अब तक व्यर्थ माना जाता रहा शरीर का यह अंग, आधुनिक विज्ञान के नए तथ्य

अपेंडिक्स, पेट के दाहिने निचले हिस्से में बड़ी आंत की शुरुआत से जुड़ी एक छोटी नलीनुमा संरचना है, लंबे समय तक इसे विज्ञान में 'निष्क्रिय अवशेष' माना जाता रहा...

Update: 2025-12-23 16:39 GMT
शरीर का ये अंग बेकार नहीं है बल्कि महत्वपूर्ण है अपेंडिक्स
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अपेंडिक्स सचमुच बेकार होता तो तेज डायरिया या गंभीर आंत संक्रमण के बाद कुछ लोगों की रिकवरी दूसरों से तेज क्यों होती? यह सवाल आधुनिक गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और इम्यूनोलॉजी ने पिछले एक दशक में गंभीरता से उठाया और जवाब चौंकाने वाला है।

अपेंडिक्स, जो पेट के दाहिने निचले हिस्से में बड़ी आंत की शुरुआत से जुड़ी एक छोटी नलीनुमा संरचना है, लंबे समय तक इसे चिकित्सा विज्ञान में 'निष्क्रिय अवशेष' माना जाता रहा। लेकिन नई रिसर्च बताती है कि यह अंग चुपचाप हमारी आंत और प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए एक सुरक्षा कवच की तरह काम करता है।

आंतों का छुपा हुआ संरक्षक

न्यूरो-इम्यूनोलॉजी और गैस्ट्रोएंटरोलॉजी से जुड़ी आधुनिक रिसर्च बताती है कि अपेंडिक्स आंतों में मौजूद लाभकारी जीवाणुओं को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाता है।

स्प्रिंगर जर्नल और नेचर सायंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित अध्ययनों के अनुसार, अपेंडिक्स में अच्छे बैक्टीरिया एक विशेष जैविक संरचना बायोफिल्म के रूप में सुरक्षित रहते हैं। जब तेज दस्त, संक्रमण या लंबे समय तक एंटीबायोटिक लेने से आंत की माइक्रोबायोम नष्ट हो जाती है, तब यही अपेंडिक्स एक बैक-अप सिस्टम की तरह काम करता है। इसी कारण वैज्ञानिक इसे “माइक्रोबायोटा रिज़र्वायर” कहते हैं। यानी संकट के बाद आंत को दोबारा संतुलित करने वाला भंडार।

अपेंडिक्स में सूजन क्यों होती है?

जब मल कण, संक्रमण या सूजन के कारण अपेंडिक्स का मुख बंद हो जाता है तो भीतर बैक्टीरिया तेजी से बढ़ने लगते हैं। यही स्थिति अपेंडिसाइटिस कहलाती है। इसमें तेज़ पेट दर्द, उल्टी, बुखार और कई बार आपातकालीन शल्यक्रिया की आवश्यकता पड़ती है। यानी अपेंडिक्स का सक्रिय होना ही उसकी बीमारी का कारण बन सकता है लेकिन यह उसकी उपयोगिता को नकारता नहीं।

अपेंडिक्स निकालने के बाद क्या बदलता है?

अपेंडिक्स निकलवाने के बाद भी व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है, क्योंकि शरीर वैकल्पिक रास्ते विकसित कर लेता है। लेकिन स्प्रिंगर में प्रकाशित रिव्यू स्टडीज़ बताती हैं कि कुछ लोगों में अपेंडेक्टोमी के बाद आंत की माइक्रोबायोटा की विविधता घट सकती है।

कई मामलों में यह गट डिस्बायोसिस की स्थिति पैदा कर सकती है यानी अच्छे और खराब बैक्टीरिया के बीच संतुलन बिगड़ना। यह हर व्यक्ति में गंभीर समस्या नहीं बनता, लेकिन यह स्पष्ट करता है कि अपेंडिक्स कोई निष्प्रभावी अंग नहीं है।

इम्यून सिस्टम की प्रशिक्षणशाला

अपेंडिक्स केवल बैक्टीरिया का सुरक्षित स्थान नहीं है। इसमें बड़ी मात्रा में लिंफोइड टिश्यू पाया जाता है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र जैसा काम करता है।

सायंटिफिक जर्नल पब्लिशर MDPI और जर्नल ऑफ क्लिनिकल मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययनों के अनुसार, यहां मौजूद इम्यून कोशिकाएं यह पहचानना सीखती हैं कि कौन-से जीवाणु मित्र हैं और किनसे लड़ना है। यहीं से निकलने वाली IgA एंटीबॉडी आंत की भीतरी परत को संक्रमण से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये IgA हमारे शरीर की इम्यून सिस्टम (रोग-प्रतिरोधक क्षमता) से जुड़ा एक खास तरह का एंटीबॉडी/प्रोटीन होता है। इसका पूरा नाम इम्युनोग्लोबुलिन A है।


विकासवादी विज्ञान क्या कहता है?

नेचर और Gut Pathogens में प्रकाशित इवॉल्यूशनरी स्टडीज़ बताती हैं कि अपेंडिक्स लाखों वर्षों में विकसित हुआ है और आज भी कई स्तनधारियों (मेमल्स) में मौजूद है। अगर यह पूरी तरह बेकार होता तो विकास की प्रक्रिया में यह कब का समाप्त हो चुका होता। इसका संरक्षित रहना इस बात का संकेत है कि यह विशेष परिस्थितियों, खासकर संक्रमण और पाचन संबंधी संकटों में शरीर को जैविक लाभ देता है।



डायरिया से उबरने में अपेंडिक्स की भूमिका

प्राइमेट्स पर किए गए अध्ययनों में पाया गया कि जिन प्रजातियों में अपेंडिक्स मौजूद था, उनमें डायरिया की अवधि और गंभीरता दोनों कम थीं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इसका कारण वही सुरक्षित लाभकारी बैक्टीरिया हैं, जो जरूरत पड़ने पर आंत को दोबारा स्वस्थ बनाने में मदद करते हैं।


आधुनिक विज्ञान आज साफ कहता है कि अपेंडिक्स कोई निष्क्रिय मांसल थैली नहीं बल्कि आंत और प्रतिरक्षा प्रणाली का एक छुपा हुआ रक्षक है। यह हमें रोज महसूस नहीं होता। लेकिन संकट के समय जब आंत टूटती है, इम्यून सिस्टम डगमगाता है,तब यह चुपचाप अपना काम करता है। ठीक वैसे ही, जैसे शरीर के कई जरूरी अंग,जो तब तक दिखाई नहीं देते,जब तक उनकी सबसे अधिक आवश्यकता न पड़ जाए।



डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।


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