जब गिरफ्तारी हुई तब इस्तीफा नहीं, सीएम अरविंद केजरीवाल ने अब क्यों किया ऐलान

सियासत की अपनी गुणा गणित होती है। कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने बीजेपी को जमकर लताड़ा। लेकिन इसके साथ ही इस्तीफे का ऐलान कर दिया।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-09-15 07:16 GMT

Arvind Kejriwal Resignation News: 177 दिन बाद 13 सितंबर को दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की रिहाई हो चुकी थी। सुप्रीम कोर्ट ने राहत तो दी लेकिन कई शर्तें भी लगा दी। बीजेपी के नेता तीखा प्रहार भी कर रहे थे कि जो सीएम अपनी ड्यूटी नहीं कर सकता उसे पद पर रहने का अधिकार नहीं है, और उसे इस्तीफा दे देना चाहिए। इन सबके बीच रविवार को पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने बीजेपी को कुछ इस तरह घेरा। अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उनकी साज़िशें हमारे चट्टान जैसे हौसलों को नहीं तोड़ पाईं,हम फिर से आपके बीच में हैं। हम देश के लिए यूं ही लड़ते रहेंगे, बस आप सब लोगों का साथ चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने इस्तीफे का ऐलान कर दिया। आज मैं जनता से पूछने आया हूँ कि आप केजरीवाल को ईमानदार मानते हो या गुनाहगारअब जब तक दिल्ली की जनता अपना फैसला नहीं सुना देती है तब तक मैं CM की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा। मैं आज से 2 दिन बाद मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दूंगा। 

मार्च में क्यों नहीं दिया इस्तीफा
अब यहां सवाल यह है कि दिल्ली कथित शराब घोटाले में केजरीवाल की जब 21 मार्च को पहली बार गिरफ्तारी हुई तब इस्तीफा क्यों नहीं दिया। अब जबकि वो ईडी और सीबीआई दोनों केस में जमानत पर हैं तो इस्तीफा क्यों दिया। जेल के अंदर से सरकार चलाने की बात कहने वाले केजरीवाल जब आजाद है तो इस्तीफे का ऐलान क्यों किया। क्या उन्हें राष्ट्रपति शासन लगने की चिंता सता रही थी या उन्हें ऐसा लगने लगा कि अगर वो दाग लेकर सत्ता पर काबिज रहते हैं तो अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में खामियाजा उठाना पड़ सकता है।  अब इस ऐलान के पीछे की वजह समझने की कोशिश करते हैं।

बीजेपी थी हमलावर
यह बात सच है कि दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को जमानत मिल चुकी है। ऐसे में वो अपनी कुर्सी पर काबिज रह सकते हैं। लेकिन उन्हें जमानत शर्तों के साथ है। मसलन वो सीएम दफ्तर नहीं जा सकते। फाइलों पर दस्तखत नहीं कर सकते। उन्हें सक्षम अदालतों के सामने केस के सिलसिले में पेश होना पड़ेगा। यानी कि बंदिशें ढेर सारी हैं। सवाल है कि २०१३ के अपने आंदोलन के दौरान वो अलग तरह की राजनीति की वकालत किया करते थे। लेकिन अगर उसी तरह की लीक पर चल कर वो आगे बढ़ेंगे तो जाहिर सी बात है कि अपने विरोधियों को क्या जवाब देंगे। बीजेपी का बार बार यही कहना है कि जिस नेकनीयती और ईमानदारी की वो बातें किया करते थे आखिर क्या वो सब किताबों में लिखे शब्दों की तरह है। 

राष्ट्रपति शासन का खतरा

क्या अरविंद केजरीवाल को राष्ट्रपति शासन का खतरा सता रहा था। यहां बता दें कि बीजेपी के विधायकों ने राष्ट्रपति को खत लिखने के साथ मुलाकात की थी। विधायकों का कहना था कि दिल्ली में संवैधानिक व्यवस्था चरमरा गई है। लिहाजा यहां राष्ट्रपति को दखल देना चाहिए। राष्ट्रपति कार्यालय ने उस खत को गृह मंत्रालय को भेज दिया। सियासत के जानकार कहते हैं कि यह बात तो सच है कि सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को जमानत दी है। लेकिन ईडी और सीबीआई दोनों की गिरफ्तारी को जायज ठहराया। कहने का अर्थ यह है कि दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पूरी तरह पाक साफ नहीं है। ऐसी सूरत में बीजेपी दोबारा से और बार बार इस बात का दम भरती कि जो शख्स सीएम दफ्तर नहीं जा सकता, फाइलों पर दस्तखत नहीं कर सकता आखिर वो सरकार का मुखिया कैसे बना रह सकता है। लिहाजा संवैधानिक संकट है। बीजेपी के नेता पब्लिक में भी इस बात को कहते कि आखिर दिल्ली को एक ऐसा शख्स चला रहा है जिसे अदालत ने पूरी तरह निर्दोष नहीं माना है। 

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