Maharashtra Elections : वो पांच मुद्दे जो मतदाताओं को कर सकते हैं प्रभावित
महायुति का लक्ष्य लड़की बहिन योजना के साथ खोई जमीन वापस पाना है, इस कदम ने राज्य में महिला मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित किया है
By : Abhishek Rawat
Update: 2024-11-09 16:51 GMT
Maharashtra Assembly Elections : महाराष्ट्र चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे वैसे सत्ता और विपक्ष के बीच हमले तेज होते जा रहे हैं. चुनाव प्रचार भी तेज होता जा रहा है. क्योंकि बीते ढाई साल में महाराष्ट्र की राजनीती ने जिस तरह से स्वरुप बदला है, उस तरह से इस बार के चुनाव बेहद ही रोमांचक होने जा रहे हैं. दरअसल प्रदेश की दो प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियों में दो फाड़ हो चुकी हैं, जो दो हिस्सों में बंट गयीं हैं. इतना ही नहीं महाराष्ट्र में दोनों ही गठबंधन में दोनों ही क्षेत्रीय दलों के खेमे आमने सामने लड़ रहे हैं, इसलिए ये जनता के लिए भी बेहद ही चुनौती पूर्ण है कि वो किसे चुनती है?
ये हैं सीटों को बंटवारा
कांग्रेस और भाजपा 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने का लक्ष्य लेकर चल रही हैं, लेकिन शिवसेना और एनसीपी के दोनों धड़ों के लिए यह वस्तुतः अस्तित्व की लड़ाई है. महायुति गठबंधन में भाजपा 148 सीटों पर, शिवसेना (शिंदे) 85 और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी 54 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. एमवीए में कांग्रेस 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, उसके बाद शिवसेना (यूबीटी) 92 और एनसीपी (एसपी) 87 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. आज महाराष्ट्र में लोगों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे इस प्रकार हैं.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के प्रमुख बिंदु
मराठा आरक्षण
मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे-पाटिल मराठा समुदाय के लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं. पाटिल द्वारा ओबीसी श्रेणी के तहत मराठों को कोटा लाभ की मांग करते हुए लंबे समय तक किए गए आंदोलन ने समुदाय को महायुति, खासकर भाजपा के खिलाफ कर दिया था. नतीजतन, 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान मराठवाड़ा क्षेत्र में भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा. यहां तक कि दिवंगत भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे, जो भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही थीं, अपनी पारंपरिक सीट बीड हार गईं.
मराठा नेता ने भाजपा को "मराठा विरोधी" करार दिया है, जिसके कारण मराठवाड़ा में सत्तारूढ़ महायुति के लिए 46 विधानसभा सीटें चुनौती बन गई हैं. मराठा समुदाय महाराष्ट्र की आबादी का 32% हिस्सा है और आम चुनावों में आरक्षण के मुद्दे पर इसने महा विकास अघाड़ी (एमवीए) का समर्थन किया था.
महिला मतदाता
लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद, सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन ने मध्य प्रदेश सरकार की लाडली बहना योजना को दोहराया, जिससे भाजपा को राज्य में सत्ता बरकरार रखने में मदद मिली. लड़की बहन योजना के साथ महायुति का लक्ष्य महाराष्ट्र में खोई जमीन वापस पाना है. इस कदम ने चुनावी राज्य में महिला मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित किया है. राज्य में करीब 4.8 करोड़ महिला मतदाता हैं. इस योजना से करीब 2.3 करोड़ महिलाएं पहले ही लाभान्वित हो चुकी हैं. इस योजना के तहत सरकार 21-65 वर्ष की आयु की उन महिलाओं को 1,500 रुपये प्रति माह प्रदान करती है, जिनकी सालाना आय 2.5 लाख रुपये या उससे कम है. योजना की लोकप्रियता को देखते हुए, एमवीए ने भी इसे अपनी पांच चुनावी गारंटियों में से एक में शामिल किया है और साथ ही इस राशि को बढ़ाकर 3,000 रुपये प्रति माह करने का वादा किया है.
