केंद्र ने राज्यों को जीएसटी मुआवज़े को लेकर किस तरह वर्षों से दबाव में रखा

सीएजी ने बार-बार भारी देरी और उपकर (Cess) के दुरुपयोग पर सवाल उठाए, लेकिन न तो केंद्र ने हालात सुधारे और न ही विपक्ष शासित राज्यों ने मुआवज़े पर कोई बड़ा हंगामा किया।;

Update: 2025-09-08 03:07 GMT
सितंबर 2019 में, जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गोवा में हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में कहा कि केंद्र वित्तीय संकट का सामना कर रहा है, उसी समय आरबीआई ने सरकार को रिकॉर्ड 1.76 लाख करोड़ रुपये का अधिशेष ट्रांसफर किया था। ठीक उसी दौरान केंद्र ने अचानक 1.45 लाख करोड़ रुपये की भारी-भरकम कॉर्पोरेट टैक्स कटौती की घोषणा भी कर दी थी।

29 अगस्त को आठ विपक्ष शासित राज्यों के वित्त और राजस्व मंत्रियों ने नई दिल्ली में बैठक कर हालिया जीएसटी पुनर्गठन (re-jig) से होने वाले संभावित राजस्व घाटे के लिए मुआवज़े की मांग की। यह बैठक 3 सितम्बर को होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक से कुछ दिन पहले हुई थी, जिसमें बदलाव को अंतिम रूप देना था। राज्यों ने आशंका जताई कि उन्हें 15-20% तक का राजस्व नुकसान होगा। लेकिन जीएसटी काउंसिल ने, जिसमें वे खुद भी सदस्य हैं, इस मुद्दे पर कुछ नहीं कहा और पुनर्गठन को मंज़ूरी दे दी।

मीडिया को फैसलों की जानकारी देते हुए राजस्व सचिव अरविंद श्रीवास्तव ने बताया कि इस पुनर्गठन से सालाना 48,000 करोड़ रुपये का राजस्व घाटा होगा — जिसमें से आधा यानी 24,000 करोड़ रुपये राज्यों का घाटा होगा, क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों ही जीएसटी राजस्व को बराबर बांटते हैं।

लेकिन कोई विरोध की आवाज़ नहीं

श्रीवास्तव ने इसे "राजस्व घाटा" कहने से भी इंकार कर दिया। उन्होंने कहा — “इसे राजस्व घाटा कहना सही नहीं होगा।” उनका तर्क था कि जीएसटी दरों में कटौती से खपत बढ़ेगी और जीएसटी वसूली बढ़कर घाटे को कुछ हद तक पूरा कर देगी। बाकी हिस्सा सरकार या तो खर्च घटाकर या फिर बाज़ार से कर्ज़ लेकर संभाल लेगी।

इसके बावजूद विपक्ष शासित राज्यों से ज़रा भी विरोध की आवाज़ नहीं उठी, जिससे कई सवाल खड़े हुए।

जीएसटी मुआवज़े की बुनियादी बातें

1. जब 2017 में नया कर ढांचा (GST) लागू हुआ, तब राज्यों को उनके राजस्व नुकसान की भरपाई के लिए जीएसटी मुआवज़ा देने का प्रावधान किया गया। यह नुकसान उन 9 अप्रत्यक्ष करों के समायोजन से हुआ था जिन्हें राज्यों ने छोड़कर जीएसटी में शामिल कर दिया था। इसकी गणना का आधार वर्ष 2015-16 तय किया गया।

2. मुआवज़ा 5 वर्षों के लिए तय किया गया था — 1 जुलाई 2017 से 30 जून 2022 तक।

3. इसके लिए केंद्र ने 2017 में जीएसटी मुआवज़ा उपकर (GST Compensation Cess) लगाया।

4. यह माना गया कि 5 साल बाद जीएसटी स्थिर हो जाएगा और राज्य अपने एसजीएसटी (State GST) से जीएसडीपी के अनुपात में 14% की सालाना वृद्धि बनाए रख पाएंगे।

लेकिन असलियत अलग निकली।

केंद्र ने कैसे राज्यों को घाटे में डाला

वित्त मंत्रालय की थिंक टैंक, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (NIPFP) ने हाल ही में (FY19-FY24) राज्यों के राजस्व पर जीएसटी के असर का अध्ययन किया।

इसने पाया कि “कुछ सालों और कुछ राज्यों को छोड़कर, राज्य जीएसटी वसूली उनके जीएसडीपी के अनुपात में 2015-16 की तुलना में लगातार कम रही।”

18 बड़े राज्यों में से सिर्फ 6 राज्यों (आंध्र प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल) ने कभी बेसलाइन से बेहतर प्रदर्शन किया। महाराष्ट्र ने छह में से पाँच साल (FY21 को छोड़कर) यह कर दिखाया। बाकियों का हाल और भी खराब रहा।

