संविधान दिवस पर पीएम का संदेश, कर्तव्य, न्याय- लोकतंत्र के नए संकल्प की पुकार

संविधान दिवस पर पीएम मोदी ने भावुक पत्र लिखकर संविधान के महत्व, लोकतंत्र की मजबूती, कर्तव्यों की अहमियत और संविधान निर्माताओं के योगदान को याद किया।

Update: 2025-11-26 04:51 GMT

26 नवंबर, संविधान दिवस—एक ऐसा अवसर जब देश अपने महान संविधान, उसके निर्माताओं और उन आदर्शों को याद करता है, जिन्होंने आज़ाद भारत की दिशा तय की। इस वर्ष, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान दिवस के मौक़े पर देशवासियों को एक विस्तृत और भावुक पत्र लिखा है। इस पत्र में उन्होंने न केवल संविधान के महत्व को रेखांकित किया, बल्कि इस पवित्र दस्तावेज़ से अपने व्यक्तिगत भावनात्मक संबंध को भी साझा किया।

प्रधानमंत्री ने लिखा कि 1949 में संविधान का अंगीकरण केवल औपचारिक घटना नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की आधारशिला थी—एक ऐसी आधारशिला जिस पर लोकतंत्र का विशाल भवन खड़ा हुआ है। उन्होंने याद दिलाया कि संविधान दिवस की शुरुआत 2015 में उनकी सरकार ने की थी, ताकि नागरिकों में संविधान के प्रति संवेदनशीलता और सम्मान की भावना बढ़े और उन्हें अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों की भी याद दिलाई जाए।

संविधान: समानता और अवसर का जनतांत्रिक द्वार

अपने पत्र में प्रधानमंत्री मोदी ने संविधान की उस शक्ति पर जोर दिया, जिसने एक सामान्य नागरिक को भी देश की सर्वोच्च पदों पर पहुँचने का मार्ग खोला। उन्होंने कहा कि भारत का संविधान सामाजिक, आर्थिक और भौगोलिक पृष्ठभूमि की सीमाओं को तोड़ता है और हर नागरिक को अपने सपनों को साकार करने की ताक़त देता है।

प्रधानमंत्री ने उल्लेख किया कि “इस पवित्र दस्तावेज़ ने करोड़ों भारतीयों को यह विश्वास दिलाया है कि साधारण परिवारों से आने वाला कोई भी व्यक्ति देश की सर्वोच्च जिम्मेदारियाँ निभा सकता है।” उन्होंने स्वयं अपने जीवन का उदाहरण साझा करते हुए कहा कि एक सामान्य परिवार से उठकर प्रधानमंत्री बनने तक की उनकी यात्रा, इस संविधान की उदार और समावेशी भावना का प्रमाण है।

संविधान और संसद के प्रति श्रद्धा: प्रधानमंत्री का व्यक्तिगत अनुभव

प्रधानमंत्री मोदी ने पत्र में अपने दो भावपूर्ण अनुभवों को भी याद किया—एक 2014 का और दूसरा 2019 का। उन्होंने बताया कि 2014 में जब वे पहली बार संसद भवन पहुंचे, तो उन्होंने उसकी सीढ़ियों पर नमन किया था। यह भारतीय लोकतंत्र की उस सर्वोच्च संस्था के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा का प्रतीक था, जहाँ देश की आकांक्षाएँ आकार लेती हैं और नीतियों को जनहित का रूप मिलता है।

2019 में, उन्होंने संसद में प्रवेश करते समय संविधान की प्रति को अपने माथे से लगाया। उन्होंने लिखा कि “यह केवल एक परंपरा या औपचारिकता नहीं थी, बल्कि मेरे मन की उस भावना का प्रतीक था जिसमें संविधान को राष्ट्रीय जीवन का मार्गदर्शक माना गया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि संविधान के मूल्यों का सम्मान करना केवल सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है। “हमारा संविधान केवल शासन का ढांचा नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा है,” उन्होंने लिखा।

