पहलगाम : मैगी खाने की बच्चे की जिद से एक परिवार आतंकी हमले से बचा
कर्नाटक के हेगड़े परिवार के लिए जिद्दी बच्चे की भूख और अचानक मैगी नूडल्स खाने की इच्छा जीवन रक्षक बन गई, जिससे वे इस जानलेवा आतंकी हमले से बाल-बाल बच निकले।;
प्रदीप हेगड़े, उनकी पत्नी शुभा और 12 वर्षीय बेटा सिद्धांत कश्मीर की बाइसरन घाटी, जिसे अक्सर 'मिनी स्विट्ज़रलैंड' कहा जाता है, की यात्रा पर थे। 22 अप्रैल के उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन, जब आतंकियों ने घाटी में धावा बोला और 25 पर्यटकों व एक स्थानीय खच्चर चलाने वाले की हत्या कर दी, शुभा हेगड़े बाल-बाल बचीं।
मैगी खाने की इच्छा बनी जीवनरक्षक
हेगड़े परिवार के अनुसार, वे एक घंटे की कठिन और कीचड़ भरी घुड़सवारी के बाद घाटियों के शिखर पर पहुंचे थे। कुछ समय घूमने के बाद, वे रोमांच गतिविधि क्षेत्र की ओर जाने वाले थे, तभी भूख लगने पर सिद्धांत ने खाने की ज़िद की।
प्रदीप ने मीडियो को बताया, “करीब 1:45 बजे हम जाने ही वाले थे। लेकिन मेरे बेटे ने कहा कि उसे भूख लगी है। हमने समझाने की कोशिश की कि पहले घूम कर वापस आकर खा लेंगे, लेकिन वह जिद पर अड़ गया। इसलिए हम अस्थायी फूड स्टॉल की तरफ गए।
उन्होंने कहा, "हमने मैगी ऑर्डर की। मेरी पत्नी शौचालय गईं जो लगभग 500 मीटर दूर था। वह एक पेड पब्लिक टॉयलेट था, तो वह पैसे लेने वापस आईं और फिर गईं। तब तक हमने खा लिया था, और उन्होंने जल्दी में खा लिया।”
“करीब 15-20 सेकंड बाद, हमने दो लोगों को बड़े हथियारों के साथ देखा। वे लगातार गोली चला रहे थे,” प्रदीप ने बताया। एक आतंकवादी घाटी के निचले हिस्से की ओर गया, जबकि दूसरा उनकी ओर बढ़ा।
“शुरुआत में हमें समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है। फिर हम नीचे लेट गए। इसी दौरान मेरी पत्नी को याद आया कि बैग मेज़ पर ही रह गया है, जिसमें हमारे आईडी और फोन थे। वह बैग लेने उठीं, और तभी कुछ उनके दाहिने कान के पास से गुजरा — वह एक गोली थी,” प्रदीप ने बताया।
“कुछ मेरे बालों को छू गया”
शुभा ने बताया, “कुछ मेरे बालों को छू गया। पहले तो मुझे समझ नहीं आया कि वह गोली थी, लेकिन उस झटके से मैं पलटी और देखा कि वह ज़मीन पर लगी थी। भगवान ने मुझे बचा लिया।”
प्रदीप ने कहा कि उन्हें तब तक यह एहसास नहीं हुआ था कि यह आतंकवादी हमला है। किसी ने चिल्लाकर कहा कि लोग गेट की ओर भागें।
“मैं 100 प्रतिशत यकीन कर चुका था कि अब हम मरने वाले हैं,” प्रदीप ने कहा। “लेकिन मेरी पत्नी लगातार कहती रही — ‘कुछ नहीं होगा’। शायद उसी आत्मविश्वास ने हमें हिम्मत दी।”
भगदड़, घोड़े और वापसी
प्रदीप ने बताया कि गेट पर भीड़ और भगदड़ जैसी स्थिति हो गई थी, जिससे उनका बेटा सिद्धांत गिर गया। बाद में उन्हें उनका घोड़े वाला एक पेड़ के पीछे डरा हुआ मिला, लेकिन वह जिंदा था। उसने मदद करने को कहा।
सिद्धांत पैदल चलने की हालत में नहीं था, तो उस व्यक्ति ने एक भागता हुआ घोड़ा पकड़कर उसे उस पर बैठाया। बाद में उसने प्रदीप और शुभा के लिए भी दो घोड़े जुटाए और सुरक्षित नीचे तक पहुंचाया।
पहलगाम आतंकी हमला
22 अप्रैल को, आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 लोगों की हत्या कर दी, जिनमें एक नेपाली नागरिक भी शामिल था। इस हमले की देश-विदेश में कड़ी निंदा हुई और सरकार ने तुरंत रणनीतिक कार्रवाई के संकेत दिए।
इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, तीनों सेनाओं के प्रमुखों और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ उच्चस्तरीय सुरक्षा बैठक की।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री ने कहा कि सशस्त्र बलों को इस हमले के जवाब में कार्रवाई के तरीकों, लक्ष्यों और समय का फैसला करने की “पूर्ण परिचालन स्वतंत्रता” है।