यहां तक कि मुआवज़ा मिलने के बावजूद कई राज्य बेसलाइन से नीचे ही रहे।

18 राज्यों में से:

9 राज्यों ने एक बार लक्ष्य चूका

2 राज्यों ने दो बार

3 राज्यों ने तीन बार

1 राज्य ने चार बार

सिर्फ हरियाणा और महाराष्ट्र ही ऐसे थे जिन्होंने कभी लक्ष्य नहीं चूका।

एक और चिंताजनक तथ्य

जीएसटी मुआवज़ा 30 जून 2022 को खत्म हो गया। कुछ राज्यों को 2023-24 में बकाया राशि मिली। फिर भी 18 में से सिर्फ 6 राज्य ही 2023-24 में 2015-16 की तुलना में बेहतर एसजीएसटी हिस्सेदारी बनाए रख पाए। यानी केंद्र ने राज्यों को 2 साल तक मुआवज़ा देने में देरी की और किसी राज्य ने इस पर बड़ा हंगामा नहीं किया।

2019 में क्या हुआ?

जीएसटी जुलाई 2017 में लागू हुआ। पहले तीन साल (FY18-FY20) केंद्र ने उपकर से मुआवज़ा दिया। लेकिन सितंबर 2019 में गोवा में हुई जीएसटी काउंसिल बैठक में केंद्र ने अचानक कहा कि वह अब मुआवज़ा देने की स्थिति में नहीं है। नवंबर 2019 में इस बाबत राज्यों को औपचारिक पत्र भी भेजा गया।

इसके बाद केंद्र ने खुले तौर पर कहा कि राज्यों को अपने घाटे की भरपाई के लिए बाज़ार से कर्ज़ लेना चाहिए। यह धमकी 2020-21 और 2021-22 में सच कर दिखाई गई।

इस तरह केंद्र ने न सिर्फ 2017 के GST (Compensation to States) Act का उल्लंघन किया, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “सहकारी संघवाद” (cooperative federalism) के वादे को भी ध्वस्त कर दिया।

कमजोर विरोध

लेकिन राज्यों ने इस फैसले के खिलाफ न तो तेज़ विरोध किया और न ही अदालतों का दरवाज़ा खटखटाया। उनका विरोध बेहद धीमा और कमजोर था। बाद में प्रशासनिक जटिलताएँ सामने आईं (हर राज्य को अलग-अलग आरबीआई से कर्ज़ लेना पड़ता), जिससे केंद्र को उनकी ओर से आरबीआई से कर्ज़ लेना पड़ा। केंद्र ने FY21 में 1.1 लाख करोड़ रुपये और FY22 में 1.6 लाख करोड़ रुपये उधार लेकर इन्हें राज्यों को “वापस करने योग्य” (repayable) कर्ज़ के रूप में दिया।

भारत के कैग (CAG) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में, जो पिछले महीने संसद में पेश हुई, इसकी पुष्टि की कि यह कर्ज़ शुरुआत में राज्यों द्वारा ही लौटाया जाना था।

उसने लिखा कि ये कर्ज़ “मुख्य खाता 7601/7602 (ऋण और अग्रिम) के ज़रिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को दिए गए थे, जिसका अर्थ है कि इन्हें राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से वसूला जाना था।”

6 लाख करोड़ रुपये का उपकर कहाँ है?

आख़िरकार केंद्र को समझ आया और उसने खुद ही यह कर्ज़ चुकाने का निर्णय लिया। 24 जून 2022 को जीएसटी क़ानून के नियमों में संशोधन करके उपकर (Cess) की अवधि जून 2022 से बढ़ाकर मार्च 2026 तक कर दी, ताकि लिए गए कर्ज़ को चुकाने के लिए फंड जुटाया जा सके।

लेकिन साढ़े तीन साल बाद भी केंद्र ने आरबीआई का 2.7 लाख करोड़ रुपये का पूरा कर्ज़ वापस नहीं किया है।

सबसे बड़ी विडंबना यह है

बजट दस्तावेज़ बताते हैं कि FY21-FY25 (RE) के दौरान — जब केंद्र ने राज्यों को जीएसटी मुआवज़ा देना बंद कर दिया और केवल कर्ज़ दिया — केंद्र ने जीएसटी मुआवज़ा उपकर से 6.1 लाख करोड़ रुपये वसूल किए। यानी FY25 तक उसने लिए गए कर्ज़ से 2.3 गुना ज़्यादा पैसा उपकर से वसूल कर लिया, और FY26 तक यह 2.9 गुना हो जाएगा।

लेकिन इस भारी-भरकम राशि का केंद्र ने किया क्या?

