Delhi Pollution: सिर्फ कागजों पर अदालती आदेश का पालन, एक बार फिर जहरीली हुई हवा
दिवाली के मौके पर हमें जहरीली हवा में जीने की आदत डाल लेनी चाहिए। सरकारों के वादे खोखले साबित हो जाते हैं और दावों की तो पोल खुल ही जाती है।
Delhi NCR Air Pollution: दिल्ली-एनसीआर का ये मर्ज पुराना है। अक्टूबर महीने की आहट होते ही सरकारी मशीनरी बड़े बड़े दावे और वादे करने लग जाती हैं। लेकिन नतीजा सिफर। लेकिन यह हाल सिर्फ दिल्ली या उसके आसपास के शहरों का नहीं है। मायानगरी मुंबई की हवा में जहर है तो चेन्नई भी अछूता। यानी शहरों के सिर्फ नाम बदले हैं समस्या एक जैसी। लोगों की कद काठी भले ही अलग अलग हो। लेकिन सांस पर स्मॉग का पहरा। यहां हम खासतौर से बात करेंगे दिल्ली और एनसीआर की क्योंकि यहां की समस्या कुछ अलग तरह की है। दिल्ली सरकार का तर्क रहता है कि जहरीली हवा के लिए अकेले उन्हें कसूरवार नहीं ठहरा सकते। अगर बगल के राज्य हैं उनकी कमियों का खामियाजा हमें भुगतना पड़ता है। हालांकि सवाल दिल्ली सरकार से है कि उन 377 टीमों, पटाखों के बैन का क्या हुआ। अगर आपकी कोशिश रंग लाई होती तो दिल्ली के विवेक विहार में प्रदूषण का स्तर 30 गुना अधिक नहीं बढ़ जाता।
यहां सवाल इस बात का भी है कि अगर देश की सुप्रीम कोर्ट पटाखों के मुद्दे पर सख्त और प्रदूषण के मुद्दे पर गंभीर है तो सरकार और प्रशासन अपनी जिम्मेदारी को किस हद तक निभाता है। दिल्ली के आनंद विहार में एक्यूआई का आंकड़ा 400 पार, वजीराबाद की तस्वीर भी आनंद विहार की तरह। यहां पर सिर्फ समझने के लिए दो जगहों को जिक्र कर रहे हैं। लेकिन तस्वीर तो कमोबेश एक जैसी ही थी। सवाल यह है कि जो सरकार कानूनी आदेश को अमल में लाने की बात कह रही थी। उसने ऐसे कितने लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जिन्होंने नियमों की धज्जियां उड़ाईं। क्या अदालत का आदेश सिर्फ कागजी आदेश है।
दिल्ली की तस्वीर
मुंबई का हाल
चेन्नई भी अलग नहीं
नोएडा, गाजियाबाद और गुरुग्राम सहित दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों का प्रदर्शन कुछ बेहतर रहा, जो "खराब" AQI श्रेणी में रहे, जबकि फरीदाबाद में अपेक्षाकृत मध्यम AQI 181 दर्ज किया गया। फिर भी, प्रतिकूल मौसम संबंधी परिस्थितियों, वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन, स्थानीय प्रदूषण और पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने के कारण दिल्ली-एनसीआर में धुंध बढ़ गई, जो सर्दियों में चरम पर होती है।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) के अनुसार, नवंबर की शुरुआत में प्रदूषण का उच्चतम स्तर रहने की उम्मीद है क्योंकि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि होने की उम्मीद है।पिछले कुछ वर्षों में, दिल्ली में दिवाली पर वायु गुणवत्ता में उतार-चढ़ाव देखा गया है, 2022 में 312, 2021 में 382 और 2020 में 414 AQI दर्ज किया गया। पटाखों के उपयोग पर अंकुश लगाने के लिए सरकार के बार-बार प्रयासों के बावजूद, त्योहार के दौरान शहर का वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।
क्या कहते हैं लोग
सवाल यह है कि सरकार जब इतने उपायों की बात करती है तो नतीजा सामने क्यों नहीं आता। इस सवाल के जवाब इलाका या शहर कोई भी हो जवाब एक जैसा। लोग कहते हैं कि सरकार की जिम्मेदारी तो है लेकिन आम जनता भी कम जिम्मेदार नहीं। हर एक शख्स यह तो मानता है कि दिल्ली एनसीआर की हवा रहने के लायक नहीं है। लेकिन बात जब पटाखों की आती है तो कोई पीछे नहीं रहता। यह भी बात है कि एक तरफ आप पटाखों पर बैन की बात करते हैं लेकिन उसके सोर्स पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं करते। दिल्ली और एनसीआर की वजह तो समझ में आ रही है कि कुछ हद तक पड़ोसी राज्य जिम्मेदार हैं। लेकिन मुंबई और चेन्नई में जो तस्वीर बन रही है उसका जवाब क्या है। दरअसल इस तरह की समस्या को आप जन भागीदारी के साथ ही रोक सकते हैं सरकारें सिर्फ सुधार करने वाली व्यवस्था की विकास भर कर सकती हैं।