OBC में मुसलमान : तेलंगाना के जाति सर्वे में वैचारिक लड़ाई
बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस ने 10.08 फीसदी मुसलमानों को OBC में शामिल किया है, जिन्हें सामान्य श्रेणी में होना चाहिए था। वास्तव में यह एक खतरनाक सांप्रदायिक दलील है।;
तेलंगाना में जो सामाजिक, जातीय, आर्थिक, शैक्षिक, रोजगार और राजनीतिक सर्वे हुआ है और जिसे जाति गणना कहा जा रहा है, वो कांग्रेस नेता राहुल गांधी की निजी पहल पर हुआ है। रेवंत रेड्डी के नेतृत्व वाली सरकार ने उच्च जातियों के विरोध के बावजूद यह सर्वे किया है। राहुल गांधी तेलंगाना की इस जाति गणना को देश के लिए एक मॉडल के रूप में पेश कर रहे हैं।
तेलंगाना में हाल के समय में यह पहली जाति गणना है जोकि वैज्ञानिक तरीके से हुई है। इससे पहले साल 1931 में निजाम के राजकाज मेंं कठिन हालातों में ऐसा किया गया था। निजाम का शासन 1948 में समाप्त हुआ था।
उस वक्त कई गांवों और बस्तियों तक पहुंचा नहीं जा सका था। उन दिनों निजाम शासन में आज के तेलंगाना राज्य समेत आज के महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ इलाके आते थे। उस वक्त गणना के काम में लगे ज्यादातर लोग उर्दू भाषी थे, जबकि रियासत के लोग अपनी क्षेत्रीय भाषायें बोलते थे। सर्वे की प्रश्नावली और सर्वे का तरीका उतना अच्छा नहीं था, जबकि अंग्रेज उस समय सर्वे के लिए बेहतर कार्य प्रणाली का उपयोग करते थे।
वैज्ञानिक सर्वेक्षण
इसमें कोई संदेह नहीं कि मौजूदा तेलंगाना सरकार ने सर्वे के लिए बेहद आधुनिक तरीका अपनाया है। इसके लिए तेलुगू, उर्दू और अंग्रेजी भाषी गणनाकारों को नियुक्त किया गया। अब प्रत्येक गांव और बस्ती तक पहुंचा जा सकता है।
तेलंगाना राष्ट्र समिति, जोकि बाद में भारत राष्ट्र समिति हो गई, ने दावा किया कि 2 जून 2014 को तेलंगाना में उसकी सरकार बनने के कुछ दिन बाद उसने एक दिन में सर्वे करवाया था, लेकिन उसे जाति गणना का सर्वे नहीं कहा जा सकता।
कांग्रेस सरकार ने 4 फरवरी को राज्य की विधानसभा में जाति गणना के व्यापक सर्वे का डेटा प्रस्तुत किया। उसने जब प्रतिशत में डेटा जारी किया तो उसके बाद यह डेटा कांग्रेस और बीजेपी के बीच वैचारिक लड़ाई का स्रोत बन गया जिसे बीजेपी अपने एंटी-मुस्लिम नजरिये से देख रही है।
BRS कथित 'कुटुम्ब सर्वे' का दावा कर रही है, जिसका डेटा कभी जारी नहीं किया गया।
OBC मुसलमान
बीजेपी की दलील है कि कांग्रेस सरकार ने हिंदू ओबीसी आबादी को कम दिखाने के लिए जान-बूझकर मुस्लिम ओबीसी का प्रतिशत बढ़ाया है। बीजेपी ने चेताया है कि अगर वो जब भी सत्ता में आएंगे, वो मुसलमानों को कभी ओबीसी में शामिल नहीं मानेंगे क्योंकि यह श्रेणी केवल हिंदू जातियों के लिए है। मुसलमानों को मिलने वाला 4 प्रतिशत का आरक्षण हिंदू ओबीसी जातियों को दिया जाएगा।
तेलंगाना में जो ताजा सर्वे हुआ है, वह वैज्ञानिक तरीके से तैयार की गई प्रश्नावली के साथ 50 दिनों में पूरा किया है। तेलंगाना सरकार ने 56 प्रश्न तैयार किए थे। उसमें जो जातियों की सूची थी उसे चार श्रेणियों में बांटा गया था- OBC, SC, ST and OC (general caste).
