टैरिफ से 90 दिन की राहत, लेकिन खेती-किसानी के सामने दिक्कत कम नहीं

RBI कृषि के मामले में आशावादी है। लेकिन वैश्विक निर्यात-व्यापार अनिश्चितता के कारण भारत को चिंता हो सकती है, क्योंकि जवाबी कार्रवाई व्यवहारिक विकल्प नहीं है।;

Update: 2025-04-14 07:10 GMT
यदि जुलाई में ट्रंप के टैरिफ़ हटा दिए जाते हैं, तो बासमती चावल अस्थायी रूप से लागत प्रतिस्पर्धात्मकता में अपनी स्थिति खो सकता है, लेकिन भारत अभी भी चीन, वियतनाम और थाईलैंड जैसे अधिक कर वाले प्रतिस्पर्धियों द्वारा खाली किए गए बाजार हिस्से पर कब्ज़ा कर सकता है। प्रतीकात्मक छवि

दुनिया जब डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ को लेकर बहस कर रही है, और व्यापार युद्ध महज एक ट्वीट की दूरी पर नजर आ रहा है, तब भारत का कृषि क्षेत्र एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है। मानसून पर भारी निर्भरता, अस्थिर फसल उत्पादन और घरेलू व अंतरराष्ट्रीय खरीदारों की मांग में उतार-चढ़ाव के चलते इसका भविष्य अनिश्चितता से भरा दिखता है।

अमेरिकी टैरिफ से भारत पर असर

ट्रंप प्रशासन ने पहले भारतीय कृषि आयात पर 26% टैरिफ प्रस्तावित किया, लेकिन फिर उसे रोक दिया। इस असमंजस ने वैश्विक खरीदारों में चिंता बढ़ा दी है। भारत का अमेरिका के साथ कृषि व्यापार में अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) है, खासतौर पर बासमती चावल, झींगा, गेहूं और भैंस के मांस के निर्यात में।

2024 में भारत से अमेरिका को कृषि और प्रोसेस्ड फूड आयात $6.04 अरब रहा, जबकि अमेरिका से भारत को इसी श्रेणी में निर्यात मात्र $1.94 अरब रहा।

ट्रंप का सार्वभौमिक टैरिफ और 57 देशों पर अतिरिक्त शुल्क

ट्रंप ने 2 अप्रैल को अमेरिका में आयातित सभी उत्पादों पर 10% सार्वभौमिक टैरिफ की घोषणा की, जो 5 अप्रैल से लागू हुआ। इसके अतिरिक्त 57 देशों पर 11% से 50% तक 'प्रतिशोधात्मक' टैरिफ लगाने का ऐलान भी किया गया, जो 9 अप्रैल से प्रभावी हुआ।

हालांकि, इन ऊंचे टैरिफों को 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया गया, लेकिन केवल चीन को इस छूट से बाहर रखा गया। यह छूट 8 जुलाई को समाप्त हो जाएगी।

असलियत बनाम धारणा

JM Financial के अनुसार, अमेरिका से भारत को कृषि, मांस और प्रोसेस्ड फूड निर्यात पर औसत टैरिफ 2024 में 37.66% रहा, जबकि भारत से अमेरिका को इन्हीं उत्पादों पर मात्र 5.29% शुल्क लगता है। इस 32.37% के अंतर को ट्रंप प्रशासन अनुचित मानते हुए अपने टैरिफ को उचित ठहराता है।

लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि असली टैरिफ अंतर महज 4.9% है। अमेरिकी आंकड़े गैर-टैरिफ उपायों, जैसे घरेलू टैक्स और मुद्रा दर हेरफेर को भी जोड़ते हैं, जिससे टैरिफ का आंकड़ा 52% तक पहुंच जाता है, जो असल से काफी अधिक है।

भारत की सोच-समझकर उठाए गए कदम

भारत ने ट्रंप की नीतियों के जवाब में कोई प्रतिशोधात्मक टैरिफ नहीं लगाया, जबकि चीन (15%) और कनाडा, यूरोपीय संघ (25%) ने ऐसा किया। भारत ने अमेरिका को सहयोगात्मक संकेत देते हुए बादाम, अखरोट और क्रैनबेरी पर टैरिफ में छूट दी, जिससे व्यापारिक तनाव को कम किया जा सके।

सीफूड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने भी वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात कर भारतीय झींगा निर्यात पर प्रस्तावित टैरिफ के असर पर चर्चा की।

आरबीआई ने दिखाई आशा की किरण

भले ही भू-राजनीतिक हालात अस्थिर हों, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने कृषि क्षेत्र को लेकर आशावादी रुख अपनाया है। बेहतर जलाशय स्तर और फसल उत्पादन को देखते हुए RBI ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था के मजबूत होने की संभावना जताई है।

धनंजय सिन्हा, सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के रिसर्च प्रमुख ने कहा कि कृषि क्षेत्र भारत की आर्थिक मजबूती का केंद्र बिंदु बना हुआ है, खासकर वैश्विक संरक्षणवाद और घरेलू मांग में कमजोरी के दौर में।

विश्लेषकों की राय: कृषि पर असर सीमित

विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप के टैरिफ के बावजूद भारतीय झींगा निर्यात स्थिर रह सकता है, क्योंकि अमेरिकी खाद्य खर्च में इसका हिस्सा छोटा है। वहीं, बासमती चावल की प्रतिस्पर्धात्मकता थोड़ी प्रभावित हो सकती है, लेकिन भारत उन बाजारों को कब्जा कर सकता है जो चीन, वियतनाम और थाईलैंड जैसे ज्यादा टैक्स वाले देशों से खाली होंगे।

पिछली घटनाओं से मिले सबक

भारत ने सितंबर 2022 में टूटे चावल और 20 जुलाई 2023 को नॉन-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर रोक लगाई थी, जिससे वैश्विक बाजारों में उथल-पुथल मच गई। थाईलैंड और वियतनाम जैसे देशों ने इस अवसर का लाभ उठाकर अफ्रीकी बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा ली।

IMF की चेतावनी

IMF ने पहले ही चेतावनी दी थी कि संरक्षणवादी नीतियां वैश्विक खाद्य कीमतों में अस्थिरता को और बढ़ा सकती हैं। IMF के मुख्य अर्थशास्त्री पियरे-ओलिवियर गॉरिनचास ने कहा कि प्रतिशोधात्मक व्यापार नीतियां वैश्विक कृषि बाजार के संतुलन को बिगाड़ सकती हैं।

निष्कर्ष:

ट्रंप की टैरिफ नीति भारत के कृषि व्यापार के लिए चुनौती जरूर है, लेकिन भारत की संयमित रणनीति, बेहतर मानसून और वैश्विक व्यापार का समझदारी से प्रबंधन कृषि को मजबूती देने का कार्य कर सकता है। आने वाले समय में भारत को आक्रामक प्रतिक्रियाओं की बजाय रणनीतिक संतुलन अपनाते हुए अपने कृषि निर्यात को नया विस्तार देना होगा।

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