त्वचा के लिए घातक बन रहीं हैं केमिकल कॉकटेल क्रीम! चिंता में डॉक्टर्स

त्वचा संबंधी समस्याएं दूर करने वाली अधिकांश क्रीम दवाएं नहीं हैं! बल्कि ये अवैज्ञानिक केमिकल कॉकटेल हैं, जो क्विक-फिक्स का वादा करती हैं। डॉक्टर्स ने जताई चिंता

Update: 2025-11-24 04:39 GMT
स्किन केयर क्रीम्स बिगाड़ रहीं हैं त्वचा की सेहत, डॉक्टर्स ने बताया कैसे
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Skin Care: मेडिकल काउंटर में रखी साधारण-सी दिखाई देने वाली स्किन केयर क्रीम अंदर से कैसी होती है, यह ज्यादातर लोग नहीं जानते। लेकिन एक हेल्थ समिट में शामिल त्वचा रोग विशेषज्ञों (Skin Care Doctors ) ने जो तस्वीर सामने रखी, वह साफ बताती है कि यह समस्या अब सामान्य नहीं रही बल्कि यह एक राष्ट्रीय स्तर की स्वास्थ्य आपात स्थिति बन चुकी है।

किसी भी मेडिकल स्टोर से उठाई गई एक "स्किन क्रीम" वास्तव में एक रासायनिक कॉकटेल हो सकती है। जो सुपर-पोटेंट स्टेरॉयड, एंटीबायोटिक, एंटीफंगल, ब्लीचिंग एजेंट और कई जहरीले रसायनों का अवैज्ञानिक मिश्रण हो सकती है। अर्थात ऐसे रसायनों का मिश्रण,जिन्हें वैज्ञानिक रूप से एक साथ मिलाने का कोई तर्क ही नहीं है। और सबसे चिंताजनक बात यह है कि इनका उपयोग अब पूरे उपमहाद्वीप में फेयरनेस, पिग्मेंटेशन, मुहांसे, फंगल इंफेक्शन, स्किन की लगभग हर समस्या के निदान के लिए किया जा रहा है।

स्किन केयर के ज्यादातर ब्रैंड्स में सुपर-पोटेंट स्टेरॉयड!

समिट में आए डॉ.राकेश कुमार ने अपनी एक सरल खोज में सामने आई चौंकाने वाली स्थिति के बारे में बताया। इन्होंने दिखाया कि फार्मेसी ऐप्स पर ही 70–80 ब्रांड केवल स्टेरॉयड कॉम्बिनेशन क्रीम के हैं। और हैरानी यह है कि इनमें सबसे अधिक उपयोग हो रहा है क्लास-1 सुपर-पोटेंट स्टेरॉयड क्लोबेटासोल का।

क्लोबेटासोल वह दवा है, जिसे डॉक्टर बहुत सीमित स्थितियों में, बहुत कम अवधि के लिए किसी रोगी को देते (Prescribe) हैं। लेकिन अब यही दवाई नीओमाइसिन, मिकोनाज़ोल, जेंटामाइसिन,हाइड्रोक्विनोन और यहां तक कि कॉन्टैक्ट-सेंसिटाइज़र जैसे तत्वों के साथ मिलाई जा रही है। डॉ.राकेश ने स्पष्ट कहा कि इन मिश्रणों में कोई वैज्ञानिक तर्क नहीं है, फिर भी इन्हें हर समस्या की क्रीम की तरह बेचा जा रहा है। यह खतरनाक है।


नए कलेवर में बैन हुई क्रीम

बैन हुई क्रीम्स नई पैकेजिंग और नए नामों के साथ फिर बाज़ार में उपलब्ध हैं! इस पर चिंता व्यक्त करते हुए डॉ. राजेथा दामिसेट्टी ने एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया और मार्केटिंग स्तर पर लोगों की सेहत के साथ चल रहे खिलवाड़ की तरफ ध्यान केंद्रित किया। इन्होंने बताया कि किसी अवैज्ञानिक FDC पर सरकार भले ही प्रतिबंध लगाए। लेकिन निर्माता सिर्फ एक छोटे-से बदलाव के साथ मार्केट में वही क्रीम या दवाई या कहें कि प्रॉडक्ट फिर से ले आते हैं। इन छोटे बदलावों में ये क्रियाएं मुख्य रूप से शामिल हैं...

