इंसानी शरीर में माइक्रोप्लास्टिक हो रहे हैं दाखिल, जानें क्या है वजह?

शोध में खुलासा हुआ कि हवा से पौधों में प्रवेश कर रहा माइक्रोप्लास्टिक सीधे हमारी थाली तक पहुंच रहा है, और उसकी वजह से स्वास्थ्य खतरा बढ़ रहा है।;

Update: 2025-05-02 10:49 GMT
पत्तियों के माध्यम से पौधों में समा रहा माइक्रोप्लास्टिक – नया शोध

एक हालिया शोध में यह खुलासा हुआ है कि माइक्रोप्लास्टिक हवा से सीधे पौधों में दाखिल हो इंसानी  खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर रहे हैं। यूके स्थित जर्नल 'नेचर' में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया है कि पहले किए गए अध्ययनों में यह सामने आया था कि उर्वरकों और रसायनों के उपयोग से उगाई गई फसलें और अनाज माइक्रोप्लास्टिक के स्रोत हो सकते हैं, लेकिन अब यह खतरा पत्तेदार सब्ज़ियों तक भी पहुँच चुका है जिन्हें आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है।

प्रवेश का रास्ता 

अध्ययन के अनुसार हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक पौधों की पत्तियों के माध्यम से अवशोषित हो जाते हैं और वहीं इकट्ठा हो जाते हैं। जब मनुष्य इन पौधों का सेवन करता है तो ये माइक्रोप्लास्टिक खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं।

शोध में यह भी पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक पौधों की जल और पोषक तत्व परिवहन प्रणाली से होकर अन्य ऊतकों तक भी पहुँच सकते हैं। इन कणों का आकार 1 माइक्रोमीटर से कम से लेकर 5 मिलीमीटर तक हो सकता है।

यह शोध नानकाई यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ एनवायर्नमेंटल साइंस एंड इंजीनियरिंग, यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट, चीनी विज्ञान अकादमी के रिसर्च सेंटर फॉर इको-एनवायर्नमेंटल साइंसेज़, नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी और बीजिंग एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चर एंड फॉरेस्ट्री साइंसेज़ के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।

जड़ों द्वारा अवशोषित

अध्ययन में यह भी बताया गया कि बाहरी वातावरण में जहाँ माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता अधिक होती है, वहाँ पौधे इन्हें ज्यादा तेजी से अवशोषित करते हैं। पौधों में इसकी मात्रा उस स्थान पर मौजूद माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा पर निर्भर करती है।

तमिलनाडु के पर्यावरण लेखक और कार्यकर्ता जियो डैमिन ने 'द फेडरल' से कहा, “जैसे पौधे पोषक तत्वों को जड़ों से अवशोषित करते हैं, वैसे ही वे मिट्टी के माध्यम से माइक्रोप्लास्टिक को भी अवशोषित कर लेते हैं। पहले राख को खाद के रूप में उपयोग किया जाता था, लेकिन अब जब कचरे में प्लास्टिक जलाया जाता है तो भारी धातुएं, रसायन और रंग मिट्टी में मिल जाते हैं।”

डैमिन ने यह भी कहा कि न केवल पौधे, बल्कि मनुष्य भी माइक्रोप्लास्टिक को सीधे सांसों के ज़रिए, प्लास्टिक पैकिंग में रखे भोजन, बोतलबंद जूस और जलती प्लास्टिक के निकट रहने से ग्रहण कर रहे हैं।

उपभोग को नियंत्रित किया जा सकता है

हालाँकि पौधों के ज़रिए माइक्रोप्लास्टिक के कुल सेवन को मापना फिलहाल संभव नहीं है, लेकिन वैश्विक स्तर पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार, औसतन हर व्यक्ति एक सप्ताह में लगभग 5 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक का सेवन कर रहा है, जो एक क्रेडिट कार्ड के वज़न के बराबर है।

