पीएम मोदी की ये आदत कॉपी करना चाहते हैं युवा, चुकानी पड़ सकती है कीमत!
नींद हमारे स्वास्थ्य के लिए उतनी ही आवश्यक है, जितनी सांस लेना और भोजन करना। लेकिन फिर भी नींद को लेकर कई गलत धारणाएं पीढ़ियों से चली आ रही हैं...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के बारे में कहा जाता है कि वो हर दिन केवल 4 घंटे सोते हैं। और पिछले 11 साल से तो उन्होंने काम से कोई छुट्टी भी नहीं ली है। अगर 70 की उम्र में मोदी जी केवल 4 घंटे सोकर फिट रह सकते हैं, जेट लेग से बच सकते हैं तो हम क्यों नहीं? अगर आपके मन में भी ऐसे विचार आते हैं और आपने कम घंटे सोना शुरू कर दिया है तो सबसे पहले खुद को याद दिलाइए कि हर किसी की जीवन यात्रा अलग होती है और इसी के अनुसार व्यक्ति का मन और शरीर ढल जाता है। हर कोई दूसरे का क्लोन नहीं हो सकता। नींद कैसे मन और मस्तिष्क को प्रभावित करती है, विस्तार से जानें।
मोदीजी की नकल से पहले ये जान लें
नींद हमारे स्वास्थ्य के लिए उतनी ही ज़रूरी है जितनी सांस लेना और भोजन करना। लेकिन इसके बावजूद नींद को लेकर कई गलत धारणाएं पीढ़ियों से चली आ रही हैं। क्या कोई व्यक्ति सिर्फ 5 घंटे की नींद पर भी फिट रह सकता है? क्या नींद की कमी से मौत हो सकती है? इस स्पेशल फीचर में इन सभी मिथकों की गहराई से जांच की गई है। यह हमारी श्रृंखला का दूसरा और अंतिम भाग है, जिसमें इस बार ध्यान सिर्फ एक प्रश्न पर है कि एक व्यक्ति को वास्तव में कितनी नींद लेनी चाहिए? साथ ही इसमें झपकी (Naps), कम या ज्यादा सोने के स्वास्थ्य प्रभाव और पशु जगत में नींद के पैटर्न पर भी चर्चा शामिल है...
हर किसी को 8 घंटे सोना जरूरी है
यह विश्वास कि हर इंसान को ठीक 8 घंटे की ही नींद आवश्यक होती है, वैज्ञानिक रूप से सही नहीं है। शोध बताता है कि स्वस्थ युवाओं और वयस्कों के लिए 7 से 9 घंटे की नींद सबसे उपयुक्त मानी जाती है। लेकिन नींद की आवश्यकता उम्र के साथ बदलती रहती है। जैसे, नवजात शिशुओं को 14 से 17 घंटे, शिशुओं को 12 से 15 घंटे, टॉडलर अर्थात घुटलु चलने की उम्र में 11 से 14 घंटे और प्रीस्कूल उम्र में 10 से 13 घंटे। स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए यह 9 से 11 घंटे, किशोरों के लिए 8 से 10 घंटे, वयस्कों के लिए 7 से 9 घंटे और बुजुर्ग वयस्कों के लिए 7 से 8 घंटे उपयुक्त माने गए हैं।
साल 2023 में हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एक बड़े अध्ययन में यह निष्कर्ष दोहराया गया कि 8 घंटे का नियम सभी पर लागू नहीं होता और नींद की व्यक्तिगत जैविक लय (Chronotype) नींद की अवधि और समय तय करती है। इसलिए “हर किसी के लिए ठीक 8 घंटे” वाला सिद्धांत वैज्ञानिक रूप से पूर्ण नहीं है।
शरीर को कम नींद की आदत डालना
बहुत से लोग मानते हैं कि इंसान अपने शरीर को कम सोने की ट्रेनिंग दे सकता है। लेकिन यह दावा न्यूरोसाइंस और स्लीप शोध दोनों के अनुसार सही नहीं है। विशेषज्ञ बताते हैं कि बेहद ही दुर्लभ लोगों को आनुवंशिक कारणों से 6 घंटे या उससे कम नींद की जरूरत हो सकती है। लेकिन सामान्य शरीर को 7 से 9 घंटे से कम नींद देना नुकसानदायक है। अक्सर लोग कहते हैं कि उन्हें कम नींद में भी सब ठीक लगता है, लेकिन शोध के अनुसार ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनका शरीर नींद की कमी के दुष्प्रभावों के साथ “एडजस्ट” कर चुका होता है।
अर्थात शरीर के काम का प्रदर्शन कम हो चुका होता है लेकिन गिरावट इतनी धीरे हुई होती है कि व्यक्ति को एहसास भी नहीं होता। Pennsylvania Transportation Institute की स्लीप एक्सपर्ट Cynthia LaJambe के अनुसार “कुछ लोगों को लगता है कि वे कम सोकर भी अच्छे से काम कर रहे हैं। लेकिन उनकी कार्यक्षमता धीरे-धीरे गिर चुकी होती है। इसलिए शरीर को कम नींद की ट्रेनिंग देना संभव नहीं है।”
साल 2024 में Stanford Sleep Research Center द्वारा किए गए अध्ययन में यह भी पाया गया कि लगातार कम नींद लेने वाले लोग अपनी संज्ञानात्मक क्षमता की गिरावट का सही अनुमान लगाने में असमर्थ रहते हैं। यानी उन्हें लगता है कि वे अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं जबकि डेटा बताता है कि ऐसा नहीं है।
दिन में झपकी लेना अस्वस्थ है
