केवल कमजोर इम्युनिटी नहीं, इन कारणों से भी बार-बार होता है खांसी-जुकाम

नाक और गले की नमी शरीर की प्राकृतिक ढाल होती है। जैसे ही मौसम ठंडा और हवा सूखी होती है, यह नमी 50% तक कम हो जाती है और वायरस दिनों तक जीवित रह सकते हैं...

Update: 2025-11-30 20:15 GMT
बस इतनी-सी लापरवाही और लग जाता है 'खांसी-जुकाम', सतर्क रहें
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थोड़ा-सा जुकाम हुआ और गले में हल्का-सा दर्द। अब हमें लगता है, ठीक हो जाएगा ना, हर छोटी-सी बात के लिए दवाएं खाएं और काढ़ा पिएं! लेकिन सच यह है कि वायरस उसी वक्त हमला करते हैं, जब हम शरीर के प्रति थोड़ी भी लापरवाही दिखाते हैं। यही कारण है कि नवंबर–दिसंबर में क्लीनिक और अस्पताल भीड़ से भर जाते हैं। CDC और WHO की विंटर-सीज़न रिपोर्ट लगातार यह बताती है कि ठंडी और सूखी हवा में रेस्पिरेटरी वायरस सबसे अधिक सक्रिय रहते हैं और इन्फेक्शन का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। यानी मौसम बदलना समस्या नहीं, हमारी आदतें ही बीमारी की जमीन तैयार करती हैं...


गले और नाक की नमी का घटना

सबसे पहली वैज्ञानिक सच्चाई यह है कि हमारी नाक और गले की नमी शरीर की प्राकृतिक ढाल होती है। जैसे ही मौसम ठंडा और हवा सूखी होती है, यह नमी 50% तक कम हो जाती है। Harvard T.H. Chan School of Public Health के अनुसार, सूखे वातावरण में वायरस घंटों नहीं, दिनों तक जीवित रह सकते हैं और संक्रमण की संभावना दोगुनी हो जाती है। यहीं से समझ आता है कि गर्म पानी पीना, भाप लेना और कमरे में ह्यूमिडिटी बनाए रखना बचाव की पहली दीवार है।

सोना बहुत जरूरी है

दूसरी बात जिसे लोग अक्सर अनदेखा करते हैं, वह है नींद। University of California, San Francisco की वायरल इम्यूनिटी स्टडी में पाया गया कि जिन लोगों की नींद रोज़ 6 घंटे से कम होती है, उनमें सर्दी-जुकाम होने की संभावना लगभग 4 गुना अधिक होती है। यानी यह लड़ाई दवाइयों की नहीं, शरीर की रिकवरी को समय देने की है। सर्दियों में स्क्रीन टाइम बढ़ जाता है, नींद घट जाती है और हमें लगता है कि शरीर के पास “आदत” है। लेकिन विज्ञान बताता है कि थका हुआ शरीर वायरस के आगे जल्दी हारता है।


सांसों की बीमारी से बचाते हैं ये खाद्य पदार्थ

भोजन पर भी बड़ी लड़ाई छिपी है। The Journal of Nutrition की रिपोर्ट में पाया गया कि विटामिन C, जिंक और प्रोटीन की कमी वाले लोगों में फ्लू और रेस्पिरेटरी संक्रमण की गंभीरता अधिक देखी गई। मतलब सर्दियों में संतरा, आंवला, पपीता, अंडे, दाल, हल्दी, अदरक, काली मिर्च, दालचीनी सिर्फ स्वाद नहीं बल्कि मौसम की सुरक्षा कवच हैं। आयुर्वेद और मॉडर्न मेडिसिन दोनों इस पर सहमत हैं कि ये तत्व ऊपरी श्वसन तंत्र को मजबूत बनाकर वायरस के प्रवेश को रोकते हैं।



संक्रमण से बचाव के लिए सावधानी

अब आती है बाहरी सावधानी की बात। CDC के डेटा बताते हैं कि भीड़भाड़ वाले स्थानों, ऑफिस, स्कूल, पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसे स्थानों में फ्लू-वायरस की चेन सबसे तेज़ फैलती है। संक्रमित व्यक्ति का केवल खांसना भी 6 फीट की दूरी तक संक्रमण फैला सकता है। इसीलिए हाथों की स्वच्छता, नाक-मुंह पर हाथ न लगाना और संक्रमण वाले व्यक्तियों से दूरी वायरस को रोकने के सबसे प्रभावी तरीके माने गए हैं।

शरीर में ऐसे प्रवेश करता है वायरस

गले का तापमान भी इस मौसम की सबसे बड़ी कुंजी है। Yale School of Medicine की थर्मल-इम्युनिटी स्टडी में पाया गया कि कम तापमान में नाक के अंदर की रोग प्रतिरोधी कोशिकाएं अपनी शक्ति खो देती हैं और वायरस के लिए शरीर में प्रवेश करना आसान हो जाता है। इसलिए रात में ठंडी हवा में निकलना, ठंडा पानी पीना या गीले बालों के साथ बाहर जाना कोई “छोटी” बातें नहीं बल्कि बीमारी को न्योता देना है।


इसलिए बढ़ती है बीमारी

बीमारी सिर्फ संक्रमण से नहीं बल्कि लापरवाही से गंभीर होती है। Flu Research Consortium की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, ज्यादातर मरीज तब अस्पताल पहुंचे, जब लक्षण 48 घंटे से अधिक नजरअंदाज किए गए। शरीर पहले दिन चेतावनी देता है। जैसे, गला भारी होना, नींद टूटना, छींकें, थकान इत्यादि। लेकिन हम समझते ही नहीं या इन लक्षणों के प्रति लापरवाही बरतते हैं। इस स्थिति में बीमारी बढ़ती नहीं बल्कि हम उसे बढ़ने का अवसर देते हैं।

इसलिए इस सर्दी में कोई अपनी देखभाल के लिए कोई लंबी सूची नहीं,बस शरीर की भाषा सुनना और कुछ सरल आदतें अपनाना जरूरी है। जैसे, गर्म पानी का सेवन, शरीर में नमी बनाए रखना, पर्याप्त आराम, पोष्टिक भौजन, स्वच्छता और ठंड से बचाव के नियमों को अपनाएं। इन आदतों को जीवनशैली का हिस्सा बना लेंगे तो सर्दी-जुकाम आपको छू भी नहीं पाएंगे।



डिसक्लेमर- यह आर्टिकल जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से लिखा गया है, किसी भी सलाह को अपनाने से पहले डॉक्टर से परामर्श करें।


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