दलबदलुओं पर सवाल लेकिन टिकट देने से परहेज नहीं, आखिर क्या है वजह

भारत के राजनीतिक इतिहास में दल बदलने वालों की कहानी नई बात नहीं है, नेता सुविधा से अपनी विचारधारा बदल लेते हैं. और राजनीतिक दल अपने दल में शामिल भी कर लेते हैं.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-05-20 01:46 GMT

Turncoats story in Indian politics: उत्तर प्रदेश में अगर आप किसी भी इलाके में जाएं तो दो शब्द साफ तौर पर सुनाई देंगे. पहला निर्दल और दूसरा दलबदलू. निर्दल के बारे में लोग कहते भी हैं कि सभी दलों में दलदल है सबसे अच्छा निर्दल है, वहीं दलबदलू का मतलब अगर बात नहीं बनी, मतलब नहीं सधा तो पाला बदल लो. वैसे पाला बदलने वालों की बात सिर्फ यूपी तक ही सीमित नहीं है. देश के सभी राज्यों में इनकी अच्छी खासी संख्या है. आपने एक बात पर और गौर किया होगा कि दलबदलू चुनाव के समय पाला बदलते हैं. चुनाव के समय उनके दिमाग में सिद्धांत, नैतिकता जैसी बातें घंटी की तरह घनघनाने लगती है और वो दल बदल लेते हैं.

दलबदलू किसी खास दल तक सीमित नहीं

अब दलबदल की कहानी किसी खास दल तक सीमित नहीं है, आप इस मामले में हम्माम में सब नंगे है मुहावरे को सटीक मान सकते हैं. बड़े बड़े सियासी दल चुनाव से पहले तो इस तरह की संस्कृति की मुखालफत करते हैं. लेकिन चुनाव आते ही अपने किए पर आंख मूंद लेते हैं और दूसरे के किये पर हो हल्ला-हंगामा. लेकिन असल सवाल यही है कि दलबदल का विरोध करने वाले दल ऐसे नेताओं को मौका क्यों देते हैं.

लड़ाई मैजिक नंबर की

दरअसल लड़ाई मैजिक नंबर की है. केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के लिए किसी भी दल को 272 के आंकड़े की जरूरत होती है. अब इस नंबर को कोई भी राजनीतिक दल या को अपने दम पर हासिल करे या गठबंधन के दम पर. यानी की 272 तक पहुंच बनाने के लिए एक एक सीट अहम है. अब जब बात सीट की है तो राजनीतिक दल सिद्धांतों को कुछ देर के लिए किनारे कर देते हैं.

बीजेपी बनाम कांग्रेस, कौन आगे-कौन पीछे

यहां पर हम देश के दो सबसे बड़े सियासी दल बीजेपी और कांग्रेस में दलबदलुओं की संख्या पर करेंगे. सेंटर फॉर पोलिटिकल डेटा के मुताबिक बीजेपी के 438 उम्मीदवारों में से 135 दलबदलू यानी कि 30 फीसद उम्मीदवार दूसरे दलों से आए हैं. कांग्रेस के लिए यह आंकड़ा 62 का है. 2024 के चुनाव में कांग्रेस 327 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. यहां एक बात पर और ध्यान देने की जरूरत है कि बीजेपी के कुल 135 दलबदलुओं में से 100 उम्मीदवार 2014 के चुनाव के बाद शामिल हुए थे. वहीं कांग्रेस में 55 उम्मीदवार 2014 के बाद शामिल हुए. यानी कि 2019 और 2024 में आंकड़े कम हैं.

बीजेपी के 43 दलबदलू ऐसे हैं जो पहले कांग्रेस में रहे और कांग्रेस में 22 ऐसे लोग हैं जिनका नाता बीजेपी से रहा. लेकिन एक खास बात यह भी है कि बीजेपी और कांग्रेस के दलबदलुओं का नाता कहीं ना कहीं छोटे दलों से भी रहा है. अब बात करेंगे कि ऐसे उम्मीदवार जो अपनी पार्टी बदलते हैं उसका प्रदर्शन कैसा रहता है. 1984 तक कांग्रेस में जो लोग पार्टी बदल कर आए उनके जीतने की संभावना अधिक थी. 1997 इसका अपवाद है, हालांकि 1990 के बाद कांग्रेस में जो लोग शामिल होकर चुनाव लड़े उन्हें जीत कम मिली. लेकिन बीजेपी में जो शामिल हुए थे उन्होंने जीत दर्ज की.

2019 के आंकड़े

2019 में बीजेपी ने दूसरे दलों से आने वालों को कम टिकट दिया. जबकि 2014 में यह संख्या अधिक थी. 2019 में बीजेपी ने 23 जबकि कांग्रेस ने 40 पाला बदल करने वालों को टिकट दिया था. 2014 में बीजेपी ने 33 और कांग्रेस ने 19 को टिकट दिया था.

क्या कहते हैं जानकार

इस विषय पर जानकार कहते हैं कि अक्सर देखा गया है कि दल बदल वही नेता करते हैं जिनका अपना कुछ आधार है, जब लड़ाई सत्ता में बने रहने की हो और नेता जनसेवा का सिर्फ यही साधन मानते हों तो दलबदल रोका नहीं जा सकता. यह बात सच है कि दलबदलुओं दलबदलुओं पर सवाल लेकिन टिकट देने से परहेज नहीं, आखिर क्या है वजहके जरिए राजनीतिक दल कमजोर इलाकों में खुद को मजबूत करने का रास्ता ढूंढते हैं. लेकिन अगर आप यूपी सरकार में मंत्री दारा सिंह चौहान को देखें तो आप को एक बात समझ में आएगी. दारा सिंह चौहान अलग अलग दलों में रहे. लेकिन पिछले वर्ष जब वो सपा छोड़ एक बार बीजेपी में शामिल हो कर चुनाव लड़े तो जनता ने उन्हें हरा भी दिया.

Tags:    

Similar News