Election Commission: चुनाव आयोग के आदेश में बदलाव, अंतिम SIR आदेश में नहीं आया सिटीजन एक्ट का हवाला
यह निर्देश उस प्रक्रिया की ओर इशारा करता है, जिसमें सभी मौजूदा मतदाताओं को एन्यूमरेशन फॉर्म भरना था और कुछ विशेष श्रेणियों के लोगों को अतिरिक्त दस्तावेज देने पड़ते थे, ताकि उनकी पात्रता साबित हो सके।
Special Intensive Revision: चुनाव आयोग ने जब 24 जून को बिहार से शुरू होने वाले देशव्यापी स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) का आदेश जारी किया तो चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधु ने ड्राफ्ट में एक नोट दर्ज किया। संधु ने ड्राफ्ट आदेश में लिखा कि ध्यान रखा जाए कि वास्तविक मतदाता/नागरिक खासकर बुजुर्ग, बीमार, विकलांग (PwD), गरीब और अन्य संवेदनशील समूह परेशान न हों और उन्हें सुविधा प्रदान की जाए।
यह निर्देश उस प्रक्रिया की ओर इशारा करता है, जिसमें सभी मौजूदा मतदाताओं को एन्यूमरेशन फॉर्म भरना था और कुछ विशेष श्रेणियों के लोगों को अतिरिक्त दस्तावेज देने पड़ते थे, ताकि उनकी पात्रता साबित हो सके। इसके बाद मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने इस फाइल पर अंतिम अनुमोदन किया।
ध्यान देने वाली बात यह है कि आदेश को जारी करने की तत्कालता को दर्शाते हुए, ड्राफ्ट आदेश उसी दिन व्हाट्सएप पर भी मंजूर किया गया। लेकिन जब 24 जून की शाम को अंतिम आदेश सार्वजनिक हुआ तो उसमें एक महत्वपूर्ण बदलाव नजर आया। ड्राफ्ट आदेश में पैराग्राफ 2.5 और 2.6 में SIR को नागरिकता एक्ट से जोड़ा गया था, जिसमें 2004 में हुए संशोधन का हवाला देकर यह बताया गया कि देशभर में इतने समय से कोई इंटेंसिव रिविजन नहीं हुआ। हालांकि, इसमें नागरिकता एक्ट और 2003 में पारित संशोधन का कोई जिक्र नहीं था।
फाइनल आदेश के पैराग्राफ 8 में लिखा गया कि जहां, संविधान के अनुच्छेद 326 में यह मूल शर्त रखी गई है कि किसी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची में दर्ज होने के लिए उसे भारतीय नागरिक होना आवश्यक है। इस प्रकार आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि केवल नागरिक ही शामिल हों। यहां वाक्य अचानक रुक जाता है और सेमीकोलन के बाद अधूरा रह जाता है। 24 जून के बाद से चुनाव आयोग ने इस अधूरी पंक्ति पर कोई टिप्पणी नहीं की।