एयरोस्पेस निवेश की रेस में आंध्र ने मारी बाज़ी, बैकफुट पर कर्नाटक
कर्नाटक के भूमि अधिग्रहण रद्द करने के बाद आंध्र ने 8,000 एकड़ ज़मीन, तेज़ मंज़ूरी और बेंगलुरु की सुविधाओं के साथ एयरोस्पेस कंपनियों को लुभाया।;
बेंगलुरु के पास चन्नारायपटना और आसपास के गांवों में 1777 एकड़ उपजाऊ कृषि भूमि के अधिग्रहण को रद्द करने का कर्नाटक सरकार का फैसला एक ओर जहां किसानों के लिए राहत लेकर आया है, वहीं सिद्दारमैया सरकार के लिए यह निर्णय आर्थिक और रणनीतिक रूप से मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
यह ज़मीन डेवेनहल्ली के पास एयरोस्पेस और औद्योगिक पार्क विकसित करने के लिए अधिग्रहित की जा रही थी, जिससे कर्नाटक को 50000 से 60000 करोड़ रुपये तक का निवेश मिलने की संभावना थी। लेकिन अधिग्रहण रद्द होने के बाद ये निवेश अब राज्य के बाहर जाने की आशंका जताई जा रही है।
मुख्यमंत्री का बयान
15 जुलाई को मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने घोषणा की कि बेंगलुरु के केम्पेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास किसानों से जबरन ज़मीन नहीं ली जाएगी। उन्होंने कहा हम केवल उन्हीं किसानों की ज़मीन लेंगे जो स्वेच्छा से देने को तैयार हैं। हमारा लक्ष्य है कि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बची रहे और साथ ही रोज़गार के अवसर भी पैदा हों।”
निवेशकों को दिया खुला निमंत्रण
कर्नाटक के फैसले के तुरंत बाद, आंध्र प्रदेश सरकार हरकत में आ गई। राज्य के आईटी मंत्री नारा लोकेश (मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के बेटे) ने एयरोस्पेस कंपनियों को खुले आम निमंत्रण दिया कि वे कर्नाटक छोड़कर आंध्र प्रदेश आएं।आंध्र ने न सिर्फ 8,000 एकड़ तैयार ज़मीन देने की पेशकश की, बल्कि तेज़ अनुमोदन प्रक्रिया और आकर्षक प्रोत्साहन भी दिए। साथ ही, उन्होंने कर्नाटक सीमा से लगे पेनुकोंडा और मडकाशिरा को प्रस्तावित केंद्रों के रूप में चिन्हित किया, जो कि बेंगलुरु एयरपोर्ट से महज 80 किलोमीटर की दूरी पर हैं।
इससे कंपनियों को बेंगलुरु के लॉजिस्टिक्स और हवाई सुविधा का लाभ तो मिलेगा ही, लेकिन लागत में भारी कमी भी होगी जो नई कंपनियों के लिए बड़ा फ़ैसला बन सकता है।
कर्नाटक सरकार की मुश्किलें और बचाव
कर्नाटक उद्योग विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, सिर्फ ज़मीन की कमी समस्या नहीं है, हम दूसरे इलाकों में वैकल्पिक ज़मीन दे सकते हैं। लेकिन आंध्र का मुफ़्त ज़मीन और बेंगलुरु की लॉजिस्टिक सपोर्ट वाली पेशकश असली चुनौती है। उद्योग मंत्री एमबी पाटिल ने कहा कि कर्नाटक अब माइसूर, बागलकोट (हत्तरगी), चामराजनगर और तुमकुर जैसे क्षेत्रों में एयरोस्पेस कंपनियों को ज़मीन देने की योजना बना रहा है। उन्होंने आंध्र के प्रस्ताव को "सतही" बताया और कहा, “सिर्फ ज़मीन देने से कुछ नहीं होता, पूरा उद्योगिक इकोसिस्टम मायने रखता है।”
पाटिल ने यह भी कहा कि भारत के एयरोस्पेस निर्यात में 65% योगदान कर्नाटक का है और यह क्षेत्र वैश्विक स्तर पर तीसरे पायदान पर है। हमारे पास एयरोस्पेस के अलावा एआई, डीप-टेक और आईटी के लिए भी भूमि और इंफ्रास्ट्रक्चर है।
निवेशकों की दुविधा, विपक्ष का हमला
हालांकि अभी तक कोई भी कंपनी आधिकारिक रूप से कर्नाटक से बाहर नहीं गई है, लेकिन आंध्र की तेज़ी और तैयार प्रस्ताव ने निवेशकों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। बेंगलुरु की कीमत चुकाए बिना, बेंगलुरु की सुविधाएं मिलना नई कंपनियों के लिए एक आकर्षक विकल्प बनता जा रहा है।
इस बीच, कर्नाटक भाजपा ने सिद्दारमैया सरकार पर हमला करते हुए कहा कि सरकार ने निवेशकों को गलत संदेश दिया है और उद्योगों को राज्य से भगाने का काम किया है।जवाब में उद्योग मंत्री पाटिल ने कहा कि विपक्ष खुद अधिग्रहण के विरोध में था, और अब राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है।
अब असली सवाल यह है कि क्या कर्नाटक अपने निवेशकों को रोक पाएगा, या मडकाशिरा और पेनुकोंडा जैसे आंध्र प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र राज्य से उद्योग छीन लेंगे जबकि कर्नाटक की ही लॉजिस्टिक्स और एयरपोर्ट सुविधाएं इस्तेमाल की जाएंगी।सरकार कोशिश कर रही है कि कंपनियों को नए विकल्प दिए जाएं, लेकिन यह तय है कि अगर एक बार यह सिलसिला शुरू हुआ, तो कर्नाटक को केवल भूमि ही नहीं, उद्योगिक दबदबे में भी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।