डैमिन के अनुसार, कुछ उद्योग जानबूझकर माइक्रोप्लास्टिक का निर्माण करते हैं, जैसे प्लास्टिक क्रेयॉन और मेकअप उत्पाद, जबकि कुछ उद्योगों में यह अनजाने में होता है, जैसे बोतल, कप और प्लेटों के टूटने से।

उन्होंने कहा कि “हम पूरी तरह से इन उत्पादों का निर्माण नहीं रोक सकते, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर इनके उपयोग को सीमित किया जा सकता है।”

शरीर पर प्रभाव

शोध में यह भी कहा गया है कि नगरपालिका निकायों द्वारा प्लास्टिक कचरे को जलाने की प्रक्रिया पर पुनर्विचार की आवश्यकता है, क्योंकि इससे हवा के ज़रिए यह कण पौधों की पत्तियों तक पहुँच जाते हैं।

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में 2024 में प्रकाशित एक अध्ययन 'मानव स्वास्थ्य पर माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक का प्रभाव' के अनुसार, मनुष्य भोजन, सांस और त्वचा के संपर्क के माध्यम से इन कणों के संपर्क में आते हैं।

यह अध्ययन बताता है कि ये कण कोशिका झिल्ली को पार कर साइटोप्लाज्म और माइटोकॉन्ड्रिया तक पहुँच सकते हैं और वहां मौजूद रासायनिक तत्वों को धीरे-धीरे आसपास की ऊतकों में लीक कर नुकसान पहुंचा सकते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक आंत, रक्त, मस्तिष्क, अपरा (placenta) की रुकावटों को पार कर शरीर के कई हिस्सों तक पहुँच जाते हैं – जैसे अपरा, शिशु का पहला मल (meconium), स्तन दूध, फेफड़े, आंत, यकृत, गुर्दे, हृदय, रक्त, मूत्र और मस्तिष्क की रक्त वाहिकाएं – और यह शरीर की समस्त चयापचय प्रणाली को प्रभावित करते हैं।

नष्ट किये गए प्लास्टिक का क्या होता है

एसआरएम ग्लोबल हॉस्पिटल्स के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. नंदा कुमार कहते हैं कि प्लास्टिक का उपयोग दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक फर्नीचर और घरेलू बर्तनों का उपयोग भी बहुत व्यापक है और इनके निष्पादन के बाद क्या होता है यह भी चिंता का विषय है।

उनका कहना है, “समय के साथ प्लास्टिक कण सूरज की पराबैंगनी किरणों से टूटकर सूक्ष्म कणों में बदल जाते हैं और ये जल स्रोतों, मिट्टी और उनके आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रदूषित करते हैं। पौधे भी पर्यावरण से इन सूक्ष्म प्लास्टिक को अवशोषित करते हैं।”

पिछले साल तमिलनाडु स्थित एसडीएमआरआई नामक शोध केंद्र ने राज्य में समुद्री खाद्य में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति की पुष्टि की थी। चिकित्सक चेतावनी दे रहे हैं कि प्लास्टिक कचरे का अनुचित निपटान एक बड़ा स्वास्थ्य खतरा बन रहा है। विशेषज्ञ हृदयाघात, स्ट्रोक, तंत्रिका संबंधी विकार और अन्य गैर-संक्रामक बीमारियों के जोखिम को लेकर भी चिंतित हैं।

हृदय रोग का खतरा

डॉक्टरों के अनुसार माइक्रोप्लास्टिक को हटाई गई कैरोटिड धमनियों की पट्टिकाओं में पाया गया है, जो हृदय रोग और मस्तिष्क में रुकावट पैदा कर सकते हैं। इनहेल किए गए कण फेफड़ों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं, जैसे अन्य सूक्ष्म कण करते हैं।

डॉ. नंदा कुमार ने कहा, “वनस्पति आधारित भोजन या समुद्री खाद्य के ज़रिए विभिन्न प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक कण शरीर में पहुँचते हैं, जो आंतरिक अंगों में जमा होकर बाधाएं उत्पन्न कर सकते हैं। इसके अलावा, प्लास्टिक में मौजूद रंग और रसायन भी मनुष्यों और जानवरों के माध्यम से परोक्ष रूप से ग्रहण किए जाते हैं। ये रसायन कैंसरकारी हो सकते हैं और शरीर में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप और थायरॉयड का कारण बन सकती है।”

