2024 के नतीजों को तय करने में कौन भारी, लाभार्थी या जाति

सियासी पंडित कहते हैं कि 2019 के आम चुनाव के दौरान लाभार्थी शब्द ट्रेंड में आया. क्या यह शब्द अभी भी प्रासंगिक है या जाति ने ग्रहण लगा दिया है.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-05-28 08:39 GMT

LokSabha Election Results 2024: आम चुनाव 2024 कम से कम दो वजहों से खास है. एनडीए सरकार की वापसी का अर्थ जवाहर लाल नेहरू युग की याद. यदि एनडीए को मौका नहीं मिलता तो एक बात साफ है कि जनता ने बदलाव पर मुहर लगा दिया. इन सबके बीच बात चाहे एनडीए की हो या इंडी ब्लॉक की दोनों के दावे हैं कि इस दफा सत्ता उनके हाथ. एनडीए के नेता कह रहे हैं कि पांच चरण के चुनाव में ही हम 300 के पार हैं अब तो 400 तक पहुंचने का इंतजार कर रहे हैं. वहीं इंडी गठबंधन का कहना है कि 4 जून को मोदी युग का खात्मा. इंडी ब्लॉक ने तो बाकायदा 1 जून को मीटिंग भी बुलाई है. बता दें कि 1 जून को ही अंतिम चरण का चुनाव होना है, इन सबके बीच हम बात करेंगे कि लाभार्थी और जाति में कौन किस पर पड़ेगा भारी. इसे समझने से पहले किन्हें लाभार्थी कहा जा रहा है उसे समझिए.

किसे कहते हैं लाभार्थी

समाज के उस हिस्से को नरेंद्र मोदी सरकार लाभार्थी मानती है जो वर्षों से पिछड़े हुए थे. उन्हें बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलती थीं. लेकिन अह वो उज्ज्वला योजना, हर घर नल जल, पीएम कृषि सिंचाई योजना,पीएम किसान योजना, मुद्रा योजना जैसी अनगिनत योजनाओं का फायदा उठा रहे हैं. पीएम मोदी ने इन्हें लाभार्थी वर्ग से संबोधित करना शुरू किया. सवाल यही है कि क्या ये लाभार्थी २०२४ के नतीजों को प्रभावित करेंगे या जात पात के नाम पर वोट करेंगे. इस सवाल के जवाब में पीएम मोदी ने एक बार कहा था कि उनके लिए तो सिर्फ एक ही जाति है और वो है गरीबी. लेकिन जिन गरीबों की बात कर रहे हैं क्या वे बीजेपी के खिलाफ दलों के समर्थन में वोट नहीं करेंगे. इस विषय पर सियासी जानताकारों की राय अलग अलग है.

क्या है सियासी जानकारों की राय

गोरखपुर के पत्रकार अजीत सिंह बेहद अलग तरह का तर्क देते हैं. वो कहते हैं कि इसके लिए आपको यूपी विधानसभा 2022 के नतीजों को समझना होगा. 2019 की तुलना में बीजेपी को 2022 में कम सीटें मिलीं, लेकिन बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही है. उनके मुताबिक सपा और बीएसपी ने अपनी पुरानी जाति का पासा फेंकना शुरू कर दिया था. अखिलेश यादव की सभाओं में जुटने वाली भीड़ भी इशारा कर रही थी कि 2022 में उनके सामने कोई नहीं. लेकिन जब नतीजे आए तो हर कोई हैरान था. यह बात सच है कि बीजेपी की सीट संख्या में कमी आई थी. लेकिन समाज का वो वर्ग जो वर्षों से वंचित था जब उसे योगी मोदी सरकार में कुछ हासिल हुआ तो उसे लगा कि उनके लिए रहनुमा यही लोग हैं.लिहाजा अखिलेश यादव की सभाओं में जिस बड़ी संख्या में भीड़ जुटा करती थी वो मतों में तब्दील नहीं हो सकी. 

हालांकि आगरा में राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाली डॉ अनुपमा कहती हैं कि इसमें दो मत नहीं कि भारत में लाभार्थी वर्ग का उदय हुआ है. यह ऐसा वर्ग है जो चकाचौंध को देखकर ही तसल्ली कर लेता था कि देश आगे बढ़ रहा है. भले ही उसके खाते में कुछ भी ना हो. मोदी सरकार को यह समझ में आया कि एक ऐसे वर्ग को विकसित करना है जिसकी एक ही जाति गरीब की है. यानी कि वो अपने तरक्की के बारे में सोचे और सरकार सहायक की भूमिका में हो. लेकिन सच्चाई ये भी है कि अभी भी भारत में जाति की व्यवस्था गहराई तक जड़ जमाए हुई है और उसका नतीजा नजर भी आता है.

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