2014 और 2019, लेकिन गठबंधन का स्वरूप अब पहली बार दिखेगा

साल 2014 और 2019 में भी एनडीए सरकार सत्ता में थी. लेकिन बीजेपी के लिए गठबंधन धर्म निभाना मजबूरी नहीं थी, लेकिन अब तस्वीर बदलती नजर आ रही है.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-06-04 10:07 GMT

Alliance Politics In India:  बात करीब 28 साल पुरानी 1996 की है.केंद्र की सरकार से पी वी नरसिम्हाराव रुखसत हो चुके थे. किसी एक दल की सरकार अपने बलूबते नहीं बन पाई थी. कई दलों के मेल से संयुक्त मोर्चे की सरकार बनी लेकिन उस सरकार को नाम आयाराम गयाराम मिला. 1996 से 1998 के दौरान देश को तीन पीएम मिले. साल 1999 में एक बार फिर चुनाव होता है अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में सरकार बनती है और उस सरकार को नाम मिलता है एनडीए. एनडीएस देश पर साल 2004 तक राज करती है. लेकिन 2004 के आम चुनाव में एनडीए को हार का सामना करना पड़ता है. कांग्रेस सबसे बड़े दल के तौर पर उभरती है लेकिन जादुई आंकड़ा ना मिलने की वजह से गठबंधन की सरकार जिसे हम सब यूपीए नाम से जानते हैं. साल 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस को बड़ी पार्टी के तौर पर एक बार फिर सरकार की अगुवाई करते हुए 2014 तक शासन करती हैं.

साल 2014 थोड़ा था अलग
2014 का साल थोड़ा सा अलग होता है. बीजेपी की अगुवाई में एनडीए की सरकार बनती है लेकिन बीजेपी के पास खुद 272 का आंकड़ा होता है. इसका मतलब यह कि बीजेपी के लिए गठबंधन कोई मजबूरी नहीं थी. साल 2019 में भी आंकड़े बीजेपी के पक्ष में गठबंधन ना तो मजबूरी ना ही जरूरत लेकिन बीजेपी ने सांकेतिक तौर पर एनडीए को जीवित रखा. अब आम चुनाव 2024 के जो रुझान सामने आए हैं वो उस तस्वीर की तरफ इशारा कर रहे हैं जो वास्तविक मायने में गठबंधन होता है, आखिर गठबंधन करने की आवश्यकता तो इस वजह से ही होती है कि हम किसी अपेक्षित मकसद को अकेले हासिल नहीं कर पाते हैं.आम चुनाव 2024 के रुझान को देखें तो इसमें दो मत नहीं कि एनडीए की सरकार बनने जा रही है. लेकिन अब उसे अपने सहयोगी दलों पर निर्भर रहना होगा. अब वो शायद एकतरफा फैसला ना कर पाए.

जेडीयू- टीडीपी मुख्य घटक

आम चुनाव 2024 के नतीजों को देखें तो बीजेपी के बाद दो सबसे बड़े दल जेडीयू और टीडीपी हैं,जेडीयू के पास 14 और टीडीपी के पास 16 सांसद हैं. अगर इन दोनों दलों की सीट संख्या को जोड़ लिया जाए तो यह 30 होती है. यानी कि बीजेपी के लिए यह जरूरी है कि सरकार में बने रहने के लिए इनका समर्थन बना रहे. अब यही बात करते हैं कि क्या ये दोनों दल मुस्लिम आरक्षण पर बीजेपी के नजरिए से मेल खाएंगे. क्या सीएए पर बीजेपी की आक्रामक नीति का समर्थन करेंगे. क्या समान नागरिक संहिता पर सहमति बनेगी. दरअसल ये कुछ ऐसे मुद्दे है जिन पर बीजेपी और इन दलों के बीच बुनियादी अंतर है.

एनडीए नहीं तो इंडी लेकिन फिर भी गठबंधन
अब जब इतने मुद्दे असहमति के हैं तो सहमति बनानी होगी. सहमति बनाने के लिए कहीं ना कहीं बीजेपी को भी कॉमन ग्राउंड पर आना होगा. इसका अर्थ यह हुआ कि अगर बीजेपी इन मुद्दों से पीछे हटती तो वो अपने कोर वोटर्स को क्या जवाब देंगे. इसके साथ ही अगर बीजेपी की तरफ से दबाव बनाया गया तो क्या जेडीयू और टीडीपी कब तक दबाव के तहत काम करेंगे क्योंकि उनके लिए इंडी गठबंधन के दरवाजे खुले रहेंगे. अगर इसके अलावा अनुमान के तौर जेडीयू और टीडीपी इंडी ब्लॉक के साथ जाते हैं तो भी देश को गठबंधन वाली सरकार ही बनेगी. 

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