एक अक्षर बदल देते हैं

प्लस/माइनस जोड़ देते हैं

फ़ॉन्ट/रंग बदल देते हैं

...और वही बैन की गई क्रीम नई शक्ल में वापस बाज़ार में!

एक उदाहण के साथ अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉक्टर दामिसेट्टी ने बताया कि क्लोबेटासोल + ऑफ़्लॉक्सासिन + ऑर्निडाज़ोल + टर्बिनाफ़ीन वाली एक कुख्यात क्रीम जब हटाई गई तो थोड़े बदलाव के साथ फिर लौट आई।

डॉ. दामिसेट्टी चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कि "राज्य-स्तरीय लाइसेंस का उपयोग करके निर्माता केंद्रीय दवा नियमन को बाईपास कर लेते हैं। इसी तरह मोमेटासोन वाली फेयरनेस क्रीमों की बाढ़ आई। यह पूरा खेल ऐसे चलता है कि एक को बैन करो, तीन नए वापस आ जाते हैं।"

डॉक्टर्स के सामने नई चुनौतियां

डॉ.सुधा रानी (HOD, GMC Hyderabad) ने वह वास्तविकता बताई जो रोज क्लीनिक में दिख रही है और डॉक्टर्स के साथ-साथ मरीजों के लिए नई समस्या खड़ी कर रही है। जैसे कि टिनिया स्किन इंफेक्शन। डॉक्टर सुधा कहती हैं कि जो टिनिया फंगल इंफेक्शन पहले कुछ दिनों में ठीक हो जाता था, अब वह हफ्तों तक बना रहता है, वापस आता है और दवाइयों को झेलने लगा है।

कुल मिलाकर टिनिया को ठीक करना अब सोरायसिस से भी कठिन हो गया है। मरीज बैग भरकर क्रीम लेकर आते हैं। हर क्रीम में स्टेरॉयड + एंटीफंगल + एंटीबायोटिक का मिश्रण होता है। और संक्रमण इतना बदल चुका होता है कि सामान्य दवाएं असर ही नहीं करतीं। ऐसे में डॉक्टर्स के सामने अधिक हेवी डोज़ देने की नई समस्या खड़ी होती है।

घातक है यह ट्रेंड

डर्मेटोलॉजिस्ट्स ने माना कि यह महामारी सिर्फ गलत दवाओं से नहीं फैली। बल्कि इसके लिए गैर-डर्मेटोलॉजिस्ट डॉक्टर, मेडिकल प्रतिनिधियों की अधूरी जानकारी, कॉर्पोरेट मार्केटिंग,जल्दी ‘गोरेपन’ या ‘तुरंत असर’ की उम्मीद इत्यादि... इन सबने मिलकर स्थिति खराब की।

समिट में आए अन्य पैनलिस्ट्स ने भी कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात की और बताया कि “हर विशेषज्ञ जैसे- गायनो, जनरल फिजिशियन, सुपर-स्पेशलिस्ट इत्यादि त्वचा पर दाना देखते ही पेशेंट को स्टेरॉयड कॉम्बिनेशन दे देते हैं। ऐसे ही यह क्राइसिस फैला।”

डॉक्टर अमरेंद्र पांडे ने बताया कि मेडिकल रिप्रेज़ेंटेटिव्स गैर-विशेषज्ञ डॉक्टर्स को आधा-अधूरा ज्ञान दे देते हैं और वही जानकारी आगे झोलाछापों और गैर-चिकित्सकीय लोगों तक पहुंचती है। इसका नतीजा है देशभर में बढ़ता दवा-प्रतिरोध।

डॉक्टर्स ने बताए सुधार के उपाय

समिट के दौरान डॉक्टर्स ने केवल त्वचा संबंधी समस्याओं की और ही ध्यान केंद्रित नहीं किया। बल्कि सरकारी स्तर पर और अन्य किन उपायों से इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है, इसके सुझाव भी दिए। इनमें मुख्य रूप से ये बातें सम्मिलित हैं...

सभी टोपिकल स्टेरॉयड पर सख्त प्रिस्क्रिप्शन नियंत्रण

अवैज्ञानिक कॉम्बिनेशन पर पूरी तरह प्रतिबंध

राज्य लाइसेंसिंग सिस्टम की गहन निगरानी

डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर से मिलें।

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