मोदी ने जब बांसवाड़ा की रैली में मंगलसूत्र का मुद्दा उठाकर कांग्रेस को घेरा तो कांग्रेस को बैकफुट पर आना पड़ा. कांग्रेस ने कहा कि अव्वल तो हमारे घोषणा पत्र में इस तरह की बातों का जिक्र नहीं है. लेकिन बीजेपी को झूठ बोलने की आदत है और उनसे आप कुछ अधिक की उम्मीद नहीं कर सकते. इसी तरह सवाई माधोपुर में पीएम मोदी ने आरक्षण के विषय पर कहा कि उन्हें यह मंजूर नहीं कि धर्म के आधार पर आरक्षण दिया जाए. जब वो इस बात को कह रहे थे तो कर्नाटक का जिक्र कर रहे थे. हालांकि विपक्ष की तरफ से सावधानी से जवाब देने की कोशिश की जा रही है.

अब तक का मत प्रतिशत

  • पहले चरण के चुनाव में 66. 7 फीसद
  • दूसरे चरण के चुनाव में 66.5 फीसद
  • तीसरे चरण में भी 66.7 फीसद मतदान
  • चौथे चरण में 67.5 वोटिंग

मत प्रतिशत के बारे में सामान्य सी धारणा है कि मत बढ़ने का मतलब एंटी इंकम्बेंसी. हालांकि 2019 का चुनावी नतीजा इसे झुठला चुका है. कम मतदान में भी मौजूदा सरकार की वापसी, यह 1962 और 1971 में सच साबित हो सका है. दरअसल राजनीतिक दलों को डर यह सता रहा है कि मतदान प्रतिशत कम होने की वजह से उनके वोट शेयर पर असर पड़ा तो निश्चित तौर पर नतीजे कुछ और होंगे. लिहाजा दोनों पक्ष फूंक फूंक कर कदम रख रहा है कि किसी भी सूरत में मतदान प्रतिशत में कमी की वजह से उसके वोट शेयर पर असर ना पड़े.

सियासत पर गहरी नजर रखने वाले गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अनिल राय कहते हैं कि अगर आप गौर करें तो किसी तरह का फतवा नहीं जारी किया गया है. फतवा जारी करने का मतलब यह होता था कि बीजेपी के नेता कहा करते हैं कि इससे तुष्टीकरण की राजनीति की जा रही है. अब तुष्टीकरण का मतलब यह है कि हिंदू समाज को इकट्ठा करने की कोशिश.

क्या सोचते हैं आम लोग

इस विषय पर हमने आम लोगों के मन को टटोला. दिल्ली के जाफराबाद की रहने वाली हुस्ना कहती हैं कि सियासी लोग अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकते हैं. सच में देखा जाए तो बीजेपी इस तरह की कोशिश करती है कि किसी तरह मतों का ध्रुवीकरण हो जाए और उसका फायदा उसे मिल सके.उदाहरण के लिए वो कहती है कि आप आरक्षण के मुद्दे को देखिए. पीएम मोदी कह रहे हैं कि वो एसी,एसटी, ओबीसी के आरक्षण में से विभाजन नहीं होने देंगे. लेकिन ऐसा कहां है, कर्नाटक की सरकार ने जो चार फीसद आरक्षण दिया है उसका आधार तो आर्थिक है. लेकिन यहां जब कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने 50 फीसद आरक्षण की सीमा को हटाने का वादा किया तो बीजेपी ने कहा कि यह समाज के किस वर्ग को खुश रखने की कवायद की जा रही है. उसके बारे में अनुमान लगा सकते हैं.

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