काम पर ताले, सड़कों पर मजदूर– 'भारत बंद' के साथ ट्रेड यूनियनों का सरकार पर निशाना
Trade Union Strike: संयुक्त मंच ने कहा कि वह सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण, ठेकेदारी प्रथा, आउटसोर्सिंग और अनियमित रोजगार की नीतियों के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रहा है.;
Bharat Bandh 2025: केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ नाराजगी अब एक बड़े आंदोलन का रूप ले चुकी है. देशभर की 10 बड़ी ट्रेड यूनियनों और उनसे जुड़े संगठन 10 जुलाई को 'भारत बंद' की तैयारी में जुटे हैं. इसका मकसद है– श्रमिकों, किसानों और आम नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और सरकार की जनविरोधी नीतियों का विरोध. यूनियनों के संयुक्त मंच ने कहा कि हड़ताल की तैयारियां सभी क्षेत्रों में तेजी से चल रही हैं, जिनमें संगठित और असंगठित दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं.
25 करोड़ से अधिक कामगारों के शामिल होने की उम्मीद
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) ने कहा कि इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल में 25 करोड़ से अधिक श्रमिकों के शामिल होने की संभावना है. इसके साथ ही देशभर में किसान और ग्रामीण श्रमिक भी इस विरोध प्रदर्शन में भाग लेंगे. हिंद मजदूर सभा (HMS) का कहना है कि हड़ताल का असर बैंकिंग, डाक, कोयला खनन, फैक्ट्रियों और राज्य परिवहन सेवाओं पर पड़ सकता है.
कई बड़ी ट्रेड यूनियनें शामिल
इस संयुक्त मंच में AITUC के अलावा भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (INTUC), HMS, सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (CITU), ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (AIUTUC), ट्रेड यूनियन कोऑर्डिनेशन सेंटर (TUCC), सेल्फ-एम्प्लॉयड वीमेंस एसोसिएशन (SEWA), ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स (AICCTU), लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन (LPF) और यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (UTUC) भी शामिल हैं.
17 सूत्रीय मांगपत्र पर कार्रवाई नहीं
यूनियनों ने कहा कि उन्होंने पिछले साल श्रम मंत्री मनसुख मंडाविया को 17 सूत्रीय मांगपत्र सौंपा था. लेकिन सरकार ने उस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की. उनका आरोप है कि पिछले 10 वर्षों से वार्षिक श्रम सम्मेलन नहीं आयोजित किया गया है और सरकार ऐसे फैसले ले रही है, जो श्रमिकों के हितों के खिलाफ हैं.
श्रम कोड्स और 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' की आलोचना
संयुक्त मंच ने आरोप लगाया कि सरकार चार नए श्रम कोड थोपकर ट्रेड यूनियनों को कमजोर करना चाहती है, जिससे सामूहिक सौदेबाजी और हड़ताल जैसे अधिकारों को छीना जा सके. मंच ने कहा कि ये कानून नियोक्ताओं को लाभ देने और श्रमिकों के अधिकारों को खत्म करने के लिए लाए जा रहे हैं.
आर्थिक नीतियों पर सवाल
यूनियनों ने सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर भी नाराजगी जताई. उन्होंने कहा कि इन नीतियों की वजह से बेरोजगारी बढ़ रही है, महंगाई चरम पर है, मजदूरी घट रही है और शिक्षा, स्वास्थ्य व नागरिक सुविधाओं पर खर्च में कटौती हो रही है, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग की परेशानियां बढ़ रही हैं.
लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला
फोरम ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण अभियान का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि सरकार प्रवासी मज़दूरों के मताधिकार को खत्म करने की साजिश कर रही है. साथ ही उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में जन आंदोलनों को अवैध घोषित करने वाले कानूनों पर काम हो रहा है, जैसे कि महाराष्ट्र में पब्लिक सिक्योरिटी बिल और छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में इसी तरह के प्रस्तावित कानून.
निजीकरण, आउटसोर्सिंग और ठेकेदारी का विरोध
संयुक्त मंच ने कहा कि वह सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण, ठेकेदारी प्रथा, आउटसोर्सिंग और अनियमित रोजगार की नीतियों के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रहा है. संयुक्त किसान मोर्चा और कृषि श्रमिक संगठनों के साझा मोर्चे ने भी 10 जुलाई के भारत बंद को समर्थन देने की घोषणा की है. वे ग्रामीण भारत में बड़े स्तर पर प्रदर्शन करेंगे. इससे पहले ट्रेड यूनियनें 26 नवंबर 2020, 28-29 मार्च 2022 और 16 फरवरी 2023 को भी इसी तरह के राष्ट्रव्यापी हड़ताल कर चुकी हैं.