MGNREGA की जगह VB-G RAM G बिल: कामगारों और राज्यों पर क्या असर?
सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि अगर सरकार वाकई 125 दिन रोजगार देना चाहती थी तो इसे MGNREGA के तहत ही लागू किया जा सकता था। कानून को योजना में बदलने से ग्रामीणों के अधिकार और रोजगार सुरक्षा कमजोर होगी।
केंद्र सरकार ने हाल ही में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) को बदलकर विकास भारत गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन ग्रामीण (VB-G RAM G बिल, 2025) लाने का प्रस्ताव रखा है। इस पर सोशल एक्टिविस्ट और मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) से जुड़े निखिल डे ने गंभीर आपत्तियां जताई हैं।
निखिल डे के अनुसार, नई योजना कानूनी अधिकारों को कमजोर कर देती है, खर्च को राज्यों पर डालती है और एक अधिकार-आधारित कानून को केवल केंद्र की सहमति पर चलने वाली योजना में बदल देती है। उन्होंने बताया कि MGNREGA देश भर में लागू एक मांग-आधारित रोजगार गारंटी कानून था, जिसमें हर ग्रामीण परिवार 100 दिन काम मांग सकता था।
कानूनी अधिकारों में कमी
नई बिल के तहत केंद्र सरकार तय करेगी कि राज्यों को कितनी राशि दी जाएगी। पहले केंद्र मजदूरी का पूरा खर्च वहन करता था और यह कानूनी जिम्मेदारी थी। अब यह सुनिश्चित नहीं है कि ग्रामीणों को काम की गारंटी मिलेगी। VB-G RAM G बिल में केंद्र तय करेगा कि योजना किन क्षेत्रों में लागू होगी—पूरे राज्य, जिले या ब्लॉक में। राज्यों को केंद्र के निर्देशानुसार योजना लागू करनी होगी। इस प्रकार योजना पूरी तरह केंद्र नियंत्रित हो जाएगी।
नए फोकस क्षेत्र और योजना का स्वरूप
सरकार का दावा है कि नई योजना टिकाऊ संपत्तियों, जलवायु अनुकूलन और एकीकृत योजना पर केंद्रित होगी। लेकिन निखिल डे के अनुसार, मूल MGNREGA रोजगार गारंटी कानून था, जिसे हटा कर एक वैकल्पिक योजना में बदल दिया गया। 125 दिन काम का दावा कहीं भी कानूनी गारंटी नहीं देता। पंचायतें अब केवल योजना लागू करने वाली एजेंसियां बन गई हैं, जबकि पहले वे परियोजनाओं का चयन और प्राथमिकता तय करती थीं।
60:40 मॉडल
नई योजना में केंद्र और राज्य के बीच लागत साझा करने का 60:40 मॉडल लागू होगा। राज्यों के लिए यह चुनौतीपूर्ण है, खासकर चुनावों के समय। यदि राज्य अपनी हिस्सेदारी नहीं देंगे तो केंद्र अपनी राशि जारी नहीं करेगा। इससे योजना में देरी और असफलता की संभावना बढ़ जाएगी। MGNREGA ने मजदूरों को मोलभाव करने की ताकत दी थी। नए कानून में यह ताकत समाप्त हो जाएगी क्योंकि यह मांग-आधारित नहीं है और गारंटी भी नहीं देती।
सामाजिक और कानूनी चिंताएं
विशेषज्ञों का कहना है कि यह बिल मजदूर विरोधी कदम है। कानून की जगह केवल एक चयनात्मक योजना आई है, जिसे चुनावों या नीति अनुसार बदल या रोका जा सकता है। इससे ग्रामीण रोजगार और लोकतंत्र दोनों प्रभावित होंगे।