मुस्लिम OBC-E ग्रुप लिस्ट में 60 मुस्लिम ओबीसी जातियों के नाम दर्ज हैं। जाति गणना करने वालों ने लोगों से पूछा कि उनका ताल्लुक किस जाति से है और सूची के अनुसार उनकी जाति का पता लगाया।
निचली जाति के मुसलमान
इस सर्वे के मुताबिक तेलंगाना में 10.08 % मुसलमान OBC के अंतर्गत आते हैं। केवल 2.४८% मुसलमानों ने ही खुद को सामान्य श्रेणी यानी OC के तहत माना है। मुस्लिम ओबीसी जातियों की यह सूची वाईएस राजशेखर रेड्डी सरकार द्वारा साल 2006 के आसपास तैयार की गई थी। अब यह यह सूची आंध्र प्रदेश के लिए भी कॉमन है, जहां बीजेपी सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है। अगर कल को आंध्र प्रदेश की सरकार जाति जनगणना कराती है, तो क्या वे अपने राज्य के सभी मुसलमानों को सामान्य श्रेणी यानी OC में शामिल करेंगे?
ताज्जुब इस बात का है कि जिन मुस्लिम जातियों को ओबीसी में शामिल किया गया है, उनमें से ज्यादातर भीख मांगने, सड़क पर फेरी लगाने जैसे कामों से जुड़े हैं। यह लिस्ट अच्चुकट्टालवंडलू से शुरू होती है और तुरका काशा पर खत्म होती है। इसमें भिखारी, सब्जी बेचने वाले, साइकिल ठीक करने वाले मैकेनिक जैसे लोग शामिल हैं।
इनमें से ज्यादातर निचली जातियों को आसफ जाही वंश की हुकूमत के दौरान इस्लाम में शामिल किया गया था, जिन्होंने कि लगभग तीन सौ साल तक राज किया।
बीजेपी और मुसलमान
बीजेपी का अपनी जातिगत विरासत के प्रति वैचारिक विरोध भारत विरोधी है। पिछड़े वर्ग के मुसलमान मध्य-पूर्व से नहीं आए हैं। कई दलित जातियों जैसे कटिक, कसाई, जूता/चप्पल बनाने वाले और हड्डी और चमड़े के व्यापारी ने छुआछूत और जातिगत उत्पीड़न से बचने के लिए इस्लाम धर्म अपनाया।
बीजेपी को गरीब मुसलमानों के अतीत और उनके धर्मांतरण की चिंता नहीं है। 2.48 % ऊंची जातियां शायद पठान, शेख, मुगल, सैयद वगैरह हैं। उनके कुछ पूर्वज बाहर से पलायन करके आए होंगे।
वे इस देश में उसी तरह आए जैसे ब्राह्मण, बनिया, कायस्थ, खत्री और क्षत्रिय बाद में अमेरिका चले गए और आज भी हमारे समय में पलायन कर रहे हैं। अमेरिका और यूरोप में कई लोग ईसाई बन गए। क्या अमेरिका को उन्हें कल्याणकारी लाभ देने से मना कर देना चाहिए? राज्य की कल्याणकारी नीतियां मानवीय मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए, न कि केवल धर्म पर।
बड़ा सवाल
तेलंगाना के सर्वे के आंकड़ों से पता चला है कि गैर-मुस्लिम ओबीसी (जिसमें बौद्ध, सिख और अन्य शामिल हैं) 46.25 % हैं। डेटा से यह भी पता चला है कि गैर-मुस्लिम सामान्य श्रेणी के लोग, जो आरक्षण से बाहर हैं, उनकी आबादी 13.31% हैं।
सामान्य श्रेणी की आबादी के प्रतिशत ने ये भी सवाल उठाया है कि क्या यह BRS सरकार के सर्वेक्षण में बताए गए दावे से अधिक है? उस सर्वेक्षण में सामान्य श्रेणी की जातियों का अनुमान लगभग 7 % लगाया गया था। लेकिन यह बात समझ में नहीं आ रही है कि 2014 से 2025 तक उच्च जातियों के बड़े पैमाने पर हुए प्रवासन के कारण उच्च जातियों की संख्या में वृद्धि हुई है।
हैदराबाद में आईटी सेक्टर, रियल एस्टेट कारोबार और मकान खरीदने वालों में उत्तर भारतीय उच्च जातियों की संख्या में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है।
उच्च जाति का आना
उच्च जातियों की सूची में मारवाड़ी, जैन, बनिया, शेट्टी, अय्यर/अयंगर और सामान्य ब्राह्मण सहित 18 जातियां शामिल हैं। 2014 में आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद हैदराबाद में प्रवास करने वाले अधिकांश आईटी और कारोबारी क्षेत्र के कर्मचारी इन्हीं जातियों से हैं। कई सेवानिवृत्त कर्मचारी भी हैं, जो भारत के अन्य हिस्सों से हैदराबाद के मौसम और महानगरीय प्रकृति के कारण यहां बसे हैं।
