दिल्ली की कॉलेज गोइंग गर्ल्स में 17.4% को PCOS, स्टडी में खुलासा
रिसर्च में बताया गया कि शहरी इलाकों में, विशेष रूप से वे स्थान जहाँ की जनसंख्या मिश्रित और गतिशील है, वहाँ PCOS के मामले अधिक देखने को मिल रहे हैं।;
PCOS In Young Generation: दिल्ली यूनिवर्सिटी और सफदरजंग अस्पताल के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक क्रॉस-सेक्शनल सर्वे और सिस्टमेटिक रिव्यू में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि दिल्ली की कॉलेजों में पढ़ने वाली 18-25 वर्ष की उम्र की युवतियों में से 17.4% को पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) है। यह भारत में दर्ज की गई दूसरी सबसे अधिक प्रचलन दर है।
PCOS: एक अनदेखा लेकिन गंभीर संकट
PCOS यानी पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम एक हार्मोनल एंडोक्राइन डिसऑर्डर है, जो प्रजनन आयु की महिलाओं को प्रभावित करता है। इसके लक्षणों में अनियमित माहवारी, बांझपन, चेहरे व शरीर पर अत्यधिक बाल (हिर्सूटिज़्म), मुंहासे और मोटापा शामिल हैं। स्टडी के अनुसार, "PCOS एक कॉमन समस्या है। लेकिन इस विषय पर अब तक काफी सीमित रिसर्च की गई हैं।"
पिछली स्टडीज़ की तुलना में दिल्ली की दर ज्यादा
यह अध्ययन 2010 से 2024 तक भारत में इसी आयु वर्ग की महिलाओं पर किए गए विभिन्न अध्ययनों के विश्लेषण के साथ प्रस्तुत किया गया है। पहले किए गए अध्ययनों के अनुसार देश में इस उम्र की महिलाओं में PCOS का औसत प्रचलन 8.41% था। 2023 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने बताया था कि भारत में PCOS की दर 3.70% से लेकर 22.50% तक हो सकती है। लखनऊ में सबसे कम (3.70%) और मुंबई में सबसे अधिक (22.50%) दर पाई गई थी।
शहरी महिलाओं में अधिक खतरा क्यों?
रिसर्च में बताया गया कि शहरी इलाकों में, विशेष रूप से वे स्थान जहाँ की जनसंख्या मिश्रित और गतिशील है, वहाँ PCOS के मामले अधिक देखने को मिल रहे हैं। “शैक्षणिक और व्यावसायिक अवसरों के लिए घर से दूर रहने वाली महिलाओं में मानसिक तनाव, खराब नींद की आदतें और असंतुलित खानपान PCOS के बढ़ते मामलों का कारण हो सकते हैं,” स्टडी में कहा गया है।
शोधकर्ताओं की टीम और मेथडोलॉजी
यह अध्ययन दिल्ली यूनिवर्सिटी के एंथ्रोपोलॉजी विभाग की अपूर्वा शर्मा, नाओरेम किरनमाला देवी, कल्लूर नवा सरस्वती और सफदरजंग अस्पताल की डॉक्टर यामिनी स्वरवाल द्वारा किया गया। इसमें कुल 1,164 कॉलेज जाने वाली महिलाओं को शामिल किया गया, जिनमें से 70.30% को पहले ही PCOS का निदान हो चुका था, और 29.70% महिलाओं को इस अध्ययन के दौरान अल्ट्रासाउंड के माध्यम से नई पहचान मिली।
सामाजिक-आर्थिक कारक और लाइफस्टाइल की भूमिका
Modified Kuppuswamy Scale के अनुसार , उच्च वर्ग और उच्च-मध्यम वर्ग की महिलाएं PCOS के अधिक खतरे में पाई गईं। उच्च आय वाली शहरी संस्कृति में फैट्स, शुगर, प्रोसेस्ड फूड्स का बढ़ता उपभोग, खाने का समय तय न होना, शारीरिक गतिविधियों की कमी और बैठकर काम करने की आदतें, ये सब इस विकार को बढ़ावा देने वाले कारक हैं।
जातीय असमानता और हेल्थ एक्सेस
शोध में यह भी पाया गया कि अनुसूचित जनजाति की महिलाओं में PCOS की दर सबसे अधिक (21.40%) रही, उसके बाद सामान्य वर्ग (19.90%), फिर अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति। यह अंतर, हेल्थ एक्सेस और सामाजिक असमानताओं को दर्शाता है।
PCOS एक मौन महामारी की तरह भारतीय युवतियों को प्रभावित कर रहा है। इस पर ज्यादा से ज्यादा रिसर्च और हेल्थ पॉलिसी इनिशिएटिव्स की जरूरत है, खासकर युवतियों में। सामाजिक जागरूकता, हेल्दी लाइफस्टाइल और रेगुलर स्क्रीनिंग से ही इस बढ़ते खतरे को समय रहते नियंत्रित किया जा सकता है।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।