चीन को टक्कर देने का प्लान नाकाम हो गया, स्कीम बंद होने वाली है

घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए भारत ने 4 साल पहले तो महत्वाकांक्षी पहल शुरू की थी। वो अब खत्म होने वाली है। उसका ये हाल क्यों हुआ?;

Update: 2025-03-22 08:36 GMT

भारत की 23 बिलियन डॉलर की एक बहुत ही महत्वाकांक्षी पहल चार साल के भीतर ही सिमटने जा रही है। मोदी सरकार इस पहल को आगे जारी रखने के मूड में नहीं दिख रही है। ये पहल भारत में घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए की गई थी, ताकि चीन में निवेश करने वाली कंपनियों को भारत में निवेश के लिए लुभाया जा सके।

सरकारी अधिकारियों के हवाले से छपी रिपोर्ट के मुताबिक, इस योजना को 14 पायलट सेक्टरों से आगे नहीं बढ़ाया जाएगा और न ही उत्पादन की समय-सीमा बढ़ाई जाएगी। हालांकि इस योजना में शामिल कुछ कंपनियों ने इसके लिए अनुरोध किया था। इसका मतलब ये हुआ कि उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना का अध्याय बंद होने वाला है।

कितनी कंपनियां शामिल थीं?

उपलब्ध रिकॉर्ड के मुताबिक, भारत सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत लगभग 750 कंपनियों ने पंजीकरण कराया था। जिनमें एप्पल, फॉक्सकॉन और भारतीय कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसे बड़े नाम शामिल हैं। इस योजना को प्रोडक्शन लिंक्ड इनिशिएटिव स्कीम कहा जाता है।

कंपनियों को कैसे लुभाया?

कंपनियों से वादा किया गया था कि अगर वे निर्धारित मैन्युफैक्चरिंग लक्ष्य और समय-सीमा को पूरा करती हैं, तो उन्हें नकद प्रोत्साहन दिया जाएगा। इस योजना का मकसद 2025 तक अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी को 25% तक बढ़ाना था।

कहां चूक हुई?

इसके बजाय इस योजना में भाग लेने वाली कई कंपनियां उत्पादन शुरू करने में विफल रहीं, जबकि जो कंपनियां उत्पादन लक्ष्यों तक पहुंचीं, उन्होंने पाया कि भारत सब्सिडी जारी करने में धीमा था।

अक्टूबर 2024 तक, इस योजना के तहत भाग लेने वाली कंपनियों ने 151.93 बिलियन डॉलर मूल्य का उत्पादन किया था, जो सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य का केवल 37% था। वाणिज्य मंत्रालय द्वारा संकलित एक विश्लेषण के अनुसार, भारत ने केवल 1.73 बिलियन डॉलर के प्रोत्साहन जारी किए थे, जो आवंटित धनराशि का 8% से भी कम था।

सरकार ने हाथ पीछे खींचे

सरकार के लिए इस योजना का रिस्पॉन्स निराशाजनक रहा। इस योजना के शुरू होने के बाद से, अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी 15.4% से घटकर 14.3% रह गई है।

रॉयटर्स के हवाले से छपी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इसके लिए वैकल्पिक योजनाएं बनाई जा रही हैं।

कहां मिला रिस्पॉन्स?

दो ऐसे क्षेत्र हैं जहां सरकार को इस योजना का असर दिखा। सरकार ने पिछले साल विशेष रूप से दवा और मोबाइल फोन निर्माण क्षेत्रों में इस योजना के प्रभाव का बचाव किया था, जिनमें भारी वृद्धि देखी गई थी।

अप्रैल से अक्टूबर 2024 के बीच वितरित किए गए लगभग 620 मिलियन डॉलर के प्रोत्साहनों में से 94% इन दो क्षेत्रों को दिए गए थे। कुछ मामलों में, खाद्य क्षेत्र की कुछ कंपनियों को सब्सिडी नहीं दी गई क्योंकि वे निवेश मानकों का पालन नहीं कर सकीं या न्यूनतम निर्धारित वृद्धि हासिल नहीं कर पाईं।

हालांकि, रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इस क्षेत्र में उत्पादन लक्ष्यों से अधिक हुआ था। रिपोर्ट में ये भी छपा है कि इस योजना को प्रभावशाली बनाने में नौकरशाही और लालफीताशाही बाधा बनी रही।

भारत के लिए चुनौतीभरा समय

भारत में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र की यह गिरावट ऐसे समय में आई है जब देश अमेरिका द्वारा शुरू किए गए व्यापार युद्ध से बचने की कोशिश कर रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत की संरक्षणवादी नीतियों की आलोचना की थी और जवाबी शुल्क लगाने की धमकी दी थी, जिससे भारत का निर्यात क्षेत्र और अधिक चुनौतियों का सामना कर सकता है।

यह योजना भारत के लिए बहुत ही सही समय पर लाई गई थी। यह वो वक्त था जब चीन अपनी जीरो-कोविड पॉलिसी के कारण उत्पादन बनाए रखने में संघर्ष कर रहा था। अमेरिका भी चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम करना चाहता था, जिससे कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां "चाइना प्लस वन" नीति अपनाकर अन्य देशों में उत्पादन बढ़ाने की योजना बना रही थीं। भारत, जहां कि युवा आबादी, कम लागत और पश्चिमी देशों के अनुकूल सरकार थी, इस बदलाव से लाभान्वित होने की स्थिति में था।

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