कृषि संकट
महाराष्ट्र में किसान बढ़ते कर्ज, लाभकारी मूल्यों की कमी, फसल बीमा, सिंचाई सुविधाओं, बिजली आपूर्ति और वन भूमि अधिकारों जैसी कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, दोनों प्रतिद्वंद्वी गठबंधनों ने खुद को ऋण माफी के वादे तक ही सीमित रखा है.
सूखे की मार झेल रहे किसानों को अपनी फसल का उचित दाम भी नहीं मिल पाया है. लातूर की मंडी में सोयाबीन औसतन 4,350-4,400 रुपये प्रति क्विंटल बिकी, जो एमएसपी 4,892 रुपये प्रति क्विंटल से काफी कम है. इसी तरह यवतमाल में कपास 6,500-6,600 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है, जो एमएसपी 7,122 रुपये प्रति क्विंटल से भी कम है. प्याज के निर्यात पर सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण प्याज के किसानों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. वे पहले से ही अभूतपूर्व मौसम और जल संकट के कारण फसल के नुकसान से जूझ रहे थे.
महाराष्ट्र अक्सर किसानों की आत्महत्या के लिए सुर्खियों में रहता है. इस साल जनवरी से जून तक राज्य में 557 किसानों ने आत्महत्या की है. किसानों की आत्महत्या के ज़्यादातर मामले राज्य के अमरावती संभाग से सामने आए हैं.
महाराष्ट्र बनाम गुजरात
पिछले कुछ वर्षों से एमवीए, कुछ बड़ी परियोजनाओं को महाराष्ट्र से गुजरात स्थानांतरित करने की अनुमति देने के लिए महायुति सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाए हुए है. एमवीए, खास तौर पर शिवसेना (यूबीटी) जिसकी विचारधारा 'मराठी मानुस' के इर्द-गिर्द घूमती है, ने अक्सर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार पर "राज्य के युवाओं को नौकरी के अवसरों से वंचित करने" का आरोप लगाया है, जो इन परियोजनाओं से पैदा हो सकते थे. इसकी शुरुआत वेदांता-फॉक्सकॉन द्वारा सितंबर 2022 में अहमदाबाद में 1.54 लाख करोड़ रुपये की सेमीकंडक्टर परियोजना के लिए गुजरात के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने से हुई, जबकि उसी संयंत्र को लेकर महाराष्ट्र के साथ इसकी बातचीत कथित तौर पर अंतिम चरण में थी.
शरद पवार भी इस मुद्दे पर मुखर रहे हैं, उनका दावा है कि महाराष्ट्र से उद्योग छीने जा रहे हैं और कारोबार गुजरात की ओर मोड़ा जा रहा है. एमवीए नेताओं का दावा है कि महाराष्ट्र, जो कभी देश का अग्रणी राज्य था, अब बेरोजगारी और किसानों के मुद्दों से ठीक से न निपटने के कारण छठे स्थान पर आ गया है.
शरद-उद्धव के प्रति सहानुभूति
शिवसेना और एनसीपी में विभाजन तथा उनके प्रतिद्वंद्वी गुटों के एमवीए और महायुति के साथ गठबंधन ने उन्हें एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया है. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनावों में यह स्पष्ट हो गया कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सेना और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी अपने प्रतिद्वंद्वी गुटों पर बढ़त बनाए हुए हैं. शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने विशेष रूप से उपमुख्यमंत्री अजित पवार के नेतृत्व वाले गुट को मात देते हुए 10 में से 8 सीटें जीतीं. हालांकि उद्धव सेना और शिंदे सेना द्वारा जीती गई सीटों की संख्या में बहुत अंतर नहीं था, लेकिन उद्धव को अभी भी कई लोग बालासाहेब ठाकरे की विरासत के उत्तराधिकारी के रूप में देखते हैं.
शरद पवार और उद्धव ठाकरे दोनों को ही भाजपा द्वारा उनकी पार्टियों में फूट डालने के बाद लोगों की सहानुभूति मिली है. विधानसभा चुनाव में यह बात फिर से इन दोनों पार्टियों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है.