पेरिस ओलंपिक के बाद बैडमिंटन की चमक पड़ी फीकी, क्या है आगे का रास्ता?
पेरिस की निराशा के बाद भारतीय खिलाड़ियों के फॉर्म में चिंताजनक गिरावट आई है और वैश्विक रैंकिंग में भी भारी गिरावट देखी गई है।;
Indian Badminton Players: कभी दुनिया के बैडमिंटन कोर्ट पर परचम लहराने वाला भारत आज इस खेल के सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। याद कीजिए वो समय जब साइना नेहवाल और पीवी सिंधु ने विश्व स्तर पर भारतीय बैडमिंटन को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया था। जब किदांबी श्रीकांत और एचएस प्रणॉय दुनिया के टॉप खिलाड़ियों को चुनौती देते थे। लेकिन वह सुनहरा दौर अब बीते समय की बात लगने लगा है।
पेरिस ओलंपिक से गिरावट का दौर
2024 के पेरिस ओलंपिक में एक भी पदक नहीं जीत पाने ने चिंता की लकीरें और गहरी कर दी हैं। पुरुष एकल में लक्ष्य सेन सेमीफाइनल तक पहुंचे, लेकिन कांस्य पदक मैच हार गए। पीवी सिंधु प्री-क्वार्टर फाइनल में बाहर हो गईं और सत्विकसाईराज रंकीरेड्डी-चिराग शेट्टी की शानदार जोड़ी क्वार्टरफाइनल में हार गई। यही नहीं, हाल ही में सुदीरमन कप में भारत ग्रुप स्टेज से ही बाहर हो गया — इंडोनेशिया से 1-3 की हार के साथ, उसी टीम से जिसने 2022 में भारत को ऐतिहासिक थॉमस कप जिताया था।
2022: उम्मीदों का शिखर
मई 2022 में थॉमस कप जीत भारत के बैडमिंटन इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ। उसी साल ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में पुरुष और महिला एकल, पुरुष युगल और टीम स्पर्धाओं में भारत ने गोल्ड जीतकर विश्व मंच पर अपने प्रभुत्व का संकेत दिया। लेकिन अब यह सब बीती बातें लगने लगी हैं।
मौजूदा रैंकिंग्स में गिरावट
2024 के पेरिस ओलंपिक के बाद से भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन बुरी तरह गिरा है। BWF की ताजा रैंकिंग्स में एक भी भारतीय (पुरुष या महिला) एकल खिलाड़ी टॉप 10 में नहीं है। लक्ष्य सेन 18वें और कभी अपराजेय रही पीवी सिंधु भी 18वें स्थान पर पहुंच गई हैं। प्रणॉय और श्रीकांत क्रमशः 30वें और 61वें स्थान पर खिसक चुके हैं। यहां तक कि कभी युगल रैंकिंग में शीर्ष पर रहने वाली सत्विक-चिराग की जोड़ी भी अब टॉप 10 से बाहर हो चुकी है।
समस्या कहां है?
इस गिरावट के कई कारण हैं लगातार चोटें, अनुभवहीन बैकअप खिलाड़ी, उम्रदराज होते सीनियर खिलाड़ी, असंगत प्रदर्शन और घटता वित्तीय सहयोग। लक्ष्य सेन, जो कभी वर्ल्ड रैंकिंग में छठे स्थान तक पहुंचे थे और विक्टर एक्सेलसन जैसे दिग्गज को हरा चुके थे, अब चोट और फॉर्म की मार झेलते हुए 18वें स्थान तक गिर चुके हैं।
एचएस प्रणॉय और किदांबी श्रीकांत भी अब 30 की उम्र पार कर चुके हैं और पहले जैसी रफ्तार और सहनशक्ति नहीं दिखा पा रहे। किदांबी तो अब साइना नेहवाल के करियर के आखिरी वर्षों की तरह पहले राउंड से ही बाहर हो रहे हैं।
सिंधु की चुनौतियां
महिला वर्ग में सिंधु अभी भी सबसे प्रमुख चेहरा हैं, लेकिन वह भी चोटों और खराब फॉर्म से जूझ रही हैं। उनकी हालिया हारें आत्मविश्वास की कमी दिखाती हैं। शादी के बाद उनकी वापसी की संभावनाओं पर भी सवाल उठ रहे हैं।
अगली पीढ़ी तैयार नहीं
पुरुषों में अयुष शेट्टी, प्रियांशु राजावत और किरण जॉर्ज जैसे युवा प्रतिभाशाली हैं, लेकिन अभी भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निरंतरता की कमी है। महिलाओं में मालविका बंसोड़, अक्षर्षी कश्यप, अनुपमा उपाध्याय और अनमोल खरब जैसी खिलाड़ी उभर रही हैं, पर टॉप स्तर पर चुनौती देने में अभी वक्त लगेगा।
पूर्व खिलाड़ियों और कोचों की चेतावनी
साइना नेहवाल ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में कहा कि भारत को बैडमिंटन में बुनियादी ढांचे में सुधार, खिलाड़ियों के लिए लगातार सहयोग और जमीनी स्तर से विकास कार्यक्रमों की आवश्यकता है। कोच पुलेला गोपीचंद ने भी कहा कि भारत में अगर आप आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हैं तो खेलों में करियर बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण है।
युगल गेम में आशा की किरण
जहां एकल में गिरावट आई है, वहीं युगल में भारत की स्थिति थोड़ी बेहतर है। सत्विक-चिराग की जोड़ी ने कई खिताब जीते हैं, हालांकि हाल के महीनों में चोटों से जूझ रही है। महिला युगल में गायत्री गोपीचंद और टेरेसा जॉली नई उम्मीद हैं, लेकिन वे भी चोटों से प्रभावित रही हैं। मिक्स्ड डबल्स में तनिषा क्रास्टो और ध्रुव कपिला ने हाल ही में अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन इस क्षेत्र में भी निरंतरता की कमी है।
प्रशासनिक अक्षमता भी जिम्मेदार
बैडमिंटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (BAI) की कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में है। रिपोर्ट्स के अनुसार, फंडिंग में कटौती, जूनियर खिलाड़ियों के लिए अपर्याप्त सहायता और विदेशी प्रशिक्षण की कमी ने हालात को और खराब किया है।
समाधान की दिशा
विशेषज्ञों के अनुसार, अब समय आ गया है कि भारत एक मजबूत और संरचित प्रशिक्षण प्रणाली अपनाए, राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविरों को पुनः सक्रिय करे और खिलाड़ियों के लिए स्वास्थ्य व फिटनेस प्रोटोकॉल को बेहतर बनाए। साथ ही, खेल विज्ञान और अनुसंधान में निवेश करना बेहद जरूरी है, ताकि युवा प्रतिभाओं को तैयार कर भारत की वैश्विक स्थिति फिर से मजबूत की जा सके।
निष्कर्ष:
भारतीय बैडमिंटन में गिरावट भले ही गंभीर हो, लेकिन अगर आज सुधार के ठोस कदम उठाए जाएं, तो यह खेल फिर से अपने स्वर्ण युग की ओर लौट सकता है। इसके लिए सिर्फ खिलाड़ियों की नहीं, बल्कि प्रशासन, कोच, और देश की साझा जिम्मेदारी जरूरी है।