इसका कोई सार्वजनिक जवाब उपलब्ध नहीं है।

बजट दस्तावेज़ों में यह दिखाया गया है कि सारी वसूली “जीएसटी मुआवज़ा फंड” में गई, लेकिन वहाँ से आगे क्या हुआ — यह कभी सामने नहीं आया। यह सवाल जीएसटी काउंसिल को पूछना चाहिए और सांसदों को संसद में उठाना चाहिए — लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ।

जीएसटी सेस का दुरुपयोग

लेकिन केंद्र की यह रहस्यमयी कार्यशैली कोई नई बात नहीं है।

कैग ने 2020 में एक तीखी रिपोर्ट पेश की थी। उसमें कहा गया था कि FY18 और FY19 में केंद्र ने 47,272 करोड़ रुपये के जीएसटी उपकर का ग़लत इस्तेमाल किया और इसे राज्यों को देने के बजाय कंसॉलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया (CFI) में डाल दिया। जबकि उपकर विशेष उद्देश्य के लिए होता है और इसे CFI में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।

रिपोर्ट में कहा गया था कि केंद्र ने इसे वापस जीएसटी मुआवज़ा फंड में डालने का वादा किया था, लेकिन यह हुआ या नहीं — यह स्पष्ट नहीं है।

उदाहरण के लिए, FY20 में जीएसटी उपकर की वसूली 95,553 करोड़ रुपये रही — लगभग FY19 (95,081 करोड़ रुपये) जितनी ही।

एक और विडंबना

सितंबर 2020 के महामारी लॉकडाउन के दौरान संसद में केंद्र से कहा गया कि वह राज्यों को मुआवज़ा देने के लिए आरबीआई से कर्ज़ लेने के बजाय CFI से भुगतान करे।

केंद्र का जवाब था — व्यापार नियमों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।

लेकिन 2020 की कैग रिपोर्ट ने यह भी बताया था कि उपकर का दुरुपयोग सिर्फ जीएसटी उपकर तक सीमित नहीं था, बल्कि व्यापक था।

रिपोर्ट के अनुसार, FY19 में 35 उपकरों और अन्य चार्ज़ से 2,74,592 करोड़ रुपये की वसूली हुई, लेकिन सिर्फ 1,64,322 करोड़ रुपये ही रिज़र्व फंड/बोर्ड में डाले गए। बाकी रकम CFI में ही रख ली गई।

अर्थात FY19 में ही 40% उपकर और अधिभार केंद्र ने ग़लत तरीके से रख लिया।

अब तक कोई नई कैग रिपोर्ट यह नहीं बताती कि यह गड़बड़ी आगे भी जारी रही या नहीं। लेकिन यह तय है कि केंद्र ने 2.7 लाख करोड़ का कर्ज़ चुकाने के लिए 6 लाख करोड़ रुपये वसूले — और फिर भी कर्ज़ अब तक पूरा नहीं चुकाया।

वित्तीय अनुशासन या फिज़ूलखर्ची?

सितंबर 2019 की गोवा बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि केंद्र वित्तीय संकट का सामना कर रहा है।

लेकिन सवाल यह है कि अगर भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था था, जैसा कि केंद्र हर अवसर पर दावा कर रहा था, तो यह संकट क्यों?

उसी दौरान दो बड़े घटनाक्रम हुए:

26 अगस्त 2019 को आरबीआई ने 1.76 लाख करोड़ रुपये का अधिशेष रिज़र्व केंद्र को सौंपने का ऐलान किया। यह “अचानक मिला लाभ” था। पहले कभी इतना बड़ा ट्रांसफर नहीं हुआ था (FY15 और FY18 में 0.66 लाख करोड़ रुपये तक ही हुआ था)।

ठीक उसी समय सितंबर 2019 में, जब जीएसटी काउंसिल की बैठक चल रही थी, केंद्र ने अचानक 1.45 लाख करोड़ रुपये की कॉरपोरेट टैक्स कटौती का ऐलान कर दिया।

कॉरपोरेट टैक्स कटौती

अब साफ़ है कि इस टैक्स कटौती से निजी निवेश नहीं बढ़ा और सरकारी खज़ाने को भारी नुकसान हुआ।

संसदीय समिति ने बताया कि FY20 और FY21 में खज़ाने को कुल 2.28 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

FY21, FY23, FY24 और FY25 में कॉरपोरेट टैक्स से वसूली व्यक्तिगत आयकर से भी कम रही, और FY26 (BE) में भी ऐसा ही अनुमान है।

नतीजा

केंद्र ने अपने संसाधनों का गलत इस्तेमाल किया, फिज़ूलखर्ची की और उसी समय राज्यों के वैध जीएसटी मुआवज़े को देने से इनकार कर दिया।

एक छुपा हुआ सच यह भी था कि FY20 महामारी से पहले ही संकट की ओर बढ़ रहा था।

GDP वृद्धि FY19 के 6.5% से गिरकर FY20 में 3.9% पर आ गई।

केंद्र के सकल कर राजस्व की वृद्धि FY19 के 8.4% से गिरकर FY20 में (-)3.4% हो गई।

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