प्रदूषण, खनन, यूरेनियम संकट, सोनिया गांधी का सरकार पर सबसे बड़ा वार

सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार की नीतियों ने भारत को पर्यावरणीय आपातकाल में धकेल दिया है। अरावली में खनन, प्रदूषण और भूजल संकट को बड़ा खतरा बताया।

Update: 2025-12-03 04:42 GMT

Sonia Gandhi editorial: कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने देश की बिगड़ती पर्यावरणीय स्थिति पर गंभीर चिंता जताई है। एक संपादकीय में अपने विस्तृत लेख में उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार के पिछले एक दशक के निर्णयों ने भारत को पूर्ण पर्यावरणीय आपातकाल” की स्थिति में पहुंचा दिया है। गांधी के अनुसार,अरावली में खनन की नई छूट से लेकर दिल्ली की जहरीली हवा और भूजल में यूरेनियम की बढ़ती मात्रा ये सभी घटनाएं किसी एक दिन की समस्याएं नहीं हैं, बल्कि एक बड़े और लगातार चल रहे संकट के संकेत हैं।

अरावली में खनन की छूट पर कड़ा विरोध

सोनिया गांधी ने सरकार के उस फैसले पर सवाल उठाया जिसमें 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले अरावली पहाड़ों को खनन प्रतिबंधों से बाहर कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि अरावली श्रृंखला का लगभग 90% हिस्सा इसी दायरे में आता है, जिससे पूरी श्रृंखला बड़े पैमाने पर खनन के लिए खुल सकती है।

अरावली न केवल मरुस्थलीकरण को रोकने वाली प्राकृतिक ढाल है, बल्कि दिल्ली-एनसीआर के लिए धूल और गर्म हवाओं से सुरक्षा कवच भी है। गांधी ने इसे अरावली के लिए मौत का फरमान बताया।

दिल्ली–एनसीआर की विषैली हवा से बढ़ती मौतें

लेख में दिल्ली की वार्षिक सर्दियों वाली स्मॉग समस्या को भी गंभीरता से उठाया गया। गांधी ने शोधों का हवाला देते हुए कहा कि देश के 10 बड़े शहरों में प्रदूषण के कारण 34,000 लोगों की वार्षिक मृत्यु होने का अनुमान है। इसके बावजूद, दीर्घकालिक सुधारों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

भूजल में यूरेनियम की चिंता

सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की हालिया रिपोर्ट का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि दिल्ली के 13–15% भूजल नमूनों में यूरेनियम की मात्रा मानकों से अधिक पाई गई है। पंजाब और हरियाणा की स्थिति इससे भी खराब है। गांधी के अनुसार, यह गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का संकेत है, जिसके दुष्परिणाम लंबे समय तक दिखाई देंगे।

'ये घटनाएं अलग-अलग नहीं, सिस्टम नाकाम'

गांधी ने दावा किया कि पर्यावरणीय संकट की जड़ हाल के वर्षों में किए गए वे नीतिगत बदलाव हैं, जिनसे निगरानी और संरक्षण तंत्र कमजोर हुआ है।

खास उदाहरण:

• वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 2023: बड़े भू-भागों को वन अनुमति नियमों से बाहर कर दिया।

• ड्राफ्ट EIA अधिसूचना 2020: जनसुनवाइयों को कमजोर किया, निगरानी कम की और कई परियोजनाओं को छूट दी।

• सीआरज़ेड अधिसूचना 2018: समुद्री तटीय क्षेत्रों में निर्माण को आसान बनाया, संवेदनशील इलाकों को खतरे में डाला।

सोनिया गांधी के मुताबिक इन नीतियों ने पर्यावरणीय सुरक्षा ढांचे को कमजोर कर दिया।

कॉरपोरेट चंदे का प्रभाव?

सोनिया गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सार्वजनिक हुए इलेक्टोरल बॉन्ड डेटा का हवाला दिया और दावा किया कि कई पर्यावरणीय मंजूरियां और नीतिगत निर्णय बड़े कॉरपोरेट समूहों के चंदे से प्रभावित दिखते हैं।उन्होंने सवाल उठाया: “क्या नीतिनिर्माण को इतने खुलेआम बिकने दिया जा सकता है?”

स्थानीय समुदायों के प्रति ‘दमनकारी’ रवैया

गांधी ने आदिवासी समुदायों के प्रति सरकार के रुख को भी आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि  वन सर्वेक्षण ऑफ इंडिया ने जंगलों की कमी के लिए गलत तरीके से वनाधिकार अधिनियम 2006 को दोषी ठहराया।  राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने 65,000 परिवारों को बाघ अभयारण्यों से हटाने का प्रस्ताव रखा।उन्होंने इसे कानून के विरुद्ध और स्थानीय समुदायों के साथ अन्याय बताया।

पर्यावरण के लिए ‘नया मसौदा’ आवश्यक

गांधी ने तत्काल कदम उठाने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को इन बिंदुओं पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। 

• ग्रेट निकोबार, हसदेव अरण्य और धिरौली में जारी वनों की कटाई रोकी जाए।

• अरावली और पश्चिमी घाटों में अवैध खनन पर कड़ी कार्रवाई की जाए।

• हिमालयी क्षेत्रों में पहाड़ काटने पर रोक लगे।

• हाल के वन कानूनों के संशोधन वापस लिए जाएं।

• राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को मजबूत और स्वतंत्र बनाया जाए।

• दिल्ली–एनसीआर की वायु गुणवत्ता और भूजल संकट पर केंद्र–राज्य समन्वय बढ़ाया जाए।

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