चिकित्सकों का यह भी मानना है कि माइक्रोप्लास्टिक सूजन, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम और आंतों की माइक्रोबायोम में असंतुलन का कारण बन सकते हैं। इसके साथ ही ये प्रतिरक्षा प्रणाली पर भी बुरा असर डालते हैं क्योंकि माइक्रोप्लास्टिक कणों को निगलने के बाद प्रतिरक्षा कोशिकाएं जल्दी मरने लगती हैं।

इम्यून सिस्टम पर प्रभाव

अपोलो प्रोटॉन कैंसर सेंटर के वरिष्ठ ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. प्रसाद ईश्वरन ने कहा कि कई अध्ययनों में यह पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक रक्त परिसंचरण में भी माइक्रोमोलर या नैनोमोलर सांद्रता में मौजूद हैं।

उन्होंने कहा, “जब माइक्रोप्लास्टिक हमारे भोजन में समाहित होकर शरीर में पहुँचते हैं, तो वे हमारे आंतरिक ऊतकों तक पहुँच जाते हैं। यह पहले से ही चिंता का विषय है कि हम इसे हवा से भी ग्रहण कर रहे हैं और पौधे इन्हें अपने अंदर समाहित कर हमारे भोजन तक पहुँचा रहे हैं। शोध से यह भी पता चला है कि फल और सब्ज़ियाँ या तो सीधे मिट्टी के संपर्क में होती हैं या फिर उनके ऊपर वैक्स की परत होती है, जैसे सेब में। वर्षों से हमारे जठरांत्र तंत्र को प्लास्टिक से अवगत कराया गया है, जिससे पेट की समस्याएं, सूजन, श्वासनली में जलन और कोलन पर प्रभाव पड़ा है। माइक्रोप्लास्टिक में बेंजीन जैसे रसायन होते हैं जो कैंसरकारी हो सकते हैं।”

रासायनिक तत्वों का शरीर पर असर बताते हुए उन्होंने कहा, “जब ये रसायन शरीर में समाहित होते हैं तो प्रतिरक्षा तंत्र उन्हें निष्कासित करने का प्रयास करता है, लेकिन अत्यधिक माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आने से शरीर धीरे-धीरे इन रसायनों को अपनी कोशिकाओं के रूप में स्वीकार करने लगता है। इससे प्रतिरक्षा तंत्र रासायनिक तत्वों को पहचानने में विफल हो जाता है और यही विफलता विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं जैसे हृदय रोग, सांस की समस्याएं, त्वचा संबंधी समस्याएं, तंत्रिका तंत्र की गड़बड़ियां और सूजन संबंधी विकारों का कारण बनती है।”

भोजन में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति से निपटने के लिए खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने पिछले वर्ष अगस्त में एक परियोजना शुरू की थी। इसका उद्देश्य खाद्य पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक की जांच के लिए मानक विधियां विकसित करना, लैब के बीच तुलना करना और उपभोक्ताओं में इसके संपर्क की मात्रा का डेटा एकत्र करना है।

FSSAI पहल

तमिलनाडु के एक खाद्य सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक पर छह साल से प्रतिबंध होने के बावजूद इसका उपयोग जारी है। बाजार में लगभग 15,000 प्रकार के प्लास्टिक उत्पाद हैं, जिनमें से केवल 15-20 ही प्रतिबंधित हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि सुरक्षित कहे जाने वाले सभी प्रकार के प्लास्टिक पर्यावरण में लीक होते हैं।

उन्होंने यह भी कहा, “हम खाद्य और आतिथ्य क्षेत्र में केवल स्वीकृत प्लास्टिक के उपयोग की अनुमति देते हैं। लेकिन जब पौधों के ज़रिए माइक्रोप्लास्टिक सीधे प्रवेश कर जाते हैं, तो मनुष्यों में इसके सेवन को नियंत्रित करना बेहद कठिन हो जाता है।”

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