देपसांग-डेमचोक में जमीन पर दिखने लगा असर, वाकई अब चीन गंभीर है

चीन की फितरत को समझना आसान नहीं है। लेकिन लग रहा है कि वो वैश्विक चुनौतियों को समझ रहा है। एलएसी पर संयुक्त गश्त से पहले कुछ बदलाव नजर आ रहे हैं।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-10-25 04:55 GMT
प्रतीकात्मक तस्वीर

India China Realtion:  पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांवों में एक कहावत कही जाती है। कुछ विवाद तो खुद ब खुद पनपते हैं, कुछ पैदा किए जाते हैं। अब जिसके पास ताकत होती है वो अपने हिसाब से अपने लिये फायदे की बात करता है। अगर इसे बड़े फलक पर देखें तो चीन के संदर्भ में यह कहावत सटीक बैठती है। चीन की विस्तारवादी नीति से दुनिया वाकिफ है। उसका अपने सभी पड़ोसियों से अलग अलग स्तर पर विवाद है। लेकिन बात यहां हम भारत और चीन की करेंगे। विवाद के इतिहास को समझने से पहले यहां यह समझना जरूरी है कि रूस के कजान शहर में ब्रिक्स से पहले पूर्वी लद्दाख में पेट्रोलिंग और अन्य मुद्दे पर जो सहमति बनी है अब उसे जमीन पर अमल में लाया जा रहा है। दोनों देशों की सेनाओं ने देपसांग और डोकलाम इलाके से करीब 40 फीसद टेंट और दूससे इंफ्रास्ट्रक्चर को हटा चुके हैं। 

हटाए जा रहे हैं अस्थाई निर्माण
बताया जा रहा है कि देपसांग और डेमचोक में अस्थाई ढांचों को हटाने पर काम तेजी से चल रहा है। आज  20 फीसद और टेंपरेरी ढांचों को हटाया जा सकता है। इन दोनों पॉइंट्स पर दोनों देशों के स्थानीय कमांडर हर सुबह हॉटलाइन पर बात कर जानकारी साझा कर रहे हैं आगे क्या क्या करना है। एक या दो बार मीटिंग पॉइंट पर मुलाकात भी हो रही है। जिसमें डिसइंगेजमेंट को लेकर प्रक्रिया पर बातचीत हो रही है ताकि किसी तरह की शंका किसी भी पक्ष के दिल में ना बने। 

डेमचोक में भारत और चीन दोनों तरफ से 10 से 12 तर अस्थाई ढांचा पत्थरों के बनाए गए थे। करीब 12 टेंट भी थे। इसी तरह देपसांग में चीन की सैनिक गाडियों में से 40 फीसद पीछे हटाई गई हैं। बताया जा रहा है कि इस प्रक्रिया के बाद दोनों तरफ की टीम साझा रूप में जमीनी हकीकत को जाचेंगी। फिलहाल किसी तरह का जमीनी जांच पड़ताल नहीं हुई है। बताया ये भी जा रहा है कि वेरिफिकेशन कीा प्रक्रिया दोनों तरह यानी जमीनी और एरियल होगी। बता दें कि पूर्वी लद्दाख के इस इलाके में दोनों देशों की पचास हजार सेनाएं जमी हुई हैं। जैसे जैसे डिस्इंगेजमेंट की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी ये सैनिक पीछे हट सकते हैं। 

क्या कहते हैं जानकार
इस विषय पर जानकार कहते हैं कि इसे अच्छी शुरुआत आप मान सकते हैं। लेकिन चीन का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। यह सवाल लाखों करोड़ों लोगों के मन में उठता है कि क्या चीन छल तो नहीं करेगा। इस सवाल का जवाब ऐसे आप समझ सकते हैं। आज के युग में अब वैश्विक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। वही देश दुनिया को अपनी धमक दिखा सकेगा जो आर्थिक तौर पर शक्तिशाली हो। जिस तरह से अमेरिका और चीन के बीच तनातनी है उसका असर ये हुआ कि यूरोप के देशों ने दूरी बना ली और उसका असर चीन की अर्थव्यवस्था पर साफ तौर पर नजर भी आता है। ऐसे में आप यह कह सकते हैं कि चीन कम से कम भारत के साथ उस तरह से पेश नहीं आएगा जो वो अपने दूसरे पड़ोसी देशों के साथ करता है। 

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