हजारों जवाबों से अच्छी मेरी.. मनमोहन सिंह ने शायराना अंदाज में दिया था जवाब
Manmohan Singh: मनमोहन सिंह के निधन पर देश गमगीन है। सामान्य तौर पर वो कम बोला करते थे। लेकिन धारदार तरीके से विपक्ष के आरोपों का जवाब देते थे।;
Manmohan Singh Death News: मनमोहन सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं। एक ऐसी शख्सियत जिसका जुड़ाव राजनीति से तब हुआ जब वो देश के वित्त मंत्री बने। नरसिम्हाराव (Narsimha Rao Government) की सरकार थी और देश के सामने आर्थिक संकट था। उन्हें एक ऐसे शख्स की जरूरत थी जिसे वित्त की अच्छी समझ हो और उनकी नजर में मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) से बेहतर शख्स कोई और नहीं था। आरबीआई के गवर्नर रहे मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया। वित्त मंत्री के तौर पर उन्होंने इस बात पर बल दिया कि बदलते समय के साथ भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ना होगा। इसके लिए उदारीकरण और वैश्वीकरण दो रास्ते थे। इन दोनों रास्तों पर देश आगे बढ़ा हालांकि विरोध भी हुआ। लेकिन उसके सकारात्मक असर को देश ने देखा है। इन सबके बीच उन्हें पीएम बनने का मौका मिला।
पीएम के तौर पर मनमोहन सिंह ने दो कार्यकाल 2004-2009, 2009-2014 पूरा किया था। लेकिन दूसरा कार्यकाल विवादों में रहा। यह बात सच है कि मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) पर व्यक्तिगत रूप से भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे। लेकिन यह भी सच है कि टू जी, कॉमनवेल्थ गेम घोटाला, कोयला घोटाले की वजह से दामन पर छींटे पड़े। विरोधी दल ने मौन मोहन के नाम से पुकारा करते थे। विपक्ष के आरोप पर उन्होंने शायरी का इस्तेमाल करते हुए जवाब दिया था कि हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, जो कई सवालों के आबरू ढंक लेती है।
2009 से 2014 तक, 15वीं लोकसभा के दौरान, विपक्ष की तत्कालीन नेता सुषमा स्वराज ने पूर्व प्रधानमंत्री के साथ कई बार शायराना अंदाज में सवाल किए थे। एक खास घटना मार्च 2011 में हुई थी जब विकीलीक्स केबल पर गरमागरम चर्चा हुई थी। विपक्ष यानी बीजेपी (BJP) ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस ने 2008 के विश्वास मत के दौरान सांसदों को रिश्वत दी थी। सुषमा स्वराज (Sushma Swaraj) ने शहाब जाफरी की शायरी "तू इधर उधर की न बात कर, ये बता कि काफ़िला क्यों लूटा, हमने रहजनो से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है" (विषय मत बदलो, बस यह बताओ कि कारवां क्यों लूटा गया, हमें लुटेरों के बारे में कुछ नहीं कहना है, लेकिन यह आपके नेतृत्व पर सवाल है)। इसके जवाब में मनमोहन सिंह ने अल्लामा इकबाल की शायरी की इस्तेमाल करते हुए जवाब दिया था। "माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं, तू मेरा शौक देख मेरा इंतजार देख" (मुझे पता है कि मैं आपके ध्यान के लायक नहीं हूं, लेकिन मेरी चाहत देखो)।
ऐसे ही 2013 में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान सदन का माहौल शायराना हो गया था। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Manmohan Singh died) ने मिर्जा गालिब के शब्दों में टिप्पणी की, हमें उनसे है वफ़ा की उम्मीद जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।" इसके जवाब में सुषमा स्वराज ने दो शेर पढ़े। पहला बशीर बद्र द्वारा: "कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता"। उनकी दूसरी प्रतिक्रिया थी: "तुम्हें वफा याद नहीं, हमें जफा याद नहीं, जिंदगी या मौत के तो दो ही तराने हैं, एक तुम्हें याद नहीं, एक हमें याद नहीं" (आपको वफादारी याद नहीं है और हमें बेवफाई याद नहीं है, जीवन और मृत्यु की दो लय हैं, आपको एक याद नहीं है, हमें दूसरी याद नहीं है)। 2008 में उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर पूर्व पीएम के जवाब पर भी ध्यान देने योग्य है। सिंह ने लगभग भविष्यवाणी करते हुए कहा, "लोकतंत्र की महानता यह है कि हम सभी क्षणभंगुर पक्षी हैं! हम आज यहां हैं, कल चले जाएंगे! लेकिन इस संक्षिप्त समय में जब भारत के लोगों ने हमें यह जिम्मेदारी सौंपी है, हमारा यह कर्तव्य है कि हम इन जिम्मेदारियों का निर्वहन ईमानदारी और निष्ठा से करें।"