जन्म से इंडियन सांस से उड़िया, क्यों- वी के पांडियन की हो रही है चर्चा

वी के पांडियन को सीएम नवीन पटनायक का सबसे करीबी अफसर कहा जाता था. इस समय वो बीजेडी में नंबर दो पर हैं, लेकिन उनका उड़िया ना होना विवाद की वजह है.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-05-17 07:53 GMT

VK Pandian News:  जन्म से भारतीय सांसों से उड़िया,जानें क्यों वी के पांडियन की हो रही है चर्चा. राजनीतिक तौर पर ओडिशा को शांत राज्य माना जाता है. लेकिन इस समय चर्चा में है. चर्चा का विषय भी राजनीतिक कम एक शख्सियत पर जाकर टिक गई है. नाम वी कार्तिकेयन पांडियन है. पचास की उम्र में आईएएस की नौकरी छोड़ बीजू जनता दल के हिस्सा बन चुके है. इनके बारे में कहा जाता है कि वो सीएम नवीन पटनायक के इतने करीब पहुंचे कि प्रशासनिक फैसलों में इनका दखल रहता था. अब जब वो बीजेडी का हिस्सा बन चुके हैं तो उन्हें नवीन पटनायक के बाद सेकेंड इन कमान माना जा रहा है. हालांकि पांडियन के इस सफर पर विपक्षी दल निशाना साध रहे हैं. सवाल यह है कि नवीन पटनायक से अधिक आलोचना पांडियन की क्यों हो रही है.

तमिलनाडु के हैं वी के पांडियन

दरअसल पांडियन मूल रूप से ओडिशा के नहीं रहने वाले हैं. मूल रूप से उनका कैडर भी ओडिशा नहीं था. सुजाता राउत नाम की आईएएस अधिकारी से शादी के बाद उन्हें ओडिशा कैडर मिला. साल 2000 में नवीन पटनायक जब सीएम बने तो उनकी नजर पांडियन पर पड़ी और उन्होंने पटनायक का दिल जीत लिया. उसका असर यह हुआ कि नवीन पटनायक ना सिर्फ प्रशासनिक फैसले बल्कि राजनीतिक फैसलों में भी सलाह लेने लगे. ओडिशा की राजनीति में यह चर्चा आम भी है कि नवीन पटनायक आगे चलकर पांडियन को पार्टी और सरकार की कमान सौंप सकते हैं और विरोध की वजह भी यही है.

उड़िया ना होने पर विरोध

पांडियन अपने खिलाफ विरोध के बारे में कहते हैं कि वो जन्म से उड़िया नहीं हैं लेकिन सांस से तो हैं, उनके बच्चे उड़िया हैं. उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि कोई क्या कहता है. ओडिशा उनकी कर्मभूमि रही है और वो ऐसा मानते हैं कि जन्मभूमि से बड़ी कर्मभूमि होती है. ये बात अलग है कि बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस भी ओडिशा अस्मिता का जिक्र कर रही है, जनता के बीच दोनों दलों के नेता इस बात को उठा रहे हैं कि क्या नवीन बाबू को पार्टी में और कोई नहीं मिला था.

बीजेपी को पांडियन का करारा जवाब

बीजेपी के नेता जब मुखर होकर पांडियन को आउटसाइडर बताते हैं तो वो जवाब भी देते हैं. पांडियन कहते हैं कि ओडिशा अस्मिता की बात आप यहां के लोगों पर छोड़ दीजिए. बीजेपी को तो हक भी नहीं है, बीजेपी ने भारत रत्न के लिए बीजू पटनायक के नाम पर चुप्पी क्यों साध ली. 1817 के पाइका विद्रोह से जुड़े लोगों का सम्मान नहीं दिया. बात जब ओडिशा की अस्मिता की आई तो इन लोगों ने चुप्पी साध ली.

पांडियन को पटनायक दे सकते हैं कमान

ओडिशा की राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि नवीन पटनायक हिंजिली और कांटाबंजी से चुनाव लड़ रहे हैं. वो किसी एक सीट को पांडियन के लिए छोड़ सकते हैं. इस बात की ज्यादा संभावना है कि लोकसभा में बीजेडी को बेहतर सफलता नहीं मिले हालांकि 147 सदस्यों वाली विधानसभा में बीजेडी के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है. ओडिशा की सियासी गलियारों में यह चर्चा आम है कि अगग नवीन पटनायक ने गद्दी छोड़ी तो सरकार की कमान पांडियन के हाथ में होगी. 

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