बच्चो में होती हैं ये न्यूरोलजिकल समस्याएं,लक्षण ना करें इग्नॉर
बच्चों में न्यूरोलॉजिकल स्वास्थ्य यानी दिमाग और नर्वस सिस्टम से जुड़ी बीमारियां होना सामान्य है, इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है,समय रहत ध्यान देना काफी है...;
Neurological disorders in children : बच्चों में जब न्यूरोलजिकल समस्याओं की बात आती है तो पहले तो लोग इसे समझ नहीं पते हैं। जो लोग इस बारे में थोड़े अवेयर भी हैं तो उनमें भी ज्यादातर को ऑटिज्म और एडीएचडी जैसी समस्याओं का ही पता है। हालांकि ब्रेन स्ट्रोक से लेकर हेडक तक की समस्या छोटे बच्चों में हो सकती है। यहां तक कि एक महीने से कम उम्र के बच्चे को भी न्यूरोलजिकल दिक्कतें होती हैं।
बच्चों में न्यूरोलॉजिकल स्वास्थ्य यानी दिमाग और नर्वस सिस्टम से जुड़ी बीमारियां होना सामान्य है, इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि समय रहते इन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। क्योंकि इनका इलाज संभव है और बच्चों में रिजल्ट भी बेहतर आता है।
दरअसल, बच्चों का दिमाग जन्म के बाद भी तेजी से विकास करता है और इस दौरान अगर कोई गड़बड़ी होती है तो इसका सीधा असर उनकी सीखने की क्षमता, व्यवहार, और शारीरिक क्रियाओं पर पड़ सकता है। आइए जानते हैं कि बच्चों में कौन-कौन सी न्यूरोलॉजिकल समस्याएं सबसे अधिक देखने को मिलती हैं और इनके क्या संकेत हो सकते हैं।
सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral Palsy)
यह एक स्थायी लेकिन गैर-प्रगतिशील न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, जो जन्म से पहले यानी गर्भावस्था के दौरान या किसी कारण बाद में ब्रेन डैमेज के कारण हो सकती है। इसमें मांसपेशियों का नियंत्रण बिगड़ जाता है, जिससे बच्चा चलने-फिरने, बोलने या खाने में परेशानी महसूस कर सकता है।इसके लक्षणों में मुख्य रूप से ये समस्याएं शामिल हैं। जैसे, देर से बैठना, खड़ा होना या चलना, हाथ-पैरों का अकड़ना या ढीलापन, बोलने में समस्या।
ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder- ASD)
ऑटिज़्म एक न्यूरोडेवलपमेंटल कंडीशन है, जिसमें बच्चा सामाजिक संपर्क, संवाद और व्यवहार से जुड़ी गतिविधियों में कठिनाई महसूस करता है। इसका असर बच्चे की लर्निंग एबिलिटी और रिलेशनशिप्स पर पड़ता है।
बच्चे में एएसडी का सबसे प्रमुख लक्षण है, आंखों में आंखें न डालना। बच्चा आई कॉन्टेक्ट नहीं करता है। एक ही शब्द या हरकत को बार-बार दोहराना, अकेले रहना पसंद करना, रुटीन में बदलाव से परेशान होना। किसी भी मनचाही वस्तु के लिए बोलकर नहीं बताता बल्कि इशारे से बताता है।
एपिलेप्सी (Epilepsy/Seizure Disorder)
एपिलेप्सी एक ऐसी स्थिति है, जिसमें ब्रेन की विद्युत गतिविधि अनियमित हो जाती है, जिससे दौरे (seizures) पड़ते हैं। बच्चों में यह कई कारणों से हो सकता है, जैसे ब्रेन इंजरी, जन्मजात दोष या जेनेटिक कारण। दरअसल,हमारा ब्रेन एक बायो-इलेक्ट्रिकल ऑर्गन है। और हमारे शरीर में करोड़ों न्यूरॉन्स यानी तंत्रिका तंत्र की कोशिकाएं होती हैं, जो आपस में इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स से जुड़ी होती हैं।
ये सिग्नल्स दिमाग के हर हिस्से को कंट्रोल करते हैं और चलना, बैठना, सोचना, महसूस करना इत्यादि इसी का पार्ट हैं। इस बीमारी के लक्षणों में अचानक बेहोश होना, शरीर का झटका खाना, होश में आने पर भ्रम की स्थिति होना इ्त्यादि शामिल हैं।
एडीएचडी (Attention Deficit Hyperactivity Disorder)
यह एक आम न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें बच्चे का ध्यान केंद्रित नहीं होता। वह अत्यधिक ऐक्टिव रहता है और इम्पल्सिव बिहेवियर दिखाता है। इसका असर बच्चे की पढ़ाई और सामाजिक जीवन दोनों पर पड़ता है।
इसके लक्षणों में पढ़ाई पर ध्यान न देना, बार-बार चीज़ें भूल जाना, क्लास में बिना वजह बोलना, चंचलता, हर समय उछलकूद करना, एक जगह कुछ मिनट भी टिककर ना बैठ पाना या किसी एक काम में थोड़ी देर भी फोकस ना बना पाना।
हाइड्रोसेफेलस (Hydrocephalus)
इसमें बच्चे के मस्तिष्क में अतिरिक्त तरल (CSF) जमा हो जाता है, जिससे सिर का आकार असामान्य रूप से बढ़ जाता है। यह ब्रेन पर दबाव डाल सकता है और मानसिक विकास को प्रभावित कर सकता है।
इसके लक्षणों की बात करें तो इनमें, सिर का जल्दी बढ़ना, उल्टी, चिड़चिड़ापन, आंखों का नीचे की ओर जाना (sunsetting eyes), नींद में ज्यादा रहना मुख्य रूप से शामिल हैं।
न्यूरोमस्कुलर डिसऑर्डर्स (जैसे मस्कुलर डिस्ट्रॉफी)
इसमें मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाले नर्व्स धीरे-धीरे कमजोर होने लगते हैं, जिससे बच्चों की मसल्स वीक होती जाती हैं। बच्चे सामान्य चाल-ढाल और एक्टिविटी नहीं कर पाते।
इसके लक्षणों की बात करें तो जब तक यह समस्या पूरी तरह विकसित होती है, इससे पहले बच्चे में बार-बार गिरना, सीढ़ियां चढ़ने में परेशानी होना, देर से चलना या दौड़ने में अक्षम होना, जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
कब डॉक्टर से मिलें?
बच्चे की बढ़त उसकी उम्र के हिसाब से धीमी लगे।
बच्चे को लगातार दौरे पड़ रहे हैं।
बच्चा भाषा,याददाश्त या व्यवहार में असामान्य ऐक्टिविटीज करता है।
बच्चा लगातार थकान, उलझन या सिरदर्द की शिकायत करता है।
उपचार और मैनेजमेंट
बच्चों में न्यूरोलॉजिकल समस्याएं जल्दी पकड़ में आ जाएं तो सही इलाज और थेरेपी से उनका जीवन बेहतर बनाया जा सकता है। ट्रीटमेंट में फिजियोथेरेपी, स्पीच थेरेपी, काउंसलिंग और कुछ मामलों में दवाइयों या सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है।
बच्चों के दिमाग का विकास बेहद संवेदनशील प्रक्रिया है। अगर किसी भी तरह के असामान्य लक्षण नजर आएं तो इसे नज़रअंदाज़ न करें। समय पर निदान और उपचार से बच्चे की ज़िंदगी में बहुत बड़ा फर्क डाला जा सकता है।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से संपर्क करें।