नरेंद्र मोदी को 3.0 का जनादेश, सवाल अब यह कि कितनी सफल रहेगी खिचड़ी सरकार

देश में गठबंधन सरकार या खिचड़ी सरकार का इतिहास नया नहीं है. भारत में गठबंधन की शुरुआत मोरारजी देसाई के समय हुई थी. गठबंधन वाली कुछ सरकारों के सामने चुनौती रही तो कुछ ने आसानी से कार्यकाल पूरा किया.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-06-05 01:16 GMT

भारत में गठबंधन सरकार को लोग खिचड़ी सरकार भी कहते हैं. 2014 और 2019 को अपवाद मान सकते हैं क्योंकि सरकार में एनडीए गठबंधन तो था लेकिन अगुवाई करने वाली पार्टी के साथ पूर्ण बहुमत भी था. हालांकि 2024 की तस्वीर बदली हुई है. मसलन बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी तो है लेकिन खुद जादुई आंकड़े से पीछे है. यानी कि इस दफा उसे अपने घटक दलों पर निर्भर रहना होगा. हालांकि हम अपने मूल विषय पर चलते हैं कि क्या खिचड़ी सरकार कामयाब होती हैं. उससे पहले भारत में गठबंधन सरकार के इतिहास को भी समझना जरूरी है.भारत में पहली बार गठबंधन सरकार मोरार जी देसाई के नेतृत्व में 1977 में सरकार बनी. इस सरकार में अलग अलग विचार वाली छह पार्टियों - जनसंघ, ​​कांग्रेस (ओ),भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी, स्वतंत्र पार्टी और नव-स्थापित कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी (सीएफडी) ने मिलकर जनवरी 1977 में चुनाव से कुछ ही हफ्ते पहले जनता पार्टी का गठन किया था.

भारत में गठबंधन सरकार

  • चरण सिंह जुलाई 1979 से जनवरी 1980
  • वी पी सिंह दिसंबर 1989 से नवंबर 1990 तक
  • चंद्रशेखर नवंबर 1990 से जून 1991 तक
  • एच डी देवेगौड़ा जून 1996 से अप्रैल 1997 तक
  • इंद्र कुमार गुजराल अप्रैल 1997 से मार्च 1998 तक
  • अटल बिहारी वाजपेयी 1998 से 2004 तक
  • यूपीए 2 और यूपीए 2 गठबंधन 2009 से 2014

क्या खिचड़ी सरकारें रही हैं कामयाब
अगर देखा जाए तो भारत में गठबंधन सरकारों का इतिहास पुराना है. यहां हम बात करेंगे कि खिचड़ी सरकारें कामयाब रहती हैं. अगर आप इतिहास को देखें तो नतीजा मिला जुला रहा है. अगर खिचड़ी सरकार की कामयाबी की बात करें तो जहां मोराजी देसाई, चरण सिंह, वी पी सिंह, चंद्रशेखर, एच डी देवेगौड़ा की सरकार बेहतर काम नहीं कर सकी, वहीं अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली सरकार और यूपीए 1 और 2 की सरकार ने अच्छा काम किया. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में देश ने परमाणु परीक्षण किया, गोल्डेन क्वॉड्रिलेटरल मार्ग का निर्माण कराया. वहीं यूपीए की सरकार में अमेरिका के साथ सिविल न्यूक्लियर डील, फूड गारंटी प्रोग्राम, सूचना का अधिकार, राइट टू एजुकेशन जैसे बड़े फैसले किये गए. इस तरह से अगर देखें तो खिचड़ी सरकारों के कार्यकाल में अच्छे काम हुए. लेकिन राजनीतिक तौर पर अस्थिरता कायम रही है. घटक दल दबाव की राजनीति करते रहे हैं यह भी सच्चाई है.
राजनीति के जानकार कहते हैं कि गठबंधन की सरकार में जब सबसे बड़े दल के पास पर्याप्त संख्या नहीं होती है तो जाहिर सी बात है कि उसे अपने घटक दलों पर ज्यादा भरोसा करना पड़ता है. अगर आपको 1999 से 2004 का दौर याद हो तो आपने देखा होगा कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को किस तरह से कभी ममता बनर्जी को तो कभी जयललिता के दबाव का सामना करना पड़ता था. उस दौर में वाजपेयी सरकार के लिए जॉर्ज फर्नांडीज संकटमोचक की भूमिका अदा करते थे. हालांकि इस मामले में को कुछ विश्लेषक अलग नजरिए से देखते हैं. उनका कहना है कि अगर समान विचार वाले दल एक साथ एक मंच पर आकर सरकार बनाते हैं तो परेशानी की उतनी बात नहीं होती है. जैसे कि आप यूपीए 1 और 3 को देखिए. केंद्र में १० साल तक बहुत ही कम अड़चनों के साथ कांग्रेस ने सरकार चलाई. इसका अर्थ यह है कि गठबंधन सरकार की कामयाबी या नाकामी उसमें शामिल दलों की विचारधारा पर निर्भर करती है.

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