ट्रंप का कश्मीर पर मध्यस्थता राग, मनीष तिवारी बोले- कोई तो उन्हें समझाए

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि युद्ध सिर्फ विनाश की वजह बनता है। इन सबके बीच कश्मीर का भी जिक्र कर दिया। अब कांग्रेस और शिवसेना उद्धव गुट ने आलोचना की है।;

Update: 2025-05-11 08:52 GMT
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा कि कश्मीर के मुद्दे पर डोनाल्ड ट्रंप को कोई समझाए कि यह एक हजार साल नहीं 78 साल पुराना मामला है।

भारत और पाकिस्तान के बीच हुए हालिया संघर्षविराम समझौते के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कश्मीर विवाद को “1000 साल पुराना संघर्ष” बताने और मध्यस्थता की पेशकश पर कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) ने कड़ा ऐतराज़ जताया है।

कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग करते हुए पूछा,“क्या हमने शिमला समझौता छोड़ दिया है? क्या हमने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के लिए दरवाज़े खोल दिए हैं? उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक बातचीत के चैनल फिर से खोले जा रहे हैं और सरकार ने किन शर्तों पर सहमति दी है।

‘पहल की ज़रूरत सरकार से है’ 

शनिवार को भारत और पाकिस्तान के बीच यह सहमति बनी थी कि वे तत्काल प्रभाव से ज़मीन, समुद्र और आकाश में सभी तरह की सैन्य कार्रवाइयाँ और गोलीबारी बंद कर देंगे। इसके बाद कांग्रेस ने इस समझौते पर पारदर्शिता की मांग की।

जयराम रमेश ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा:“भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक बार फिर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक और संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग करती है, जिसमें पहलगाम हमले, ऑपरेशन सिंदूर और वॉशिंगटन डीसी से शुरू हुए तथा भारत-पाक सरकारों द्वारा घोषित संघर्षविराम समझौते पर चर्चा हो।” उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो द्वारा बातचीत के लिए ‘न्यूट्रल साइट’ (तटस्थ स्थल) का उल्लेख करने पर भी गंभीर सवाल खड़े किए। रमेश ने पूछा कि क्या भारत ने कश्मीर मुद्दे पर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के लिए रास्ता खोल दिया है?

‘1000 साल पुराना संघर्ष नहीं, सिर्फ 78 साल पुराना है’ 

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के “कश्मीर एक 1000 साल पुराना संघर्ष है” वाले बयान पर तीखा पलटवार किया। उन्होंने कहा,“कश्मीर कोई बाइबिलीय 1000 साल पुराना संघर्ष नहीं है। यह 22 अक्टूबर 1947 को शुरू हुआ था, जब पाकिस्तान ने स्वतंत्र राज्य जम्मू-कश्मीर पर हमला किया था। 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने भारत में पूरी तरह विलय का निर्णय लिया, जिसमें वे क्षेत्र भी शामिल हैं जो आज भी पाकिस्तान के कब्जे में हैं।” उन्होंने तंज करते हुए कहा कि अमेरिकी प्रशासन में किसी को ट्रंप को इस इतिहास की जानकारी देना चाहिए।

‘भारत को अमेरिका की ज़रूरत नहीं’ 

शिवसेना (यूबीटी) की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने भी अमेरिका की मध्यस्थता की पेशकश पर सख्त प्रतिक्रिया दी।उन्होंने एक्स पर लिखा:“भारत को कश्मीर मुद्दे का समाधान निकालने के लिए अमेरिका या किसी और देश की मदद की ज़रूरत नहीं है। यह ज़िम्मेदारी हमारे भाग्य ने हमें सौंपी है और भारत को इस चुनौती के लिए उठ खड़ा होना चाहिए।”

1971 की याद और इंदिरा गांधी का नेतृत्व

जयराम रमेश ने दो पूर्व सेनाध्यक्षों  वीपी मलिक और मनोज मुकुंद नरवणे  के बयानों का हवाला देते हुए कहा कि सरकार को अब खुद प्रधानमंत्री के स्तर पर जवाब देने चाहिए।उन्होंने लिखा, “भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मानती है कि 1971 में इंदिरा गांधी द्वारा दिखाया गया असाधारण साहस और निर्णायक नेतृत्व आज देश को स्वाभाविक रूप से याद आता है।”

रमेश ने एक अन्य पोस्ट में 1981 में आईएमएफ से भारत द्वारा लिए गए $5.8 बिलियन के ऋण का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि अमेरिका उस समय इसका विरोध कर रहा था, लेकिन इंदिरा गांधी ने आईएमएफ को इस बात के लिए मना लिया कि यह ऋण भारत के लिए आवश्यक है।उन्होंने आगे लिखा कि 1984 में जब प्रणब मुखर्जी ने बजट पेश किया, तो उन्होंने यह घोषणा की कि भारत ने आईएमएफ कार्यक्रम सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है और स्वीकृत राशि में से $1.3 बिलियन का हिस्सा भारत ने नहीं लिया। यह IMF के इतिहास में एक अनूठा उदाहरण है।

भारत का रुख

भारत सरकार ने शनिवार को साफ़ किया कि किसी तीसरे देश में किसी मुद्दे पर कोई वार्ता तय नहीं हुई है। यह स्पष्टीकरण उस वक्त आया जब अमेरिकी विदेश मंत्री रूबियो ने दावा किया कि भारत और पाकिस्तान एक तटस्थ स्थल पर वार्ता के लिए सहमत हुए हैं।सरकार के इस रुख से साफ है कि भारत अब भी कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा मानता है और किसी तीसरे पक्ष की भूमिका को स्वीकार नहीं करता।

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