संविधान सभा के महानायकों को नमन

प्रधानमंत्री मोदी का पत्र संविधान सभा के उन नायकों को श्रद्धांजलि देने पर भी केंद्रित रहा, जिन्होंने अपनी बुद्धि, दूरदर्शिता और व्यापक विचारों से भारतीय संविधान को आकार दिया। उन्होंने विशेष रूप से डॉ. राजेंद्र प्रसाद और डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर का उल्लेख किया।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद, संविधान सभा के अध्यक्ष, जिन्होंने अपार धैर्य और समावेशी नेतृत्व के साथ इस विशाल प्रक्रिया को सुगम बनाया। प्रधानमंत्री ने उन्हें उस महान करुणा और सरलता का प्रतीक बताया, जिसकी भारतीय राजनीति में हमेशा आवश्यकता रहती है।

डॉ. आंबेडकर, जिन्हें संविधान का मुख्य शिल्पकार माना जाता है, पर प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने भारत के सामाजिक ढांचे को न्याय और समानता की दृष्टि दी। “उनकी सोच ने हमें वह संविधान दिया जो सदियों की असमानताओं को मिटाकर नए भारत की नींव रखता है,” प्रधानमंत्री ने लिखा।

प्रधानमंत्री ने संविधान सभा की उन विशिष्ट महिला सदस्यों—हंसा मेहता, सुचेता कृपलानी, राजकुमारी अमृत कौर जैसी हस्तियों—का भी उल्लेख किया, जिनकी प्रगतिशील दृष्टि ने संविधान को नई दिशा दी। उन्होंने कहा कि इन महिलाओं की भूमिका अक्सर कम चर्चित रहती है, जबकि उनकी सहभागिता समानता और स्वतंत्रता की धारा को मजबूत करने में बेहद महत्वपूर्ण थी।

भविष्य की दिशा: संविधान केवल दस्तावेज़ नहीं, राष्ट्रीय पथप्रदर्शक

प्रधानमंत्री मॉदी ने लिखा कि संविधान भारत के लिए केवल कानूनों का एक संग्रह नहीं है, बल्कि वह एक जीवंत दस्तावेज़ है, जो समय के साथ बदलता है, विकसित होता है और देश की आवश्यकताओं के अनुरूप नई परिभाषाएँ गढ़ता है। उन्होंने याद दिलाया कि पिछले 75 वर्ष में संविधान ने अनेक चुनौतियों को पार करते हुए भारत को स्थिर, मजबूत और सफल लोकतंत्र बनाए रखने में निर्णायक भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री ने नागरिकों से अपील की कि संविधान केवल अधिकारों का स्रोत नहीं, बल्कि कर्तव्यों की भी याद दिलाता है। उन्होंने युवा पीढ़ी विशेष रूप से छात्रों से आग्रह किया कि वे संविधान का अध्ययन करें, उसकी भावना को समझें और उसे जीवन में उतारें।

संविधान दिवस: केवल स्मरण नहीं, संकल्प भी

प्रधानमंत्री मॉदी ने कहा कि संविधान दिवस हमें अपने सिद्धांतों, आदर्शों और जिम्मेदारियों की याद दिलाता है। उन्होंने इस अवसर को “राष्ट्र निर्माण के संकल्प के रूप में” मनाने की अपील की।

उन्होंने कहा कि यह दिन हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम संविधान की आत्मा के अनुसार आचरण कर रहे हैं? क्या हम समानता और न्याय की भावना को रोज़मर्रा की जिंदगी में अपनाते हैं? क्या हम समाज के सबसे कमजोर वर्ग की आवाज़ को सुन पा रहे हैं? प्रधानमंत्री ने कहा कि संविधान हमें केवल लोकतांत्रिक अधिकार ही नहीं देता, बल्कि एक अधिक न्यायपूर्ण, समावेशी और आधुनिक भारत बनाने की दिशा भी दिखाता है।

संविधान—भारत का पथ, प्रेरणा और भविष्य

अपने पत्र के अंत में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि संविधान दिवस केवल इतिहास की याद नहीं, बल्कि भविष्य की तैयारी भी है। संविधान ने भारत को वह ताक़त दी है, जिसके सहारे देश ने गरीबी, अशिक्षा, असमानता जैसी चुनौतियों से लड़ते हुए विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाई है।

प्रधानमंत्री ने विश्वास जताया कि संविधान के मूल्यों को अपनाकर भारत 21वीं सदी में विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता रखता है। उन्होंने सभी नागरिकों से अपील की कि वे इस महान दस्तावेज़ को सिर्फ पढ़ें नहीं, बल्कि उसके विचारों को जीवन का हिस्सा बनाएं।

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