41 साल पहले क्यों चलाया गया था ऑपरेशन मेघदूत, सियाचिन से क्या है नाता
सियाचिन एक रणभूमि नहीं, एक गाथा है‘ऑपरेशन मेघदूत’ सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं थी।यह रणनीति, तकनीकी क्षमता और मानवीय साहस का एक अद्वितीय उदाहरण था।;
Operation Meghdoot: 13 अप्रैल 1984, भारत के सैन्य इतिहास में यह तारीख सिर्फ एक ऑपरेशन की शुरुआत नहीं थी, बल्कि आने वाले दशकों की सुरक्षा, रणनीति और सैन्य कौशल की नींव भी बनी। इसी दिन भारतीय सेना और भारतीय वायुसेना (IAF) ने मिलकर ‘ऑपरेशन मेघदूत’ की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य था। दुनिया के सबसे दुर्गम युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण स्थापित करना और पाकिस्तान की योजनाओं को हमेशा के लिए विफल करना।
क्यों जरूरी था सियाचिन पर नियंत्रण?
1970 के दशक के अंत तक पाकिस्तान सियाचिन को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दावे मजबूत करने में जुटा था। वह विदेशी पर्वतारोहण अभियानों को इस क्षेत्र में अनुमति देकर इसे 'डि फैक्टो' अपने अधिकार में दिखाना चाहता था। भारत को खुफिया जानकारी मिली कि पाकिस्तान जल्द ही सियाचिन में सैन्य घुसपैठ की योजना बना रहा है।
सियाचिन, लद्दाख के उत्तरी छोर पर स्थित, भारत, पाकिस्तान और चीन के त्रिकोणीय सीमा क्षेत्र में आता है। यदि पाकिस्तान यहां कब्ज़ा करता, तो भारत की सामरिक स्थिति विशेषकर काराकोरम दर्रे और लद्दाख क्षेत्र में कमजोर हो जाती।
ऑपरेशन मेघदूत: 13 अप्रैल 1984
भारत ने समय रहते निर्णायक कार्रवाई की। 13 अप्रैल 1984 को 'ऑपरेशन मेघदूत' की शुरुआत हुई। भारतीय सेना और वायुसेना ने बर्फ से ढके इस दुर्गम क्षेत्र में अद्वितीय तालमेल दिखाया।भारतीय वायुसेना के चेतक, चीता, Mi-8 और Mi-17 जैसे हेलीकॉप्टरों ने सैनिकों और साजो-सामान को 20,000 फीट की ऊंचाई पर पहुंचाया।
हालांकि, इसकी तैयारी 1978 से शुरू हो चुकी थी। तब पहली बार चेतक हेलीकॉप्टर ने सियाचिन की जमीन को छुआ। सालों की कड़ी ट्रेनिंग और अभ्यास ने ऑपरेशन की नींव मज़बूत की।
जब भारत पहले पहुंचा और पाकिस्तान पीछे रह गया
ऑपरेशन के तहत लगभग 300 भारतीय सैनिकों को बिलाफॉन्ड ला, सियाला पास और ग्योंग ला जैसी रणनीतिक चोटियों पर पहले ही तैनात कर दिया गया। पाकिस्तान जब तक हरकत में आता, भारत साल्तोरो रेंज पर पूरी तरह कब्ज़ा जमा चुका था।यह बढ़त आज तक भारत के पास बनी हुई है।
भारतीय वायुसेना की निर्णायक भूमिका
भारतीय वायुसेना ने केवल सहयोगी नहीं, बल्कि ऑपरेशन की रीढ़ बनने का काम किया।An-12, An-32, IL-76 और C-130J सुपर हरक्यूलिस जैसे विमानों से सैनिक और सामग्री पहुंचाई गई।27 स्क्वाड्रन के हंटर जेट्स ने लेह से उड़ानें भरनी शुरू कीं, और 700 से अधिक उड़ानों में दुश्मन को साफ संदेश दिया—भारत हर चुनौती के लिए तैयार है।
इसके बाद MiG-23, MiG-29, Su-30MKI, मिराज 2000, राफेल और LCH प्रचंड जैसे अत्याधुनिक विमान भी सियाचिन के अभियान में शामिल हुए। हेलीकॉप्टरों में ALH Mk-III/IV, चीनूक और अपाचे विशेष रूप से तैनात किए गए।
जहां हेलीकॉप्टर हैं जीवन रेखा
सियाचिन को 'दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र' यूं ही नहीं कहा जाता। यहां -50°C तक तापमान, तेज़ बर्फीले तूफान और ऑक्सीजन की भारी कमी सामान्य बात है।ऐसे में भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर यहां तैनात जवानों के लिए जीवन रेखा बन जाते हैं। ये न केवल मेडिकल इमरजेंसी में सहायता करते हैं, बल्कि आवश्यक रसद, हथियार, भोजन और उपकरण भी पहुंचाते हैं।2009 में चीतल हेलीकॉप्टर को शामिल किया गया, जो अधिक ऊंचाई पर भारी सामान ढोने में सक्षम है।
आज भी जारी है वीरता का यह सिलसिला
13 अप्रैल 2025 को भारत ऑपरेशन मेघदूत की 41वीं वर्षगांठ मना रहा है।इस मौके पर भारतीय सेना ने अपने आधिकारिक X हैंडल पर एक प्रेरणादायक संदेश साझा किया:"बर्फ में दुबके हुए, चुप रहना है,जब बिगुल बजेगा, वे उठेंगे और फिर से मार्च करेंगे।"ये पंक्तियां सियाचिन में डटे जवानों की भावना को दर्शाती हैं—जहां संघर्ष, साहस और समर्पण रोज की कहानी है। बर्फ के तूफानों में, सांसें थामने वाली ऊंचाइयों पर, मातृभूमि की रक्षा के लिए निःस्वार्थ भाव से आज भारतीय रणबांकुरे हिफाजत कर रहे हैं। ।