हैदराबाद के पश्चिमी इलाके में स्थित हाईटेक सिटी मैनहट्टन जैसी दिखती है। यह शहर अन्य भारतीय राज्यों से आए प्रवासी अमीर उच्च जातियों से भरा हुआ है।
अनुसूचित जाति और जनजाति
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या के प्रतिशत के बारे में ज़्यादा विवाद नहीं है। ये क्रमशः 17.43 और 10.45 हैं। उसी दिन विधानसभा में सरकार ने अनुसूचित जातियों को तीन समूहों में वर्गीकृत करने की घोषणा की, A, B और C।
सरकार ने अनुसूचित जाति समूह के भीतर मडिगा, माला और अन्य प्रत्येक को 9+5+1 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव रखा।
बीजेपी खुद सुप्रीम कोर्ट के एससी/एसटी उप-वर्गीकरण फैसले के आधार पर आरक्षण विभाजन के लिए लड़ने के लिए मडिगा समुदाय के लोगों को लामबंद कर रही है। लेकिन केंद्रीय स्तर पर बीजेपी जाति जनगणना की अनुमति देने के लिए तैयार नहीं है और न ही वह सुप्रीम कोर्ट के उप-वर्गीकरण फैसले को लागू करना चाहती है। ऐसा लगता है कि इसका एकमात्र एजेंडा तेलंगाना की कांग्रेस सरकार के रास्ते बाधा पहुंचाना है।
बीजेपी का मुस्लिम विरोधी रुख
तेलंगाना में बीजेपी ओबीसी की गोलबंदी करके सत्ता में आने के लिए जुगत कर रही है। उसने 2023 में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर ओबीसी चेहरे को आगे बढ़ाया था। यह रेवंत रेड्डी और के चंद्रशेखर राव के खिलाफ एक रणनीतिक कदम था। और फिर भी, बीजेपी तेलंगाना में जाति जनगणना के खिलाफ थी जबकि यह ओबीसी की लंबे समय से चली आ रही मांग थी।
तेलंगाना में 2023 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी का लगातार अभियान ये था कि मुसलमानों को ओबीसी नहीं माना जाना चाहिए और उनका 4% आरक्षण गैर-मुस्लिम ओबीसी को दिया जाना चाहिए। यह तर्क निश्चित रूप से हिंदू ओबीसी आबादी को प्रभावित करता है और उन्हें मुसलमानों के खिलाफ खड़ा करने की क्षमता रखता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने तेलंगाना में मुस्लिम विरोधी एजेंडे के इर्द-गिर्द अपना अभियान चलाया। जब जाति जनगणना में मुस्लिम ओबीसी आबादी 10.08 % दिखाई गई, तो तेलंगाना बीजेपी के अध्यक्ष किशन रेड्डी और केंद्रीय मंत्री बंदी संजय ने पार्टी नेताओं के साथ मिलकर अभियान चलाया कि गैर-मुस्लिम ओबीसी के खिलाफ साजिश हो रही है।
सर्वे से कांग्रेस का नुकसान?
बीजेपी का ये प्रोपेगैंडा भ्रामक है कि कांग्रेस ने ये आंकड़े इसलिए पेश किए ताकि हिंदू ओबीसी आरक्षण की नौकरियां और सीटें मुसलमानों को दे दी जाएं। बीजेपी के अनुसार, कांग्रेस ने 10.08 % मुसलमानों को ओबीसी में बदल दिया, जिन्हें अन्यथा सामान्य श्रेणी में होना चाहिए था। यह वास्तव में एक खतरनाक सांप्रदायिक तर्क है। बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के पास एकमात्र विकल्प यह है कि वह सामान्य जनगणना में जाति जनगणना को शामिल करे, जिसे सरकार करने वाली है। अगर इसमें मुसलमानों को ओबीसी श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है, तो यह पूरे भारत में धर्म और जाति को अलग कर देगा। लेकिन यह देश भर में निचली जाति के मुसलमानों के साथ घोर अन्याय होगा।
(द फेडरल सभी पक्षों से विचार और राय प्रस्तुत करने का प्रयास करता है. लेख में दी गई जानकारी, विचार या राय लेखक के हैं और जरूरी नहीं कि वे फेडरल के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों.)