परिसीमन: दक्षिण भारत में असंतोष और भारत की संघीय संरचना पर असर, देखें VIDEO

भारत में पहले से ही तीन बड़ी खामियां हैं- भाषा, आर्थिक असमानता, हिंदी पट्टी का राजनीतिक प्रभुत्व. उनका कहना है कि परिसीमन से ये विभाजन और गहरा हो सकता है.;

Update: 2025-03-21 15:46 GMT

आगामी परिसीमन प्रक्रिया का उद्देश्य जनसंख्या के आधार पर चुनावी सीमाओं को फिर से निर्धारित करना है. हालांकि, इसने खासकर दक्षिण भारत में तीव्र बहस छेड़ दी है. राजनीतिक विश्लेषक और भारत जोड़ो अभियान के संयोजक योगेंद्र यादव का मानना है कि यह प्रक्रिया भारत की एकता के लिए दीर्घकालिक नजरिए से विनाशकारी हो सकती है.

The Federal से बातचीत में यादव ने बताया कि हालांकि राज्यों के भीतर निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण सामान्य प्रक्रिया है. लेकिन जब लोकसभा सीटों का पुनर्विभाजन राज्यों के बीच जनसंख्या के आधार पर किया जाता है तो यह भारत की संघीय संरचना में असंतोष और असंतुलन पैदा कर सकता है.

ऐतिहासिक संदर्भ

संविधान के तहत हर 10 साल में सीटों के पुनर्वितरण का प्रावधान था. लेकिन 1976 में इसे जनसंख्या नियंत्रण को बढ़ावा देने के लिए स्थगित कर दिया गया. यह स्थगन 2001 में फिर से बढ़ा दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप परिसीमन प्रक्रिया अब 2026 की जनगणना के बाद शुरू होगी. अब, जब यह प्रक्रिया फिर से शुरू होने वाली है, सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस सीट आवंटन के फॉर्मूले में कोई संशोधन किया जाए या इसे स्थायी रूप से स्थगित किया जाए. यादव ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि संविधान ने पहले ही दो बार इस प्रक्रिया को स्थगित किया है और मैं कहता हूं कि इसे हमेशा के लिए स्थगित कर दो. अगले 25 वर्षों तक इसे क्यों खोला जाए?

राजनीतिक विभाजन का संकट

यादव ने भारत में तीन प्रमुख विभाजन रेखाओं की पहचान की: भाषा (हिंदी बनाम गैर-हिंदी भाषी), आर्थिक विषमता (दक्षिण और पश्चिम भारत बनाम उत्तर और पूर्व भारत) और राजनीतिक प्रभुत्व (बीजेपी-शासित हिंदी पट्टी बनाम अन्य क्षेत्र). उनका मानना है कि परिसीमन इन विभाजनों को और बढ़ा सकता है. उन्होंने बताया कि अगर परिसीमन 2026 की अनुमानित जनसंख्या के आधार पर किया गया तो दक्षिण भारत के राज्य जैसे केरल, तमिलनाडु, कर्नाटका, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सीटें खो देंगे. जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान को सीटें मिलेंगी. इससे हिंदी भाषी राज्यों के पक्ष में राजनीतिक शक्ति का भारी संतुलन बनेगा.

अमित शाह का आश्वासन

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में दावा किया था कि "कोई राज्य सीटें नहीं खोएगा." हालांकि, यादव ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि भले ही सीटों की कुल संख्या अपरिवर्तित रहे, लोकसभा का आकार बढ़ सकता है. वे सीटों की कुल संख्या को 543 से बढ़ाकर 850 कर सकते हैं, जिससे केरल को 20 सीटें मिलेंगी. जबकि उत्तर प्रदेश की सीटें 80 से बढ़कर 125 हो जाएंगी. इसका असर यह होगा कि हिंदी पट्टी को संसद में अत्यधिक प्रभाव मिलेगा.

परिसीमन के विकल्प

यादव ने सीटों के पुनर्विभाजन का विरोध करते हुए राज्य विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ाने की सिफारिश की, ताकि बेहतर शासन सुनिश्चित किया जा सके. साथ ही, वे परिसीमन में भौगोलिक आकार के विचार की वकालत करते हैं, विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों के लिए. असम में हाल ही में हुए निर्वाचन क्षेत्र सीमाओं में बदलाव को उन्होंने गेरिमेंडरिंग का उदाहरण बताया और इसका विरोध किया. यादव ने कहा कि प्रतिनिधित्व में सुधार के कई तरीके हैं, बिना संघीय संतुलन को बिगाड़े. हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उत्तर भारत जनसंख्या के आधार पर अधिक सीटों की मांग न करे. जैसे कि दक्षिण भारत टैक्स योगदान के आधार पर अधिक संघीय धन की मांग नहीं करता.

हिंदी बनाम क्षेत्रीय भाषा

परिसीमन के अलावा यादव ने हिंदी की प्रमुखता को लेकर भी चिंता जताई. उन्होंने प्रस्तावित किया कि संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भाषाओं को समान आधिकारिक दर्जा दिया जाना चाहिए. यादव ने कहा कि अंग्रेजी अब भारत की वास्तविक आधिकारिक भाषा बन चुकी है, जिससे वर्गीय विभाजन बढ़ा है और रचनात्मकता पर अंकुश लगा है. हिंदी थोपने से एकता के बजाय असंतोष पैदा हुआ है. हमें सभी भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना चाहिए और पुराने 'आधिकारिक भाषा' के विचार से बाहर निकलना चाहिए.

राजनीतिक परिणाम और भविष्यवाणी

यदि केंद्र सरकार लोकसभा सीटों का पुनर्विभाजन करती है तो यादव ने भविष्यवाणी की है कि इससे दक्षिण भारत में असंतोष और बढ़ेगा. यादव ने चेतावनी दी कि इससे दक्षिण भारत को और अधिक बाहरी महसूस होगा, खासकर जब आर्थिक और राजनीतिक शक्ति उत्तर की ओर बढ़ेगी. यादव ने दीर्घकालिक दृष्टिकोण पर जोर देते हुए राजनीतिक नेताओं से आग्रह किया कि वे भारत की एकता को बनाए रखने के लिए मौजूदा सीट आवंटन फॉर्मूले को अनिश्चितकाल तक बनाए रखें.


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