क्या हाथरस क्या कोलकाता, खाकी वर्दी पर क्यों लगते हैं एक जैसे आरोप
कोलकाता डॉक्टर रेप-मर्डर केस में परिवार ने अब पुलिस पर दबाव में अंतिम संस्कार और रिश्वत देने का आरोप लगाया है।
9 अगस्त को कोलकाता के आरजी कर हॉस्पिटल के सेमिनार हाल में एक शव मिलता है,मालूमात के बाद पता चला कि शव ट्रेनी महिला डॉक्टर का है जिसके साथ ना सिर्फ दुष्कर्म किया गया बल्कि बेरहमी से हत्या की गई। जाहिर सी बात थी कि इस मामले को उछलना था। लेकिन इन सबके बीच कोलकाता पुलिस का संवेदनहीन रवैया भी दिखाई दिया। मसलन परिवार से यह कहना कि आपकी बेटी ने खुदकुशी की है। शव को दिखाने में आनाकानी करना। एफआईआर दर्ज करने में देरी करना और शनव का अंतिम क्रिया कर्म कराना। अंतिम क्रिया कर्म पर पुलिसिया दबाव की बात पहले भी आती रही है। लेकिन अब तो मृत डॉक्टर के पिता का आरोप है कि कोलकाता पुलिस ने अंतिम संस्कार के लिए दबाव डाला था और कुछ ना बोलने के लिए रिश्वत की पेशकश की थी। यह मामला भले ही कोलकाता का हो लेकिन इस तरह का मामला सिर्फ दो साल पहले यूपी के हाथरस से भी आया था। यहां हम आपको बताएंगे कि खाकी वर्दी पर इस तरह के आरोप क्यों लगते हैं। लेकिन उससे पहले हाथरस कांड के बारे में जानिए।
हाथरस कांड
यूपी की राजधानी लखनऊ से हाथरस की दुरी 400 किमी है लेकिन दिल्ली से इसकी दूरी करीब 200 किमी है। एक लड़की के संग कुछ लड़के दुष्कर्म करते हैं, परिवार शिकायत दर्ज कराने की कोशिश करता है। लेकिन पुलिसिया व्यवहार से आहत वो लड़की खुद को आग लगाती है। पहले उसका इलाज हाथरस,अलीगढ़ और बाद में दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल भेज दिया जाता है. हालांकि मौत को वो मात नहीं दे पाती है और यहीं से दूसरे तरह का संघर्ष शुरू हो जाता है। यूपी पुलिस का आरोप है कि परिवार की मर्जी के बगैर में रात में ही अंतिम संस्कार किया जाता है। परिवार ने यहां तक आरोप लगाया था कि किसके शव को जलाया गया पता नहीं। यही नहीं पुलिस पर संवेदनहीन तरीके से अंतिम संस्कार करने का आरोप भी लगा था. हालांकि पुलिस ने इनकार कर दिया था। इस विषय पर सियासत भी हुई है। लेकिन मूल सवाल यह है कि पुलिस इस तरह का काम क्यों करती है।
उन्नाव कांड
यूपी में ही हाथरस से पहले राजधानी लखनऊ से सिर्फ 80 किमी दूर उन्नाव में एक लड़की के साथ रेप होता है,आरोप बीजेपी विधायक पर लगता है। पुलिस के पास पीड़ित परिवार शिकायत लेकर जाता है। लेकिन शिकायत लेने से मना कर दिया जाता है। आहत परिवार का एक सदस्य खुदकुशी की कोशिश करता है। उसके बाद एफआईआर दर्ज होती है। लेकिन पुलिस के चौखट पर चक्कर लगाते लगाते परिवार बेदम हो जाता है, परिवार पूरी तरह उजड़ जाता है। विपक्षी दलों के हो हल्ला के बाद सरकार दबाव आती में है, केस चलता है, फिलहाल बीजेपी विधायक रहे आरोपी को अदालत से सजा मिलती है। लेकिन सवाल तो वही है कि पुलिस की वर्दी पर दाग क्यों लगते हैं।
क्या है एक्सपर्ट कमेंट
इस संबंध में पूर्वांचल यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ प्रवीणा कहती हैं कि दरअसल हमारी पुलिसिंग व्यस्था अंग्रेजी मानसिकता से नहीं निकल पाई है। अंग्रेज जब इस देश पर शासन कर रहे थे तो उनका मकसद सिर्फ यही था कि किसी तरह अपनी सत्ता को बचाए रखना है, लिहाजा उनकी पुलिसिंग से तत्कालीन ब्रिटिश जनता से भावनात्मक तौर पर लगवा नहीं था। एक तरह से पुलिस उनके लिए औजार थी। दुर्भाग्य से देश की आजादी के बाद भी सरकारों ने पुलिस को अपनी सत्ता को बचाए रखने का औजार माना। लिहाजा चाहे कोलकाता हो, उन्नाव हो या हाथरस इस तरह की घटनाओं का गवाह बनते हैं इसके साथ आधारभूत संरचना में भी कमी है। एक पुलिस वाले पर हजारों की संख्या में लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है और वो खुद तनाव के दौर से गुजर रहा है। इसके अलावा सत्ता और समाज के प्रभावशाली लोग पुलिसिया तंत्र से साठगांठ बना चुके हैं लिहाजा इस तरह के मामले सामने आते रहते हैं।