आमतौर पर विशेषज्ञ नींद के चक्र को स्थिर रखने के लिए दिन में झपकी लेने से बचने की सलाह देते हैं। लेकिन यदि रात की नींद पूरी न हो पाई हो तो 20 मिनट की झपकी शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होती है। शोध के अनुसार, इतनी अवधि की झपकी शरीर और मस्तिष्क को तेजी से ऊर्जा देती है। हालांकि बहुत लंबी झपकी व्यक्ति को गहरी नींद में ले जा सकती है, जिससे उठने पर भारीपन या सुस्ती महसूस होती है।
दोपहर की झपकी, स्लीप एपनिया का संकेत
दुनिया के कई देशों में “सीएस्टा (Siesta)” संस्कृति है। जहां दोपहर में झपकी लेना सामान्य माना जाता है। वैज्ञानिक विश्लेषण बताते हैं कि दोपहर के समय शरीर की ऊर्जा स्वाभाविक रूप से घटती है और इसी कारण उस समय झपकी लेना जैविक रूप से स्वाभाविक हो सकता है। कई अध्ययनों में पाया गया कि छोटी झपकी लेने वाले लोगों में मूड, ध्यान, तार्किक क्षमता, प्रतिक्रिया समय और मानसिक प्रदर्शन बेहतर पाए गए।
साल 2023 में “Journal of the American Heart Association” ने रिपोर्ट किया कि सप्ताह में 1–3 बार छोटी झपकी लेने वाले वयस्कों में हृदय रोग का जोखिम काफी कम पाया गया। हालांकि अगर किसी व्यक्ति को हर दिन अत्यधिक थकान महसूस होती है और वह झपकी के बिना दिन नहीं निकाल पाता तो यह किसी नींद विकार जैसे स्लीप एपनिया का संकेत हो सकता है।
जितनी ज्यादा नींद, उतना बेहतर
बहुत से लोगों को पर्याप्त नींद नहीं मिलती, लेकिन कुछ लोग आवश्यकता से अधिक सोते हैं और मानते हैं कि इससे शरीर को और अधिक आराम मिलता है। किंतु शोध बताता है कि आवश्यकता से अधिक नींद भी स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकती है। 6 साल तक चले एक अध्ययन के अनुसार कम नींद लेने वालों में मोटापे का जोखिम 27% बढ़ा और अधिक सोने वालों में 21% बढ़ा यानी दोनों ही चरम स्थितियां नुकसानदायक हैं। 2024 में “PLOS Medicine” में प्रकाशित एक मेटा विश्लेषण में यह निष्कर्ष निकला कि 7–9 घंटे से कम या ज्यादा नींद लेने वाले व्यक्तियों में मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक का खतरा एक जैसी दर से बढ़ता है। यानी कम या अधिक दोनों नींद दुष्प्रभाव देती हैं।
नींद की कमी से मौत हो जाती है!
अब तक ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं हुआ कि किसी की मौत सीधे नींद की कमी के कारण हुई हो। 1965 का प्रसिद्ध उदाहरण Randy Gardner जिन्होंने 264.4 घंटे लगभग 11 दिन 24 मिनट बिना सोए गुजारे और वे जीवित रहे। हालांकि उनके व्यवहार, याददाश्त, एकाग्रता, मूड और सोचने की क्षमता में गंभीर गिरावट दर्ज की गई। नींद की कमी से मौत वाली धारणा की शुरुआत 1980 के दशक में चूहों पर किए गए एक प्रयोग से हुई थी, जिनमें नींद न लेने से मौत हुई थी। लेकिन बाद में पता चला कि यह मृत्यु प्रयोग की तकनीक के कारण हुई थी, नींद छीनने के कारण नहीं। हां नींद की कमी प्रत्यक्ष रूप से नहीं लेकिन दुर्घटनाओं के माध्यम से जानलेवा हो सकती है।
क्या कहते हैं आंकड़े
National Highway Traffic Safety Administration के अनुसार, साल 2017 में नींद में ड्राइविंग के कारण 795 मौतें हुईं। वर्ष 2013 के एक रिव्यू में भी बताया गया कि लगभग 13% कार्यस्थल दुर्घटनाएं नींद से जुड़ी समस्याओं के कारण होती हैं। वर्ष 2025 में “Global Sleep Health Consortium” की रिपोर्ट में कहा गया कि लगातार नींद की कमी वाले लोग दुर्घटनाओं और निर्णयात्मक त्रुटियों के प्रति 3.7 गुना अधिक संवेदनशील होते हैं। लंबे समय में नींद की कमी हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, टाइप 2 मधुमेह, मोटापा, स्ट्रोक और कुछ प्रकार के कैंसर के जोखिम बढ़ा देती है।
हर रात 7 से 9 घंटे की नींद का लक्ष्य शरीर और मस्तिष्क दोनों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। यह सुनने में आसान लगता है लेकिन हमारी तेज़, व्यस्त और शोरगुल भरी दिनचर्या में चुनौतीपूर्ण हो जाता है। फिर भी शरीर को उस विश्राम की आवश्यकता होती है, जिसे हम किसी मिथक या बहाने से कम नहीं कर सकते। नींद कोई विलासिता नहीं है, यह मूलभूत जैविक आवश्यकता है। वैज्ञानिक शोध लगातार जारी है और एक दिन हम नींद से जुड़े सभी रहस्यों को पूरी तरह समझ पाएंगे। लेकिन फिलहाल इतना तय है कि जितनी नींद शरीर मांग रहा है, उतनी नींद देना ही खुद के प्रति सबसे सरल और महत्वपूर्ण देखभाल है।
डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।