चीनी जासूसी को लेकर भारत की चिंता ने सर्विलांस इंडस्ट्री में मचाई हलचल

भारत का यह रुख आंशिक रूप से चीन की उन्नत सर्विलांस क्षमताओं को लेकर उसकी चिंता से जुड़ा है। चीनी कैमरों से भेजा जा रहा वीडियो डेटा विदेशों में स्थित सर्वरों पर जा रहा था।;

Update: 2025-06-01 07:57 GMT
पिछले कुछ वर्षों में भारत के शहरों, कार्यालयों और आवासीय परिसरों में सुरक्षा निगरानी को बेहतर बनाने के लिए लाखों सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। (फोटो -रॉयटर)

भारत सरकार और वैश्विक सर्विलांस उपकरण कंपनियों के बीच हाल के हफ्तों में तनाव गहराता गया है। वजह है, भारत के नए सुरक्षा नियम, जो सीसीटीवी कैमरा निर्माताओं को बाध्य करते हैं कि वे अपने हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और सोर्स कोड को सरकारी प्रयोगशालाओं में परीक्षण के लिए सौंपें। यह नियम 9 अप्रैल 2025 से लागू हुआ है।

रॉयटर्स द्वारा हासिल आधिकारिक दस्तावेज़ों और कंपनियों के ईमेल के अनुसार, यह नई नीति कई विदेशी कंपनियों के लिए चिंता का कारण बन गई है, जिन्होंने आपूर्ति में संभावित रुकावट और व्यापार में नुकसान की चेतावनी दी है। यह विवाद नरेंद्र मोदी सरकार और विदेशी कंपनियों के बीच चल रहे व्यापक नियामकीय तनाव का हिस्सा बन गया है।

चीन की जासूसी क्षमताओं से भारत की सतर्कता

भारत का यह कड़ा रुख आंशिक रूप से चीन की उन्नत जासूसी तकनीकों को लेकर है। 2021 में संसद में तत्कालीन आईटी राज्य मंत्री ने बताया था कि भारत के सरकारी संस्थानों में इस्तेमाल हो रहे लगभग 10 लाख कैमरे चीनी कंपनियों के हैं और इनमें से कई का डेटा विदेशों में स्थित सर्वरों पर जाता है, जिससे सुरक्षा में सेंध लग सकती है।

किन कंपनियों पर असर?

नए नियमों के अनुसार चीन की Hikvision, Xiaomi और Dahua, दक्षिण कोरिया की Hanwha और अमेरिका की Motorola Solutions जैसी कंपनियों को भारत में अपने उत्पादों की बिक्री से पहले सरकारी लैब्स से सुरक्षा प्रमाणन लेना अनिवार्य हो गया है। नियम सभी इंटरनेट से जुड़े कैमरों पर लागू होते हैं जो अप्रैल 2025 से बनाए या आयात किए गए हैं।

औद्योगिक चिंता और सरकारी जवाब

3 अप्रैल को सरकार ने 17 भारतीय और विदेशी कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की। Bosch, Honeywell, Hanwha, Motorola, Xiaomi जैसी कंपनियों ने नियमों के लिए तैयार न होने की बात कही और कुछ समय की मांग की। लेकिन सरकार ने इनकार करते हुए कहा, “यह नीति वास्तविक सुरक्षा चिंता को संबोधित करती है और इसका पालन अनिवार्य है।”

रिपोर्ट बताती है कि कंपनियाँ अपर्याप्त लैब क्षमता, फैक्ट्री निरीक्षण में देरी और सोर्स कोड की जांच जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं, जिससे इंफ्रास्ट्रक्चर और कॉर्पोरेट प्रोजेक्ट्स पर असर पड़ रहा है।

Hanwha के दक्षिण एशिया प्रमुख अजय दुबे ने एक ईमेल में लिखा, “उद्योग को लाखों डॉलर का नुकसान होगा, जिससे बाजार में अस्थिरता आ सकती है।”

भारत में सुरक्षा कैमरों का बढ़ता बाज़ार

भारत में पिछले कुछ वर्षों में शहरों, दफ्तरों और आवासीय परिसरों में लाखों सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। अकेले नई दिल्ली में 2.5 लाख से अधिक कैमरे प्रमुख स्थलों पर लगे हुए हैं। Counterpoint Research के अनुसार, भारत का सर्विलांस कैमरा बाजार 2030 तक दोगुना होकर $7 अरब का हो सकता है।

वर्तमान में भारत की CP Plus की 48% और चीन की Hikvision व Dahua की संयुक्त 30% बाजार हिस्सेदारी है। लगभग 80% सीसीटीवी उपकरणों के पुर्जे चीन से आयात होते हैं।

चीन पर बढ़ती बंदिशें

अमेरिका ने 2022 में Hikvision और Dahua पर राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर प्रतिबंध लगाया था। ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने भी चीन में बने कैमरों पर सीमाएं लगाई हैं। भारत भी अब ऐसी ही दिशा में कदम बढ़ा रहा है।

एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, “हमें यह जांचना जरूरी है कि इन उपकरणों में कौन से चिप्स और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हो रहा है। चीन इस चिंता का बड़ा कारण है।”

टेस्टिंग से जुड़ी चुनौतियाँ

नियमों के तहत कैमरों में टेम्पर-प्रूफ बॉडी, मैलवेयर डिटेक्शन और एन्क्रिप्शन जैसी खूबियाँ होना अनिवार्य है। यदि कंपनियां स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल के बजाय अपना खुद का प्रोटोकॉल इस्तेमाल कर रही हैं, तो उन्हें सोर्स कोड भी जमा करना होगा। भारतीय अधिकारी विदेशी फैक्ट्रियों में जाकर निरीक्षण भी कर सकते हैं।

Xiaomi को बताया गया कि उनके दो चीनी कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरर्स के पंजीकरण विवरण अधूरे हैं। अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि सीमावर्ती देशों से जुड़े मामलों में अतिरिक्त सावधानी बरती जा रही है।

बाजार में हलचल

नए नियमों के चलते दिल्ली के नेहरू प्लेस जैसे बाज़ारों में Hikvision, Dahua और CP Plus के कैमरे तो उपलब्ध हैं, लेकिन दुकानदारों की बिक्री प्रभावित हो रही है। एक दुकानदार ने बताया, “बड़ी डील पूरी करना अभी संभव नहीं है, हमें जो स्टॉक है उसी से काम चलाना पड़ रहा है।”

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